दिल्ली से देहरादून

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)

कौन? - यह गुप्तचर विभाग का एक अधिकारी है। पुलिस में बड़े अधिकारियों के साथ उठता-बैठता है। हमने ऋषिकेश में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कांफ्रैंस की थी, दूर-दूर से विदेशी मेहमान आए थे तब वे जांच के लिए आते थे तो दोस्ती हो गई। बहुत सज्जन व्यक्ति हैं।
- तो क्या उनसे मिलने ऋषिकेश मिलने जाना होगा?
- हां, वैसे भी कुछ समय के लिए देहरादून छोड़ देना ही ठीक है।
पास ही में खाना खा रहे टैक्सी ड्राईवर से बात की तो वह सहर्ष ऋषिकेश चलने के लिए तैयार हो गया।
- चलो बाबू जी, आपको गंगा मैया के दर्शन भी करा देंगे, उसने हंसते हुए कहा।
अधिकारी का नाम वीर सिंह था। उनके निवास के रास्ते में ही वह होटल पड़ता था जहां कान्फ्रैंस के दिनों में सक्षम का आना-जाना था। वहां कमरा बुक कराते ही वे वीर सिंह के घर गए।
खुशकिस्मती थी कि वीर सिंह घर पर ही मिल गए। उन्होंने बहुत तसल्ली से पूरी बात सुनी और कहा- तुम अपने उसी होटल में मेरा इंतजार करो। मैं मैनेजर से कह देता हूं कि आपकी सुरक्षा का भी विशेष ध्यान रखेगा। मुझे अभी ज़रूरी काम से कई अधिकारियों से मिलना है उनके माध्यम से ही देहरादून में संपर्क करूंगा। फिर रात का खाना होटल में इक्ट्ठे खाएंगे। वहीं मैं जो कुछ भी स्थिति स्पष्ट हुई है, तुम्हें बताऊंगा।
अब मैं और मीना होटल में आ गए और बेसब्री से वीर सिंह का इंतजार करने लगे।
कोई आठ बजे के करीब वे आए और हम तीनों डाईनिंग हॉल के एक कोने में बैठ गए।
वीर सिंह ने बड़े रहस्मय ढंग से कहा- वह जो मीना जी ने उन दो गुंड़ों को कार में तेजी से गुजरते हुए देख लिया उस उसी दो सेकेंड में ही समझो कि आपकी जान बच गई।
हम दोनों आवाक होकर वीर सिंह की ओर देखने लगे।
- लेकिन अब कोई खतरा नहीं है और आप रिलैक्स करो।
- पर पूरी बात तो बताईए।
- वह दोनों गुंडे वास्तव में मीना के चाचा के घर में ही आ गए। मीना के मामा का यह शक भी सच ही था कि सेठ धनराय कई गलत कामों में लगा हुआ है, अपराधी तत्त्वों से उसका निरंतर संपर्क है व इसका उपयोग कर वह मीना की प्रापर्टी भी हड़पना चाहता था।
-जब वह दोनों गुंडे धनराय के बंगले में पहुचे तो उन्होंने उससे पीछा करने की फीस मांगी। पर सेठ ने यह देने से इंकार कर दिया क्योंकि मीना का पीछा तो वे कर ही नहीं सके थे। इस पर बहस हो गई। इन दोनों गुंड़ों ने सेठ को धमकी दी कि वे उसकी प्रापर्टी पर कब्जा करने की पूरी साजिश को बेनकाब कर देंगे यदि वह उनको मोटी रकम नहीं देगा। तिस पर सेठ ने पिस्तौल निकाल ली। गुंडे कौन से कम थे। उन्होंने भी हमला कर दिया। सेठ भी मारा गया और एक गुंडा भी मारा गया और दूसरा जख्मी हो गया। उसके और नौकरों के बयान से पुलिस को सब जानकारी मिली है। कल सुबह सब अखबारों में भी यह सब पढ़ सकोगे।
सक्षम और मीना सांस रोक कर पूरी बात सुन रहे थे। वीर सिंह ने कहा- खैर, अब कोई चिंता की बात नहीं है, आप पूरी तरह सेफ हैं। कल सुबह एक अधिकारी आकर आपसे थोड़ा सा बयान लेंगे। फिर 12 बजे तक आप दिल्ली लौटने के लिए या कहीं भी जाने के लिए फ्री हैं।
वीर सिंह का हमने बहुत धन्यवाद दिया। फिर वे चले गए तो हम देर तक वहीं बात करते रहे कि आज कितने बड़े खतरे से हम बाल-बाल बच गए।
आप पूछ सकते हैं- फिर क्या हुआ? मैंने बहुत कह लिया अब आगे की कहानी आप मीना से ही सुनिए।
मीना- जी हां, आगे की कहानी सुनाने के लिए मैं तैयार हूं।
वीर सिंह के जाने के बाद हम दोनों अपने कमरे में आ गए। यहां आकर मेरी भावनाओं का बांध रुक नहीं सका और मैं सक्षम की बांहों में लिपट कर रो पड़ी। पर यह खुशी के तनाव मुक्ति के आंसू थे। यह रोना भी शायद ज़रूरी था। उसके बाद सक्षम ने मुझे दिलासा दी, प्यार से समझाया और ....।
आज हमारे विवाह को 30 वर्ष हो चुके हैं और बेहद संकट के समय का यह बंधन निरंतर मजबूत होता रहा है।
है न कितनी अजीब और प्यारी बात? कैसे एक दिन का अचानक साथ ही पूरे जीवन को कितना प्यार से भर देता है? (समाप्त)

#दिल्ली से देहरादून