उप-राष्ट्रपति चुनाव : राधाकृष्णन बनाम सुदर्शन रेड्डी
आगामी 9 सितम्बर 2025 को होने वाले 17वें उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक ने भी बीते कल यानी 19 अगस्त, 2025 को अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी। ये सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी होंगे, जो एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन की ही तरह दक्षिण भारत से हैं और उनकी ही तरह एक स्पष्ट वैचारिक स्टैंड लेते हैं। जहां सीपी राधाकृष्णन 17 साल की उम्र से ही आरएसएस से जुड़कर उसकी विचारधारा के समर्थक हैं, वहीं बी. सुदर्शन रेड्डी अपने वाम झुकाव वाले लोकतांत्रिक रूख के लिए जाने जाते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आंकड़ों के लिहाज से सीपी राधाकृष्णन का जीतना लगभग तय है लेकिन इंडिया गठबंधन ने उनके विरुद्ध बी. सुदर्शन रेड्डी को उतारकर इसे महज वैचारिक ही नहीं बल्कि दक्षिण बनाम दक्षिण की रोचक लड़ाई में बदल दिया है। जो लोग अब के पहले तमिलनाडु से आने वाले सीपी राधाकृष्णन को वोट करने के लिए डीएमके की समीकरणात्मक मजबूरी मान रहे थे, वहीं अब बी. सुदर्शन रेड्डी के मैदान में आ जाने की वजह से डीएमके का स्पष्ट वैचारिक नज़रिया सामने आ चुका है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विपक्ष के साझा उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को एक सिद्धांतवादी न्यायाधीश करार दिया है, जिनकी सजगता और संवैधानिकता पर उन्हें और उनकी पार्टी को श्रद्धा है। मतलब साफ है कि भाजपानित एनडीए सीपी राधाकृष्णन के लिए राज्य के प्रत्याशी होने के चलते दबाववश डीएमके के जिस समर्थन की उम्मीद कर रहा था, एमके स्टालिन ने उस पर पानी फेर दिया है। उन्होंने बी. सुदर्शन रेड्डी को एक लोकतांत्रिक, संवैधानिक मूल्यों और बहुलतावाद में विश्वास रखने वाला सजग व्यक्ति बताया है और उन्हें उम्मीद है कि रेड्डी संसद में विपक्ष की आवाज को उचित स्थान प्रदान कराएंगे। इसलिए स्टालिन के मुताबिक उनकी उम्मीदवारी समय के संदर्भ से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय लोकतांत्रिक संस्थाएं दबाव में हैं।
बहरहाल अगर आंकड़ों के लिहाज से देखें तो कल यानी 21 अगस्त 2025 को अपनी उम्मीदवारी का नोमिनेशन फाइल करने जा रहे रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस 79 वर्षीय बी. सुदर्शन रेड्डी के जीतने के तो कतई आसार नहीं हैं। क्योंकि उप-राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए 391 वोटों की ज़रूरत होगी जबकि एनडीए के पास फिलहाल ज़रूरत से 31 वोट ज्यादा हैं। लोकसभा के कुल 543 सदस्यों में से एक सीट खाली है, इसी तरह राज्यसभा की कुल 245 सीटों में से 5 सीटें खाली हैं। इस तरह कुल मौजूदा वोट ताकत 782 बनती है। अत: जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कुल 391 वोट चाहिए होंगे, जबकि एनडीए के पास वर्तमान में कुल 422 सदस्य हैं यानी बहुमत से उसके पास 31 सांसद ज्यादा हैं। जबकि इंडिया गठबंधन के पास कुल 312 सांसद हैं यानी उसके पास बहुमत से 79 सांसद कम हैं। जबकि इन दोनो गठबंधनों के इतर 48 सांसद हैं, जो किसी भी गठबंधन में नहीं हैं लेकिन अगर हम मान लें कि ये सभी बी. सुदर्शन रेड्डी को वोट कर भी दें, तब भी इंडिया गठबंधन के समर्थकों की कुल संख्या 360 तक ही पहुंचेगी यानी उसे बहुमत के लिए 31 सांसदों की अब भी कमी होगी। इसलिए यह तो साफ है कि बिना किसी जबर्दस्त भितरघात के विपक्षी उम्मीदवार के जीतने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है।
लेकिन इंडिया गठबंधन चाहता है कि वह मजबूत विपक्ष दिखे और देश को यह मैसेज जाए कि वैचारिक लड़ाई में विपक्ष ने किसी भी कीमत पर मैदान नहीं छोड़ा। इसलिए कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन उप-राष्ट्रपति पद की यह लड़ाई जोरदार ढंग से लड़ना चाहता है। इसके पीछे एक मकसद इस साल के अंत में बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के लिए भी मतदाताओं को अपनी मज़बूत रणनीति का संदेश देना है। दरअसल कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन के लिए उपराष्ट्रपति पद की यह लड़ाई इसलिए भी ज़रूरी हो गई है, क्योंकि एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन से संबंध है और विपक्ष अपने समर्थक मतदाताओं को यह संदेश देना चाहता है कि वह एक ऐसे घोषित संगठन के सदस्य को वॉकओवर नहीं दे सकता, राहुल गांधी दिन रात जिसकी जबर्दस्त आलोचना करते हैं। विपक्ष का कहना है कि उप-राष्ट्रपति पद का देश के संविधान से विशेष जुड़ाव होता है और इस समय देश में संविधान की सत्ता खतरे में हैं, इसलिए वह एक संविधानवादी न्यायाधीश को अपना उम्मीदवार बनाकर देश को संदेश देना चाहता है कि संविधान पर उसकी गहरी आस्था है।
एक बात यह भी ध्यान देने वाली है कि उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव में व्हिप लागू नहीं होता यानी कोई पॉलिटिकल पार्टी अपने सदस्यों को गाइडलाइन या किसी किस्म का आदेश नहीं जारी कर सकती कि वह उसे ही वोट देगा। इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि क्रॉस वोटिंग के जरिये कोई भी उम्मीदवार चुनाव जीत सकता है। मगर जहां तक व्योहारिक ताकत की बात है तो वह फिलहाल विपक्ष के पास नहीं है कि सत्ता पक्ष या दोनों पक्षों से अलग रहने वाले सांसद क्रॉस वोटिंग करके इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को वोट करें। हालांकि रिटायर्ड न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी अपने एक फैसले की वजह से वाम झुकाव रखने वाले राजनीतिक धड़ों के पसंदीदा उम्मीदवार हैं।
दरअसल साल 2005 में जब छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार थी, उन दिनों छत्तीसगढ़ में ‘सलवा जुडूम’ नामक एक आदिवासी संगठन बनाया गया था और यह प्रचार किया गया था कि यह संगठन आदिवासियों के भीतर की स्वत:स्फूर्त प्रक्रिया से जन्मा है, जिसका उद्देश्य नक्सलियों के खिलाफ गोलबंद होकर लड़ना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि उन्होंने सलवा जुडूम संगठन में जिन आदिवासी युवाओं की विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में भर्ती की है, उन्हें तुरंत डिसमिस किया जाए और सलवा जुडूम को बंद किया जाए। वास्तव सलवा जुडूम शब्द स्थानीय गोंडी भाषा का है, जिसका मतलब होता है, ‘शांति अभियान’। जबकि सर्वोच्च अदालत ने इसे राज्य समर्थित सशस्त्र मिलिशिया आंदोलन माना था। वास्तव में तब से ही कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों के लिए बी सुदर्शन रेड्डी चहेते न्यायाधीश के रूप में उभरे थे। उनके नाम की घोषणा करते हुए जैसे कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा भी है कि वह ‘गरीबों के हमदर्द न्यायाधीश’ रहे हैं। उन्होंने अपने कई निर्णयों में कमजोर तबके की ओर अपना रुख स्पष्ट रूप से दिखाया है। इस तरह देखें तो जीत न पाने की सच्चाई के बावजूद भी बी. सुदर्शन रेड्डी विपक्ष के मजबूत वैचारिक उम्मीदवार हैं और इसका विपक्ष को राजनीतिक रूप से फायदा होगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर