भोजन की बर्बादी को रोका जाना चाहिए
भारत में आज भी व्याप्त भुखमरी और अन्न की बर्बादी को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की ताज़ा रिपोर्ट ने एक ओर जहां कृषि एवं आर्थिक विशेषज्ञों को चौंकाया है, वहीं कृषि धरातल पर अन्न पदार्थों के उत्पादन में भारी वृद्धि के बावजूद भूख का आलम पैदा होने की स्थिति ने राजनीतिक और सामाजिक धरातल पर चिन्ता भी उत्पन्न की है। इस रिपोर्ट में वर्णित एक अन्य तथ्य के अनुसार यह बात इस चिंता को और बढ़ाने के लिए काफी है कि देश में प्रति वर्ष 92,000 करोड़ रुपये का तैयार भोजन यूं ही नष्ट हो जाता है। तैयार भोजन नष्ट होने का एक बड़ा कारण अधिकतर राज्यों में ब्याह-शादियों अथवा अन्य सामाजिक/पारिवारिक समारोहों के अवसर पर अनियंत्रित और अनियोजित तरीके से अथाह मात्रा में भोजन तैयार किया जाना होता है। ऐसे समारोहों में प्राय: इस बचे-खुचे अन्न को कूड़े-कचरे के ढेर में फैंक दिया जाता है।
दूसरी ओर देश भर में स्थिति यह भी है कि देश के लगभग 20 करोड़ लोगों को प्रतिदिन भर-पेट भोजन नसीब नहीं होता, तथा इनमें से अधिकतर लोग भूखा सोने को विवश होते हैं। इस तथ्य को सरकार भी स्वीकार करती है, तभी तो प्रत्येक वर्ष केन्द्र सरकार की ओर से 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिये जाने की योजना लागू की गई है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष भूख से 32 लाख से अधिक मौतें होती हैं यानि प्रतिदिन 24000 का आंकड़ा पार होता है। सितम यह है कि इनमें से एक तिहाई मौतें अकेले भारत देश में होती हैं। यह तथ्य भी परेशान करने वाला है कि इन मौतों में बच्चे अधिक संख्या में होते हैं। नि:संदेह यह आंकड़ा भी बेहद चिन्ताजनक है कि भूख के सूचकांक में 121 देशों में से भारत 107वें स्थान पर आता है। पिछले दशक के शुरू में यह सूचकांक 94वें स्थान पर था। सन् 2018 में भारत 102वें स्थान पर आ गया, किन्तु 2022 में देश को घनीभूत करने वाला तथ्य यह है कि नेपाल, म्यांमार, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देश भी भारत से कहीं ऊंचे स्थान पर हैं। चीन, रूस, यूक्रेन, क्यूबा और कुवैत जैसे देश भी भूख के मामले में भारत से कहीं बेहतर मुकाम पर स्थापित हैं। इस रिपोर्ट के एक अन्य अंश में यह भी बताया गया है कि भूख के इस आलम में देश में कुपोषण खासकर बच्चों के कुपोषण की समस्या भी बढ़ी है। देश में भूख और कुपोषण का शिकार बच्चों की संख्या 19 करोड़ सात लाख से भी अधिक है। ऐसे बच्चे अक्सर हिंसा और अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं। देश में बाल अपराधों की संख्या बढ़ने के पीछे ऐसे बच्चे भी एक बड़ा कारण होते हैं।
देश की आबादी विगत पांच-छह दशकों में बड़ी तेज़ी से बढ़ी है। इस रिपोर्ट के एक अंश के अनुसार देश में इस समय गरीबों की तादाद 27 करोड़ से अधिक है। यह एक बेहद अच्छी बात है कि देश के किसानों ने इस दौरान प्रचुर मात्रा में अन्न उत्पादन को बढ़ाया है। हालांकि बढ़े हुए इस उत्पादन के रख-रखाव हेतु पर्याप्त मात्रा में गोदाम आदि न होने से बड़ी मात्रा में अनाज खराब हो जाता है। देश में बड़ी संख्या में बढ़े होटलों, रेस्तराओं और ढाबों की भीतरी अव्यवस्था और ऐसे भोजनालयों में बचे-खुचे अन्न को सहेजने की संस्कृति न होने से बड़ी मात्रा में पका हुआ भोजन बर्बाद हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर वर्ष प्रत्येक नागरिक 55 किलो भोज्य पदार्थ नष्ट करता है। इसमें से 60 प्रतिशत भोजन घरों में नष्ट होता है। 28 प्रतिशत भोजन रेस्तराओं और ढाबों में खराब होता है। विदेशों में भोजन को बचाने की संस्कृति बड़े स्तर पर पाई जाती है। अनेक देशों में होटलों, रेस्तराओं और ढाबों में खाने के उपरांत बचा हुआ भोजन पदार्थ पैक करा के घर ले जाने की प्रथा है। जर्मनी में तो खान-पान वाले अनेक स्थलों में जूठन छोड़ने पर जुर्माना किये जाने का प्रचलन है। भारत में भी कई शहरों में बचा हुआ भोजन पैक कराने की व्यवस्था है, किन्तु इसे प्रथा बनाये जाने की बड़ी ज़रूरत है। अक्सर जागरूक न होने के कारण लोग होटलों और ढाबों में आवश्यकता से अधिक भोज्य पदार्थ मंगवा लेते हैं किन्तु पैकिंग करवाने को अपमानजनक अथवा अपनी शान के खिलाफ जान कर उसे थाली अथवा प्लेटों में ही पड़ा रहने देते हैं। यह अच्छी बात नहीं है। ऐसे बचे हुए भोजन को सम्भाला जाना चाहिए। ग्राहक यदि स्वयं ऐसा न करें, तो होटल-ढाबा वालों को ऐसे भोजन को सम्भाल कर किसी उचित केन्द्र में भेजना चाहिए ताकि वो किसी की भूख को मिटाने के काम आ सके। हम समझते हैं कि भारत विकासशील देशों में शुमार है। देश में गरीबी और भूख का आलम अभी भी यत्र-तत्र मौजूद है। यह एक अच्छी बात है कि देश में कृषि के सभी पदार्थों में उत्पादन बढ़ा है, किन्तु देश में प्रत्येक वर्ष बड़े स्तर पर अनाज की बर्बादी और लगभग 8 करोड़ टन तक पके हुए भोजन का बर्बाद होना कोई अच्छी बात नहीं है। हम कई मामलों में विदेशी लोगों की नकल करते हैं। विदेशों से हमें अनाज और खास तौर पर पके हुए भोजन को बचाने की इस एक अच्छी आदत को भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए। इससे विकासशील होने के पथ पर देश के कदम और मजबूत होंगे।