कृषि क्षेत्र कर सकता है अमरीकी टैरिफ का मुकाबला 

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ युद्ध के दौरान ही वित्तीय वर्ष 2025 की पहली तिमाही के जीडीपी के परिणाम इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि ट्रम्प द्वारा भारत की अर्थ-व्यवस्था को ‘मृत अर्थ-व्यवस्था’ करार देने के बावजूद हमारी जीडीपी विकास दर चीन से अधिक रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जीडीपी 7.8 प्रतिशत रही है। यह पिछले एक साल यानी कि अप्रैल-जून 2024, जुलाई-सितम्बर 2024, अक्तूबर-दिसम्बर 2024 और जनवरी-मार्च 2025 की तुलना में भी अधिक है। सबसे खासबात यह है कि जीडीपी में बढ़ोतरी का श्रेय कृषि और सर्विस सेक्टर को जा रहा है। कृषि सेक्टर ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह अर्थ-व्यवस्था का प्रमुख स्तंभ है और तेज़ी से विकसित होती भारतीय अर्थ-व्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। निश्चित रूप से इसका श्रेय अन्नदाता को तो जाता ही है, इसके साथ ही सरकार की किसानोन्मुखी और कृषिनोन्मुखी नीति को भी जाता है। कृषि और संबंध क्षेत्र जिसमें कृषि के साथ ही पशुपालन, वानिकी और मत्स्य पालन शामिल है। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारतीय अर्थ-व्यवस्था में कृषि क्षेत्र का 14 प्रतिशत योगदान है तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की आजीविका कृषि क्षेत्र पर आज भी निर्भर है। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के स्वप्न को पूरा करने में कृषि क्षेत्र भी पीछे नहीं रहने वाला है। देश में करीब 51 प्रतिशत यानी कि 159 मिलियन हैक्टेयर भूमि में खेती हो रही है। इसमें से 50 प्रतिशत से कुछ अधिक भूमि ही सिंचित है जबकि बहुत बड़ा क्षेत्र मॉनसून पर निर्भर है। 
कृषि और अन्नदाता की महत्ता को कोरोना काल ने बेहतर तरीके से समझा दिया है। कोरोना काल में कृषि सेक्टर ने दो तरह से सहभागिता निभाई। एक तो जहां सब कुछ लॉकडाउन की भेंट चढ़ रहा था यहां तक कि घर में कैद होकर रह गए थे, तब भी कृषि सेक्टर अपनी प्रभावी भूमिका निभाता रहा, वहीं दूसरी ओर अन्नदाता की मेहनत से देश के गोदामों में भरे खाद्यान्न के भण्डारों ने देश में खाद्यान्न की उपलब्धता बनाये रखी। आज भी करीब 80 करोड़ देशवासियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। यह अपने आप में बड़ी बात है। योजनावद्ध तरीके से एक ओर किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं, वहीं खासतौर से दलहन-तिलहन में भी देश को आत्म-निर्भर बनाने के प्रयास जारी हैं। किसान सम्मान निधि किसानों के लिए बड़ा सहारा बनती जा रही हैं, वहीं ब्याजमुक्त कृषि ऋण, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का बढ़ता दायरा और ई-नाम मण्डी, प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा, स्टोरेज सुविधा बढ़ाने के साथ ही समय पर खाद-बीज आदि की उपलब्धता का प्रभाव सामने हैं। 
एनएसओ की रिपार्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी 3.7 प्रतिशत रही है जबकि साल भर पहले यह 1.5 थी। निर्यात के क्षेत्र में भी कृषि क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दरअसल ट्रम्प चाहते हैं कि भारत अपना बाज़ार अमरीका के कृषि एवं डेयरी उत्पादों के लिए खोल दे। अमरीका के दबाव के आगे झुकने की बजाय भारत सरकार ने ट्रम्प के टैरिफ  से निपटने का संकल्प लिया है। यह अपने आप में बड़ी बात है। हो सकता है कि आने वाली तिमाही में ट्रम्प के टैरिफ  का असर दिखाई दे, परन्तु जिस तरह से सरकार द्वारा वैकल्पिक प्रयास आरंभ किये जा रहे हैं, उससे लगता है कि अर्थ-व्यवस्था पर नकारात्मक असर नहीं होगा या होगा भी तो देश इससे निपटने को तैयार है। 50 प्रतिषत टैरिफ की चुनौती को आज समूचा देश निपटने को तैयार है।
समूचे भारत की खाद्य सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी कृषि क्षेत्र पर ही है। अमरीकी टैरिफ नीति के कारण निर्यात पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को भी अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर पूर्ति करने की बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही कृषि एवं किसानी की अपनी चुनौतियां बरकरार है। वर्तमान में पंजाब में आई बाढ़ के कारण लगभग पौने दो लाख हैक्टेयर फसलें बर्बाद हो गई हैं। कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है। बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव भी कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कृषि क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज, परिवहन की कोल्डचेन और भण्डारण की बेहतर व्यवस्थाओं की दरकार है। कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र और फूड पार्क जिस तरह से आकार लेने चाहिए थे, वे ले नहीं पाये हैं। बीमा क्षेत्र में भी बहुत किया जाना अपेक्षित है तो कृषि उपज की खरीद व्यवस्था और एमएसपी पर खरीद को लेकर भी तेज़ी से काम किया जाना है। सरकार को एक बात समझनी चाहिए कि खेती क्षेत्र में जो भी सब्सिडी देय है, उसे उत्पादकता से जोड़ा जाये यथा कृषि लागत या यों कहे कि खाद-बीज, कीटनाशक आदि को किट के रूप में उपलब्ध कराया जाये तो उसका लाभ अनुदानित राशि के स्थान पर लागत मिलने से उसका उपयोग खेती किसानी में ही होने से उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में ही होगा। इसी तरह से खरीद व्यवस्था में अभी भी और सुधार करते हुए बिचौलियों को व्यवस्था से दूर करना होगा। खैर, ये सब दीर्घकालिक सुधार कार्य हैं, परन्तु बेहतर जीडीपी प्रदर्शन और कृषि क्षेत्र की उल्लेखनीय हिस्सेदारी को प्रोत्साहित करते हुए सराहना की जानी चाहिए। 

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