भविष्य में ‘युवा राष्ट्र’ नहीं रहेगा भारत !
आज दुनिया एक बेहद महत्वपूर्ण जनसंख्या मोड़ पर खड़ी है। एक ओर कुछ देशों में अब भी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है तो दूसरी ओर कई देश गंभीर गिरावट का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की ‘विश्व जनसंख्या संभावना 2024’ रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दशकों में वैश्विक आबादी का विकास पहले के अनुमान से धीमा रहेगा।
2030 के बाद दुनिया की जनसंख्या लगभग 10.2 अरब तक पहुंचेगी जो पिछले अनुमानों से करीब 70 करोड़ कम है। इसका मतलब है कि जन्म दर लगातार घट रही है और बहुत से देशों में लोग अब परिवार छोटा रखने लगे हैं। इस बदलाव के असर गहरे हैं। जब किसी देश में जन्म दर गिरती है और बुजुर्गों की संख्या तेजी से ब?ती है तो सामाजिक सुरक्षाए स्वास्थ्य सेवाएँए पेंशन और अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ता है।
ऐसे में सरकारों को अधिक वृद्ध लोगों की देखभाल करनी पड़ती है लेकिन कार्यबल यानी काम करने वाले युवाओं की संख्या घटने लगती है। यही वजह है कि आज जनसंख्या का यह बदलाव केवल जनसंख्या विज्ञान का विषय नहीं, बल्कि एक गंभीर आर्थिक और सामाजिक चुनौती भी बन गया है। भारत लंबे समय तक ‘युवा राष्ट्र’ कहलाता रहा है। यह वह देश है जहां कामकाजी उम्र की आबादी सबसे ज्यादा मानी जाती थी लेकिन अब आंकड़े बदलती तस्वीर दिखा रहे हैं। नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) 2023 की रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 1971 में 5.2 थी, जो अब घटकर 1.9 रह गई है। यह 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से भी कम है। इसके साथ ही 0-14 साल की आयु वर्ग की हिस्सेदारी लगातार घट रही है। 1991 में यह 36 प्रतिशत से ज्यादा थी जो अब 24 प्रतिशत पर आ गई है यानी नए बच्चों की संख्या कम हो रही है। दूसरी तरफ कामकाजी उम्र (15-59 साल) वाले लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 66 प्रतिशत हो चुकी है। यह फिलहाल भारत की आर्थिक ताकत है, लेकिन आने वाले समय में यही समूह धीरे-धीरे वृद्ध होता जाएगा। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि 60 साल और उससे ऊपर की आबादी अब लगभग 10 प्रतिशत हो चुकी है। दक्षिण भारत के राज्यों जैसे केरल और तमिलनाडु में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 14-15 प्रतिशत तक पहुंच गई है। शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) और जन्म दर में गिरावट सकारात्मक है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि आने वाले वर्षों में भारत का युवा आधार सिकुड़ सकता है।
जनसंख्या असंतुलन भारत अकेला नहीं है। एशिया, यूरोप और अमरीका के कई देश इस चुनौती से जूझ रहे हैं। जापान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2008 के बाद से वहां की जनसंख्या लगातार घट रही है। शादी और बच्चों के प्रति रुझान कम हो चुका है और अब वहां बुजुर्गों की संख्या युवाओं से कहीं अधिक हो गई है। इसी प्रकार दक्षिण कोरिया में जन्म दर दुनिया की सबसे कम है, जिसके कारण सरकार को कई सामाजिक और आर्थिक संकट झेलने पड़ रहे हैं। यूरोप भी इस संकट का सामना कर रहा है। ग्रीस में जन्म दर इतनी घट गई है कि वहां 5 प्रतिशत स्कूल बंद करने पड़े। बुल्गारिया, लिथुआनिया और लातविया जैसे देशों में 2050 तक जनसंख्या में 20 प्रतिशत से अधिक गिरावट आने की आशंका है। इटली और जर्मनी जैसे देशों की स्थिति भी चिंताजनक बताई जा रही है।
टेस्ला और स्पेसएक्स के संस्थापक एलन मस्क का मानना है कि ‘कम जन्म दर मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा है।’ उनका कहना है कि अगर हर परिवार तीन बच्चे पैदा करे, तो जनसंख्या स्थिर रह सकती है। वह बार-बार चेतावनी देते हैं कि अगर जन्म दर घटती रही, तो ‘पश्चिम का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।’ मस्क ‘जनसंख्या विस्फोट’ की चिंता को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि यह एक ‘भ्रांत धारणा’ है और असली खतरा जनसंख्या गिरावट है। उन्होंने यह भी कहा है कि वास्तव में प्रतिस्थापन दर 2.1 नहीं बल्कि लगभग 2.7 होनी चाहिए क्योंकि कुछ परिवार बच्चे नहीं पैदा करते।
विशेषज्ञों का मानना है कि मस्क की बातों में कहीं-कहीं अतिशयोक्ति भी हैं। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट बताती हैं कि दुनिया की आबादी अभी भी बढ़ रही है और यह 2100 तक चरम पर पहुंचेगी। गति धीमी हो रही है और कई देशों में गिरावट ज़रूर देखने को मिल रही है। कुछ अध्ययनों का तो कहना है कि आबादी घटने के बावजूद अगर शिक्षा, तकनीक और स्वास्थ्य में निवेश बढ़े तो समाज का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है।
घटती जनसंख्या और बढ़ती वृद्धावस्था आज दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती है। जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोप और रूस में इसके प्रभाव पहले से दिख रहे हैं। अमरीका और भारत जैसे देशों में भी इसका असर धीरे-धीरे महसूस किया जाने लगा है। जानकारों के अनुसार भारत को अपनी युवा आबादी के वर्तमान लाभ का पूरा उपयोग करना होगा और साथ ही भविष्य की तैयारी करनी होगी। यदि अभी से परिवार-अनुकूल नीतियां, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दशकों में भारत भी वही स्थिति झेलेगा जो आज जापान या यूरोप झेल रहे हैं। (अदिति)