नेपाल की अंगड़ाई
विगत सोमवार नेपाल की राजधानी काठमांडू में जो गड़बड़ शुरू हुई थी, वह बाद में देश के अन्य हिस्सों में भी फैल गई थी। ‘जेन-ज़ैड’ नामक बना युवाओं का संगठन जिसका अब तक कोई पुख्ता नेता सामने नहीं आया, ने व्यापक स्तर पर हंगामा करते हुए संसद, प्रधानमंत्री आवास, राष्ट्रपति कार्यालय, सरकारी इमारतों और कई राजनीतिक पार्टियों के कार्यालयों पर हमले किए थे। इसके साथ ही थानों और चौकियों में आगज़नी करने के साथ-साथ तोड़-फोड़ भी की गई थी। बात सोशल मीडिया की साइटों को बंद करने के सरकारी निर्देश से शुरू हुई थी। वैसे युवाओं में विगत लम्बी अवधि से कई अन्य कारणों के दृष्टिगत भी रोष था, जिसमें बेरोज़गारी सबसे अहम मुद्दा था। वे सड़कों पर आ गए। उनके पुलिस के साथ हुए टकराव में अब तक लगभग 34 व्यक्ति मारे जा चुके हैं। भड़की भीड़ प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के त्याग-पत्र की मांग कर रही थी। यह गड़बड़ इस सीमा तक फैल गई कि दूसरे ही दिन ओली को अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ा। बेचैनी की इस चिंगारी ने एक बार तो समूचे देश में भीषण आग लगा दी। नेपाल की जनसंख्या लगभग 3 करोड़ है। वहां बहुसंख्या में लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जो वहां बहुत प्रभावशाली बन चुका है।
नेपाल हिमालय के पहाड़ों में बसा छोटा-सा देश है, जिसकी सीमाएं भारत और चीन के साथ लगती हैं। यहां सदियों से राजशाही शासन चलता रहा है। स्रोतों की कमी के कारण यहां ज्यादातर लोग ़गरीबी भरा जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होते रहे हैं। अपना देश छोड़ कर आज लगभग 60 लाख नेपाली भारत में बसे हुए हैं। इसके अतिरिक्त यहां के ज्यादातर लोग लगातार खाड़ी देशों की ओर भी रुख करते रहे हैं। 17 वर्ष पहले वर्ष 2008 में यहां ऐसा चमत्कार हुआ था कि लोगों ने सदियों पुराने राजशाही शासन से निजात पा ली थी। उससे पहले 10 वर्ष तक अलग-अलग कम्युनिस्ट संगठनों, जिन्हें माओवादी भी कहा जाता था, ने राजशाही के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया था। चाहे उस समय वहां की प्रभावशाली पार्टी नेपाली कांग्रेस भी सक्रिय रही थी परन्तु राजशाही को पलटने में कम्युनिस्ट संगठनों की अहम भूमिका रही थी। उसके बाद यहां बड़ी मेहनत और सूझवान ढंग से लिखित संविधान तैयार किया गया। कई वर्षों तक इसके बनने में अनेक कठिनाइयां भी आईं, परन्तु लिखित संविधान बनने और जन-साधारण को मतदान करके सरकार बनाने का अधिकार मिलने से यह उम्मीद जगी थी कि नेपाल में नए युग की शुरुआत बहुत उम्मीदों भरपूर होगी, परन्तु पिछले 17 वर्षों में यहां राजनीतिक स्थिरता नहीं आ सकी। इन वर्षों में अलग-अलग पार्टियों का प्रशासन रहा, परन्तु ज्यादातर किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने के कारण मिली-जुली सरकारें ही बनती रहीं, जो ठोस और सफल योजनाएं बना कर उन्हें क्रियात्मक रूप देने में विफल रहीं।
यहां बनी कम्युनिस्ट पार्टियों से संबंधित प्रधानमंत्रियों की बड़ी निर्भरता चीन पर ही रही है। वैसे भारत के साथ नेपाल के संबंध बहुत पुराने होने के कारण और दोनों देशों की सांस्कृतिक निकटता होने के कारण यह देश भारत पर भी कई पक्षों से निर्भर रहा है। आज भी दोनों देशों के वर्षों पुराने हुए समझौतों के कारण नागरिकों को एक-दूसरे के देश में आने-जाने की छूट है और दोनों के बीच ज्यादा पाबंदियां नहीं हैं, परन्तु आश्चर्यजनक बात यह है कि बड़े परिपक्व कम्युनिस्ट नेता भी देश को स्थिर रखने में विफल रहे। चाहे उन्होंने भारत और चीन के साथ संबंधों में बड़ा संतुलन बना कर भी रखा और दोनों देशों से अपने मूलभूत ढांचे के निर्माण के लिए बड़ी सहायता लेते रहे परन्तु इसके बावजूद यह महसूस होता रहा कि ज्यादातर लोग बदलते शासन से संतुष्ट नहीं हैं। के.पी. शर्मा ओली पहले तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके थे। अब चौथी बार गठबंधन सरकार में उन्हें प्रधानमंत्री बने मात्र वर्ष भर का समय ही हुआ था। इस बार वह नेपाल के 14वें प्रधानमंत्री बने थे परन्तु एकाएक असन्तोष का ज्वालामुखी बन कर फूटना और एक मज़बूत प्रधानमंत्री को एक दिन में ही त्याग-पत्र देने के लिए विवश कर देना, एक बड़ी आश्चर्यजनक बात ज़रूर कही जा सकती है।
चाहे एकाएक समाज में और राजनीति में उथल-पुथल हो गई है परन्तु ‘जेन ज़ैड’ के युवा समूह की ओर से कोई दूसरा विकल्प पेश नहीं किया जा सका। यह समूह संसद को भंग करके संविधान में कुछ संशोधन करने के उपरांत नए चुनाव करवाने पर बज़िद है परन्तु इस समय इन चुनावों तक किसी अंतरिम सरकार का गठन भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। विरोध करने वाले ‘जेन ज़ैड’ समूह के प्रतिनिधियों तथा राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के साथ सेना प्रमुख द्वारा लगातार विचार-विमर्श किया जा रहा है। अंतरिम सरकार के प्रमुख के लिए कुछ नाम भी सामने आ रहे हैं, परन्तु इनमें सबसे उभरता नाम चीफ जस्टिस रह चुकीं सुशीला कार्की का ही आ रहा है। राष्ट्रपति पौडेल ने ओली का त्याग-पत्र तो स्वीकार कर लिया था परन्तु नए चुनावों तक अंतरिम सरकार का गठन बेहद ज़रूरी होगा, जिसके बाद ही नेपाल के लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार बन सकेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह नया बदलाव नेपाल के लोगों के लिए अच्छा सुखद सन्देश लाने में सफल होगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द