क्या है पंजाब में बाढ़ से हुए नुकसान और राहत फंडों का कच्च सच ?

बक रहा हूं जुनूं में क्या क्या कुछ,
कुछ न समझे ़खुदा करे कोई।
मिज़र्ा ़गालिब का यह शेअर सिर्फ इतनी बात ही कहता है कि मैं जुनून में पता नहीं क्या-क्या गलत बोल रहा हूं, भगवान करे, मैं जो बोल रहा हूं, वह किसी को कुछ समझ न आए। परन्तु आज पंजाब में बाढ़ से हुई तबाही और इस लिए दी जाने वाली सरकारी सहायता के संबंध में जो बयानबाज़ी हो रही है, लगता है कि हर नेता सिर्फ विवाद खड़ी करने के लिए ही बयानबाज़ी कर रहा है, और यह सोच रहा है कि भगवान करे, किसी को सच्चाई समझ न आए। बस, यही समझ आए कि मैं और मेरी पार्टी ही लोगों की सच्ची हमदर्द है और मेरे वोट पक्के हो जाएं।
सबसे बड़ा विवाद तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे पर उनके द्वारा घोषित 1600 करोड़ रुपये की नाममात्र सहायता के ऐलान के साथ शुरू हुआ है। ऊपरी नज़र से देखें तो लगता है कि पंजाब सरकार के अधिकारियों ने पंजाब के नुकसान का अंदाजा 13 हज़ार 289 करोड़ रुपये लगाया था और प्रधानमंत्री ने कहा कि पंजाब के पास पहले ही राज्य आ़फत फंड भाव एस.डी.आर.एफ. (स्टेट डिज़ास्टर रिस्पौंड फंड) में 12000 करोड़ रुपये जमा हैं। मैंने 1600 करोड़ रुपये और दिए हैं और यह 13600 करोड़ रुपये हो गए हैं। पंजाब द्वारा नुकसान के अनुमान 13289 करोड़ से तो यह 311 करोड़ रुपये ज्यादा ही है। और क्या चाहिए परन्तु क्या यह 13600 करोड़ रुपये लोगों को दिए जा सकते हैं। नहीं। क्यों नहीं, इस पर विचार आगे चल कर करते हैं लेकिन इस 12000 करोड़ रुपये के आंकड़े ने पंजाब की राजनीति को गर्म कर दिया है। विपक्ष कह रहा है कि ये रुपये पंजाब ने अन्य खातों में उपयोग कर लिए हैं। इसकी जांच करवाई जाए और इसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाए जबकि पंजाब के वित्तमंत्री कहते हैं कि यह रुपये किताबों में तो है परन्तु वास्तव में यह पंजाब के पास फिज़िकली भाव भौतिक रूप में नहीं है क्योंकि ये रुपये पंजाब की जी.डी.पी. में गिनकर कज़र्े की हद बढ़ा ली गई है जबकि वास्तव में यह रुपये रिज़र्व रुपये हैं, जो उपयोग ही नहीं किये जा सकते। यह धन सिर्फ आपदा प्रबंधन के लिए ही होता है। वैसे यह रुपये पंजाब सरकार आ़फत प्रबंधन के लिए बैंकों से ले सकती है परन्तु उसके सिर पर यह कज़र् गठरी और बड़ा देगा। परन्तु यदि सरकार यह पैसे ले भी ले तो भी इस पैसे के उपयोग के लिए बने कानूनों के अनुसार इसको उपयोग तो शायद वह पंजाब के बाढ़ से प्रभावित हुए व्यक्तियों की कोई खास मदद नहीं कर सकेगी। उदाहरण के तौर पर पंजाब में अब तक के अंदाज़े अनुसार 1 लाख 84 हज़ार 938 हैक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। हालांकि हमारी समझ के अनुसार यह आंकड़ा अभी और बढ़ेगा परन्तु खैर, इस अनुसार भी 4 लाख 57 हज़ार एकड़ फसल खराब हुई है। यदि धान की फसल तबाह हुई है तो 70 हज़ार रुपये प्रति एकड़ का नुकसान है। यदि कहीं गन्ने या अन्य फसलें तबाह हुई हैं तो करीब 1 लाख प्रति एकड़ का नुकसान है। पर चलो, हम मान लें कि कहीं कम कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है तो भी प्रति एकड़ 50 हज़ार रुपये का नुकसान हुआ तो यह नुकसान 2285 करोड़ रुपये का है परन्तु एस.डी.आर.एफ. के 12000 करोड़ रुपये में से तो मौजूदा कानून अनुसार प्रति एकड़ मुआवज़ा सिर्फ 6800 रुपये ही दिया जा सकता है जो 2285 करोड़ रुपये के मुकाबले सिर्फ 310 करोड़, 76 लाख रुपये ही बनता है। बाकी का करीब 2000 करोड़ अधिक कहां से आएगा? कहां से लिया जा सकता है? ऐसी ही हालत मकानों के नुकसान की है। इस फंड के अधीन किसी का मकान पूरी तरह बर्बाद होने या 60 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर उसको 1 लाख 50 हज़ार रुपये ही मिलने हैं। यदि प्रधानमंत्री आवास फंड की बात भी करें तो उसमें से सिर्फ 1 लाख 20 हज़ार रुपये ही मिल सकते हैं। अब सोचो कि चाहे यह 12000 करोड़ रुपये पंजाब सरकार रिज़र्व खाते में से निकल भी ले और पंजाब पर और कज़र्ा भी चढ़ जाए परन्तु इस पैसे के साथ बाढ़ प्रभावित हुए लोगों की सहायता क्या होगी। क्या बनेगा उनका?
फिर पंजाब सरकार का यह प्रचार बिल्कुल बेमानी है कि पंजाब प्रति एकड़ 20,000 रुपये का जुर्माना देगा जो देश में सबसे अधिक है। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने प्रति बीघा 10 हज़ार रुपये देने का ऐलान किया है। यह तो 50,000 रुपये एकड़ हो गया। इसलिए पंजाब सरकार को इस बात पर ज्यादा ज़ोर देना चाहिए कि केन्द्र सरकार आपदा फंड बांटने पर लगाई शर्तें हटाए और इसके वास्तव नुकसान की पूर्ति के लिए खर्च करने दे। केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री के लिए भी सोचने की बात है कि पंजाब के 2064 गांवों का नुकसान हुआ है और वह सिर्फ 1600 करोड़ की सहायता का ऐलान करते हैं, भाव प्रति गांव सिर्फ 77 लाख रुपये के करीब। क्या यह जायज़ है? आज के युग में पूरे गांव की सहायता के लिए सिर्फ 77 लाख रुपये किसी तरह भी जायज़ नहीं ठहराए जा सकते। प्रधानमंत्री जी, पंजाबियों में पहले ही पंजाबी बोलते इलाकों, पंजाब के पानी, बिजली, डैमों पर कब्ज़ों, पंजाब की अंतर्राष्ट्रीय सीमा द्वारा व्यापार पर पाबंदियां, पंजाबी जुबान के साथ धक्का और चंडीगढ़ संबंधी केन्द्रीय खेलें करके बेगानेपन का अहसास है, परन्तु आप सिर्फ 1600 करोड़ रुपये की सहायता के साथ इस अहसास की शिद्दत और बढ़ाई है।
मुझ से मेरे अपने लोग
क्यों रहते हैं बेगाने से, 
मेरा दर्द उन्हें क्यों अपना
दर्द कभी नहीं लगता है?
नुकसान हुआ क्या है?
इस समय पंजाब सरकार के मंत्री तो 20,000 करोड़ रुपये के नुकसान की बात करते हैं और पंजाब का प्रशासन 13 हज़ार 289 करोड़ की। पहली बात तो यह है कि प्रधानमंत्री के पास आंकड़े पेश करने के समय इतने फर्क की बात करना पंजाब सरकार के लिए ही नामोशी की बात है परन्तु ज़रा ध्यान के साथ देखें तो आधिकारिक तौर पर प्रशासन ने नुकसान कैसे आंका है। पंजाब के 2064 गांव और करीब 4 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। अब तक 53-54 मौतों की खबर है और कुछ लोग लापता भी हैं। सरकार के हिसाब से पीने योग्य पानी की योजनाओं को पहुंचे नुकसान का अंदाज़ा 1900 करोड़ रुपये, ग्रामीण सड़कों के लिए मंडी बोर्ड का नुकसान 1022 करोड़ रुपये, लोक निर्माण विभाग का 1920 करोड़ रुपये, नदियों के बांध, ड्रेनों और नहरों का नुकसान 1520 करोड़ रुपये, ग्रामीण डिस्पैंसरियों का नुकसान 780 करोड़ रुपये, मंडियों का नुकसान 317 करोड़ रुपये, स्कूलों का नुकसान 542 करोड़ रुपये, बिजली और पशु-पालन विभाग का नुकसान 206 करोड़ रुपये होने का अंदाज़ा लगाया है। 
इसके अलावा खाद्य आपूर्ति विभाग, वन विभाग और कई अन्य विभागों के नुकसान के आंकड़े अभी आने हैं परन्तु लोगों का निजी नुकसान इससे कहीं अधिक है और एक अंदाज़े अनुसार कुल मिला कर पंजाब का नुकसान 25000 करोड़ रुपये के आस-पास पहुंच जाएगा। इसलिए ज़रूरी है कि एक तो सरकार तत्काली राहत की ओर ध्यान दे और दूसरा वास्तविक नुकसान का लेखा-जोखा सही तरह करवाया जाए। लेकिन इस बार 2023 की तरह बात सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित न रहे, जबकि 2023 में किसानों को सिर्फ 6800 रुपये प्रति एकड़ दे कर ही मामला खत्म कर दिया गया था। लेकिन उस समय बाढ़ सीमित थी। इस बार आधा पंजाब इसकी चपेट में है और नुकसान भी ज्यादा है। पंजाब के हालात को देखकर चाहे पूरा सच लिखना शायद संभव नहीं, पर एक उदासी सी ज़रूर छाई हुई है, सपना अहसास के ल़फ्ज़ों में :-
उदास उदास ़फज़ा है कायनात ठहरी है, 
लबों पे सब के कोई तो बात ठहरी है।
बिट्टू का सराहनीय प्रयास
केन्द्रीय रेल राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहादत के दिन को मनाने के लिए देश की अलग-अलग सिख धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करके जो पहल की है, वह प्रशंसनीय है। इसमें दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम श्री गुरु तेग बहादुर रेलवे स्टेशन, तख्त पटना साहिब के लिए रोज़ाना रेल सेवा शुरू करने, शताब्दी वर्ष के दौरान पांच तख्तों को जोड़ने वाली रेलगाड़ी 3 माह के लिए चलाने, वंदे भारत और अमृत भारत जैसी आधुनिक रेल गाड़ियों का श्री हज़ूर साहिब से सम्पर्क बढ़ाने, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के श्लोक, साखियां देशभर के रेलवे स्टेशनों और रेलगाड़ियों में प्रदर्शित किए जाने, हरियाणा, दिल्ली, पटना और हज़ूर साहिब के सभी स्टेशनों पर पंजाबी भाषा में साईन बोर्ड लगाने, सचखंड एक्सप्रैस में लंगर की सुविधा देने की व्यवस्था करने और कुछ अन्य सुझावों पर विचार किया गया है। हम समझते हैं कि केन्द्रीय राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू की यह पहल प्रशंसनीय है पर यह सिर्फ सुझावों और प्रचार लेने तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए बल्कि अच्छा हो कि इस पर और विचार करके गुरु तेग बहादुर साहिब जो भारत के इतिहास में एक लासानी शहादत के प्रतीक हैं और उनके साथ शहीदी देने वाले भाई मती दास जी, भाई सती दास जी और भाई दयाला जी के नाम पर भी कुछ रेलवे स्टेशनों के नाम ही न रखे जाएं बल्कि इस लासानी शहादत के समय अभूतपूर्व साहस दिखाने वाले भाई जैता जी (जीवन सिंह) और भाई लक्खा शाह की याद में भी रेलवे स्टेशनों के नाम रखे जाएं।
धर्म हेति साका जिनि कीया।।
सीसु दीया पर सिररु न दीया।।
(पातशाही 10)
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड़ खन्ना। 
-मो. 92168-60000

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