बाढ़ का दु:खांत सरकार की जवाबदेही

पंजाब गम्भीर संकट में फंसा हुआ है। इसके कई ज़िलों में व्यापक स्तर पर फसलें खराब हुई हैं। इसके अतिरिक्त पानी के जमा होने के कारण ज्यादातर लोग घर से बेघर हुए हैं। पशु धन का नुक्सान भी अनुमान से अधिक हुआ है। ऐसी स्थिति में लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार की ज़िम्मेदारी जहां प्रत्येक पक्ष से बहुत बढ़ जाती है, वहीं लोग इसके पारदर्शी होने की उम्मीद भी करते हैं, परन्तु इस बाढ़ ने जहां सरकार की विफल योजनाबंदी प्रकट की है, वहीं इसकी पारदर्शिता पर भी बड़ा प्रश्न-चिन्ह लगा दिया है।
प्रदेश में समय-समय पहले भी भारी बाढ़ आती रही है। इसके लिए बरसात के मौसम से कहीं पहले प्रदेश सरकार का फज़र् होता है कि वह किसी भी अनुमानित बाढ़ के लिए अपनी पूरी तैयारी करे। पानी के निकास के लिए नालों को साफ कराए ताकि यह निर्विघ्न बहते रहें। धुस्सी बांध को भी बरसात के मौसम के आगमन से पहले मज़बूत करना ज़रूरी होता है। ऐसा करने में प्रदेश सरकार पूरी तरह विफल सिद्ध हुई है।  हद से अधिक और योजना-रहित किए गए खर्चों ने पहले ही इसके खज़ाने को खाली कर दिया है। अन्य स्रोतों से ऋण लेने की भी एक सीमा होती है। जब भी इस सीमा का उल्लंघन किया जाता है तो वह अफरा-तफरी में बदल जाती है। यदि केन्द्र से किसी योजना या काम के लिए वित्तीय सहायता आती है तो उसे उचित ढंग से खर्च करने की बजाए अनियोजित ढंग से खर्च किया जाना और मुफ्त की योजनाएं लागू करके मिले इस वित्तीय खज़ाने को खर्च कर देना किसी भी तरह सूझवान योजनाबंदी नहीं है। ऐसा करने के लिए गम्भीर सोच की ज़रूरत होती है। ऐसी सोच की पूर्ति केवल लगातार की गई बयानबाज़ी से नहीं हो सकती। अब जब बाढ़ की चुनौती सामने आई है तो इसके लिए केन्द्र सरकार को ही दोषी ठहराये जाने के बयान किसी भी तरह वज़नदार नहीं प्रतीत होते।
 प्रधानमंत्री के दौरे में तत्काल राहत के लिए 1600 करोड़ की राशि की घोषणा से प्रतीत होता है कि जैसे  पूरा मंत्रिमंडल ही भड़क गया हो, जबकि चाहिए था कि इन फंडों की उपयोग करने के बाद केन्द्र से फिर गुहार लगाई जाती। इस संबंध में पंजाब के राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 1600 करोड़ रुपए की राशि सिर्फ तत्कालिक राहत है। केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा नुक्सान की रिपोर्ट देने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा और भी वित्तीय सहायता देने का विश्वास दिलाया गया है, परन्तु इसके साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा यह भी कहा गया है कि पंजाब सरकार के पास बाढ़ राहत फंड के 12,000 करोड़ रुपए जमा हैं, जिनमें से उसे राहत की योजनाएं तुरंत लागू करनी चाहिएं। केन्द्र सरकार सभी राज्यों को प्राकृतिक आपदाओं के लिए वर्ष में 500-500 करोड़ की 2 किश्तें जारी करती है। विगत वर्षों से केन्द्र की ओर से भेजी जाती इस राशि के 12,000 करोड़ रुपए बनते हैं।
अब गम्भीर मामला यह पैदा हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं का मुकाबला करने के लिए प्रदेश सरकार के पास 12,000 करोड़ रुपए कहां पड़ा है? इस संबंध में मंत्री और अधिकारी अन्धेरे में हाथ-पांव मारते दिखाई दे रहे हैं। इसलिए उनके अलग-अलग तरह के बयान सामने आए हैं। पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा तो इस बात से भी मुकर गए हैं कि प्रदेश के पास प्राकृतिक आपदाओं के लिए मिली यह बड़ी राशि है ही नहीं। उन्होंने स्पष्ट इन्कार किया है कि प्रदेश के पास ऐसा कोई पैसा नहीं है, परन्तु दूसरी तरफ मंत्री अमन अरोड़ा यह बयान दे रहे हैं कि यह फंड तो सरकार के पास है परन्तु उसे खर्च करने के लिए केन्द्र की ओर से लगाई गई शर्तें कड़ी हैं। इसलिए उसका उचित उपयोग नहीं हो सकता।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने यह बयान दिया है कि इस बड़ी राशि की स्थिति की सच्चाई सामने आनी चाहिए। इसके लिए सरकार को सफेद पेपर (व्हाइट पेपर) द्वारा शीघ्र इस गम्भीर मामले को सामने लाना चाहिए। सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा है कि प्राकृतिक आपदा फंड के 12,000 करोड़ रुपए के दुरुपयोग की केन्द्रीय जांच एजेंसी से जांच करवाई जाए। डा. दलजीत सिंह चीमा ने यह कहा है कि पंजाबी जानना चाहते हैं कि 12,000 करोड़ रुपए जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के दौरान किया था, वह कहां हैं? उन्होंने यह भी कहा है कि यह पैसा शीघ्र बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तेज़ गति से सहायता हेतु इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पुनर्निर्माण कार्य खतरे में पड़ गए हैं, इसलिए तुरंत यह जांच होनी ज़रूरी है कि प्राकृतिक आपदा एक्ट के दिशा-निर्देश का उल्लंघन हुआ है। इस पैसे का ‘आप’ सरकार ने दुरुपयोग किया है। यदि ऐसा है तो इसकी जवाबदेही तय होना ज़रूरी है। अब जबकि राहत कार्य तेज़ किए जाने का समय है तो सरकार मात्र बयानबाज़ी करके ही समय बिताने की फिराक में लगी हुई प्रतीत होती है।
ऐसी आपदा के समय इस तरह के विवाद का छिड़ जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, जिससे धूमिल हो रही छवि से सरकार बच नहीं सकती। ऐसी बेबसी की हालत में जहां सैकड़ों ही संस्थाएं अपने-अपने वित्त के अनुसार राहत कार्यों द्वारा लोगों की सहायता करने में सहायक हो रही हैं, वहीं हम केन्द्र सरकार को अपील करते हैं कि वह पैदा की गई सभी सीमाओं के बावजूद संकट में घिरे पंजाब की सहायता के लिए आगे आए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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