प्राचीन और महातीर्थ स्थल है गया जी
पटना से दक्षिण में 116 किमी दूर के क्षेत्र में त्रेता युग के दौरान राक्षस गयासुर रहता था। उसने घोर तपस्या की। भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया। उसका शरीर पवित्र हो गया और छोटी, पथरीली पहाड़ियों की श्रृंखला में परिवर्तित हो गया। तीन तरफ से मंगला-गौरी, श्रृंग-स्थान, राम-शिला और ब्रह्मयोनी पहाड़ियों से घिरा हुआ स्थान गया कहलाया, जिसके पूर्वी किनारे पर फल्गु नदी बहती है। समय के साथ, पटना के बाद बिहार का यह दूसरा सबसे बड़ा शहर गया जैन, हिन्दू व बौद्ध धर्मों के लिए पवित्र हो गया। रामायण व महाभारत जैसे महान महाकाव्यों में इसका ज़िक्र किया गया। राम, सीता व लक्ष्मण के साथ, अपने पिता दशरथ के लिए पिंडदान करने के लिए आये और गया पिंडदान अनुष्ठान के लिए एक प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थल बन गया। बोधगया में भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ और गया बौद्ध धर्म के चार सबसे पवित्र स्थलों में से एक हो गया।
गया में आध्यात्मिक आनंद व पर्यटन के उद्देश्य से मैंने अनेक बार यात्रा की है और विष्णुपद मंदिर, सुजाता स्तूप, महाबोधि मंदिर, ब्रह्मयोनी पहाड़ी (जहां गौतम बुद्ध ने अदित्तपरीय सुत्त का उपदेश दिया था), भारत सेवाश्रम संघ मंदिर आदि सभी के दर्शन किये हैं। लेकिन इस बार मेरी यात्रा का उद्देश्य कुछ और था। मैं गया के पास जो महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं, उन्हें देखना चाहता था। गया शहर से लगभग 35 किमी के फासले पर डोभी के पिपरघट्टी में फ्लोरल बायो डाइवर्सिटी पार्क है। यह पार्क 64 हेक्टेयर में फैला हुआ है। मैंने जब इस पार्क में प्रवेश किया तो इसकी सुंदरता ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया। यहां मैंने विभिन्न प्रकार के 250 से भी अधिक प्रजाति के दुर्लभ, विलुप्त प्राय और महंगे पौधे, औषधीय पौधे देखे। यहां फूलों की अनेक प्रजातियों को भी संरक्षित किया गया है। एक ही पौधे की अनेक प्रजातियों को देखकर मेरा मन बाग बाग हो गया।
पार्क में बांस की झोंपड़ी बनी हुई है, जिसमें बैठकर मैं देर तक उन पौधों को निहारता रहा जिन्हें अब से पहले मैंने कभी नहीं देखा था। पार्क में दो हिरण भी हैं, जो पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। पार्क में बच्चों के मनोरंजन के लिए चिल्ड्रन पार्क भी है, जिसमें बच्चे तरह-तरह के खेलों का लुत्फ उठा रहे थे। चिल्ड्रन पार्क को देखकर मुझे अफसोस हुआ कि मैं अपने बेटे को साथ क्यों नहीं लाया। उसे अच्छा लगता और पौधों के बारे में उसे अच्छी जानकारी भी मिलती, जो किताबों से अक्सर नहीं मिल पाती है। गया शहर से लगभग 30 किमी की दूरी पर गहलोर घाटी है। इसी में दशरथ मांझी का गहलोर गांव भी है, जिनकी प्रेम कहानी अपने आपमें मिसाल है और जिस पर बॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है। मांझी अपने हाथों से 22 साल तक उस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाते रहे, जिस रास्ते के न होने से उनकी पत्नी का निधन हो गया था, क्योंकि वह उसे अस्पताल नहीं ले जा सके थे। यहां मांझी का स्मारक स्थल व द्वार बनाया गया है, जो देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र है, विशेषकर मांझी की प्रेम कथा के लिए।
म़ुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार की खातिर आगरा में ताजमहल बनवा दिया था, लेकिन माउंटेन मैन के नाम से विख्यात मांझी ने फगुनिया के प्रेम के लिए पहाड़ को काटकर रास्ता ही बना दिया। किताबों में पढ़ा है कि फरहाद ने शीरीं के प्यार में पहाड़ काटकर दूध की नहर निकाल दी थी, लेकिन मांझी के कारनामे को तो आंखों से देखा जा सकता है। गया शहर से मात्र 12 किमी के फासले पर उत्तर पूर्व में एक रमणीक पहाड़ी है, जिसे डुंगेश्वरी पहाड़ी कहते हैं। यह पहाड़ी दोनों बौद्ध व हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थल है। इस पहाड़ी की चोटी पर एक प्राचीन गुफा है, जिसमें एक मंदिर भी है। यह गुफा संसार की सबसे पुरानी गुफाओं में शामिल की जाती है। इस गुफा को महाकाल गुफा और प्राग बोधी गुफा भी कहा जाता है। यहां सारे साल बौद्ध समुदाय के लोग दुनियाभर से दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन नवरात्र के महीने में हिन्दू समुदाय के लोगों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है।
गया शहर की फल्गु नदी पर बिहार का पहला और देश का सबसे बड़ा रबर बांध बनाया गया है, लगभग 312 करोड़ रुपये की लागत से। इस रबर बांध से फल्गु नदी में पूरे साल पानी रहता है। यह रबर बांध गया के लोगों के लिए पर्यटन स्थल बन गया है, जिसे देखने के लिए रोज़ाना सैंकड़ों की संख्या में लोग आते हैं और रंग-बिरंगी लाइट में सेल्फी लेते हैं। पास में ही विष्णुपद मंदिर है, जिसमें जाकर मैंने इस बार भी भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन किये। गया शहर से फल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीता कुंड स्थित है। यहीं देवी सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था। यह महत्वपूर्ण धर्म स्थल इस लिहाज़ से भी है क्योंकि यहां केवल सीता ही ने नहीं बल्कि भगवान राम व लक्ष्मण ने भी अपने चरण कमल रखे थे। हालांकि बिहार में मुंगेर सहित अन्य जगहों पर भी सीता कुंड हैं, लेकिन गया स्थित सीता कुंड का अपना अलग महत्व है। यहां फल्गु नदी के किनारे रेत के नीचे गुप्त गंगा नदी बहती है। मैंने अपने हाथ से रेत में गड्ढा खोदा तो मुझे गुप्त गंगा के पवित्र जल के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर