क्या बंदर अदरक का स्वाद नहीं जानता ?

‘दीदी, आज मम्मी ने खीर बनायी थी, मैं तो बिना खाये ही चला आया।’
‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद!’
‘इसका क्या मतलब हुआ?’
‘जब किसी अच्छी चीज़ को कोई नापसंद कर देता है, तब यह कहावत बोली जाती है, जैसे तुम खीर जैसी अच्छी चीज़ को बिना खाये चले आये।’
‘आप यह कहना चाह रही हैं कि जिसे किसी चीज़ की कद्र, कीमत या असली गुण समझ में न आये, वह उसकी सराहना नहीं कर सकता।’
‘हां। सही समझे।’
‘लेकिन क्या वास्तव में बंदर को अदरक का स्वाद मालूम नहीं या वह अदरक के असली गुण व कीमत को नहीं समझता है? क्या यह सिर्फ कहावत ही है?’
‘इस कहावत का बंदरों से क्या लेना देना है, इस सिलसिले में मैंने बहुत पहले डॉ. बैजुराज एमवी का एक लेख पढ़ा था, जो इस बारे में शोध कर चुके हैं और उन्होंने अनेक पेपर भी लिखे हैं। मैं वही जानकारी तुम्हें दे सकती हूं।’
‘दीजिये।’
‘दरअसल, बंदर को अदरक खाना पसंद नहीं है। अगर आप गौर करेंगे तो देखेंगे कि बंदर कोई भी चीज़ खाने से पहले उसे सूंघता है।’
‘ऐसा करते हुए तो मैंने अधिकतर जानवरों को देखा है।’
‘हां। अदरक की महक बहुत तेज़ और बहुत स्ट्रांग होती है। इस महक की वजह से बंदर अदरक को खाने से बचता है।’
‘मुझे लगता है कि यह बात सिर्फ अदरक या बंदर के साथ नहीं है।’
‘सही कह रहे हो। कोई भी जानवर अगर स्ट्रांग स्वाद या महक की किसी चीज़ को चखेगा तो उसे पूरा नहीं खायेगा।’
‘तो अदरक की कहावत को केवल बंदर से ही क्यों जोड़ा गया?’
‘इसकी कोई स्पष्ट वजह नहीं है। हो सकता है कि मिट्टी के अंदर उपजने वाले अदरक को बंदर पेड़ के फलों की तरह तोड़कर नहीं खा सकता, इसलिए इस कहावत को उससे जोड़ा गया हो।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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