इन्सान और कुदरत दोनों के लिए ज़रूरी है ओज़ोन परत
16 सितम्बर वर्ल्ड ओज़ोन डे पर विशेष
ओज़ोन परत पृथ्वी के स्ट्रैटोस्फियर में पायी जाती है। दरअसल पृथ्वी का वायुमंडल कई परतों में बंटा है, इन्हीं में से एक स्ट्रैटोस्फियर है, जो ट्रौपोस्फियर के ठीक ऊपर और मेसोस्फियर के ठीक नीचे होता है। इस तरह वायुमंडल की यह परत यानी स्ट्रैटोस्फियर पृथ्वी की सतह से लगभग 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली होती है। इसी में एक सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है ओज़ोन परत का। दरअसल स्ट्रैटोस्फियर, ओज़ोन परत का घर होती है लेकिन स्ट्रैटोस्फियर और ओज़ोन परत एक ही नहीं होते। जहां स्ट्रैटोस्फियर पृथ्वी के वायुमंडल की एक पूरी परत है, जो सतह से लगभग 10 से 50 किलोमीटर ऊंचाई तक फैली होती है और जिसमें अलग-अलग तरह की गैसें पायी जाती हैं। ओज़ोन परत इसी स्ट्रैटोस्फियर के अंदर मौजूद एक विशेष हिस्सा है, जो पृथ्वी से लगभग 15 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर पायी जाती है। इस परत को ओज़ोन परत इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस ऊंचाई पर पृथ्वी के वायुमंडल में जो गैस सर्वाधिक पायी जाती है, वह ओज़ोन गैस या ओ3 होती है। हम इंसानों को यही गैस सूर्य के आने वाली हानिकारक यूवी किरणों से बचाती है, क्योंकि ओज़ोन परत सूर्य की इन अल्ट्रावायलेट या यूवी किरणों को सोख लेती है। इस तरह ओज़ोन परत को हम धरती को यूवी किरणों से बचाने वाली सुरक्षात्मक छतरी मान सकते हैं। क्योंकि यह पृथ्वी के स्ट्रैटोस्फियर वायुमंडल में होती है। कहने का मतलब है स्ट्रैटोस्फियर जहां वायुमंडल की बड़ी परत है, उसी परत का एक खास और सुरक्षात्मक हिस्सा ओज़ोन परत होती है। चाहे तो इसे यूं भी समझ लें कि स्ट्रैटोस्फियर जहां पूरी इमारत है, वहीं ओज़ोन परत इस इमारत की एक खास मंजिल पर बनी सुरक्षा ढाल है। 1970-80 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य रसायनों के कारण स्ट्रैटोस्फियर की ओज़ोन परत में गहरा छेद हो रहा है। इसे रोकने के लिए दुनियाभर के देशों ने मिलकर साल 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए अब तक की दुनिया की सबसे ज़रूरी पर्यावरणीय संधि मानी जाती है। क्योंकि 16 सितंबर 1987 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल सम्पन्न हुआ था, इसलिए इसकी याद में इस दिन हर साल ओज़ोन दिवस मनाया जाता है। ओज़ोन परत का विश्व पारिस्थितिकी में बहुत महत्व है। अगर ओज़ोन परत क्षतिग्रस्त हो जाए तो सूरज की यूवी किरणें सीधे धरती पर पहुंचेगी, जिसके नतीजे में बड़े पैमाने पर लोगों को त्वचा कैंसर और आंखों में मोतियाबिंद की समस्या हो जाएंगी। यही नहीं इंसान के अंदर जो रोग प्रतिरोधक क्षमता है, ओज़ोन परत के नष्ट हो जाने से इंसान की वह क्षमता नष्ट हो जायेगी और वह जरा जरा सी बीमारियों पर मरने लगेगा।
लेकिन ओज़ोन परत का महत्व सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं है, समूची धरती के लिए है। अगर ओज़ोन परत नष्ट हो गई तो पारिस्थितिकी का संतुलन भी नष्ट हो जायेगा। ओज़ोन परत पौधों को, फसलों को और समुद्री प्लाक को बचाती है, जो धरती की समूची खाद श्रृंखला का आधार हैं। ओज़ोन परत अगर नष्ट हो गई तो धरती में तापमान या गर्मी बेलगाम हो जायेगी, क्योंकि यह ओज़ोन परत ही है, जो वायुमंडलीय तापमान को संतुलित रखती है। इसलिए ओज़ोन परत को बचाना सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं, समूची धरती के लिए ज़रूरी है, जिसमें इंसान भी शामिल है और कुदरत भी शामिल है। इसलिए 1987 में ओज़ोन परत को बचाने के लिए सम्पन्न बैठक या मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में याद किया जाता है, जो हर साल 16 सितंबर के दिन मनाया जाता है। दुनिया को यह याद दिलाने के लिए कि अगर ओज़ोन परत को नहीं बचाया गया तो धरती से जीवन और कुदरत सब कुछ नष्ट हो सकता है। सवाल है ओज़ोन परत को खतरा क्यों है और किससे है? जैसा कि शुरु में ही बताया गया है कि सीएफसी गैसें यानी क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसें पुराने फ्रिजों, एयरकंडीशनरों, हेयर स्प्रे और फॉम में इस्तेमाल होती थी। इन गैसों में से निकलने वाली क्लोरीन गैस और ब्रोमीन नामक लाल, भूरा तरल जो कि जल्द ही वाष्प बनकर गैस की तरह फैल जाता है, जिसकी गंध बहुत ही तेज़ होती है। क्लोरीन गैस और ब्रोमीन से तेज चुभने वाली गंध से जो परमाणु निकलते हैं, ये परमाणु ओज़ोन अणुओं को तोड़ देते हैं।
एक अकेला क्लोरीन या ब्रोमीन परमाणु हज़ारों ओज़ोन अंणुओं को नष्ट कर देता है। इस तरह देखा जाए तो ओज़ोन परत के सबसे बड़े दुश्मन क्लोरीन और ब्रोमीन के अणु हैं। इन्हीं गैसों से ओज़ोन परत को बचाने के लिए विभिन्न हानिकारक रसायनों के उपयोग पर वैज्ञानिक पाबंदी लगाने की बात करते हैं। विशेषकर सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैसे, जिनका उपयोग विशेषकर पुराने फ्रिज, एसी, हेयर स्प्रे, पेंट, फॉम (थर्माकोल) और कीटनाशकों आदि में होता है। जब से ओज़ोन परत को बचाने की मुहिम चल रही है। आजकल ऐसी सभी चीजों के इकोफ्रेंडली विकल्प बाज़ार में उपलब्ध हैं और इन्हें अपनाने पर जोर दिया जाता है। इन दिनों बाज़ार में जिन प्रोडक्ट के इस्तेमाल से ओज़ोन परत को नुकसान नहीं होता, उन्हें सीएफसी फ्री उत्पाद कहते हैं। आजकल बाज़ार में मौजूद प्राकृतिक एयर फ्रेशनर, क्लीनर और ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि ये भी सीएफसी फ्री होते हैं। ज्यादा बिजली के उपयोग से भी ओज़ोन परत को नुकसान होता है। इसलिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ऊर्जा कुशल उपकरणों के प्रयोग पर जोर दिया जाता है।
धरती में पेड़ लगाने और हरियाली को बढ़ाने की वकालत भी ओज़ोन परत को बचाने के लिए ही की जाती है। अगर दुनिया में हर व्यक्ति कम से कम एक पेड़ हर साल लगाए, तो धरती के पर्यावरण की रक्षा ओज़ोन परत कर पाने में सक्षम हो सकते हैं। सार्वजनिक परिवाहन की जगह जहां तक हो सके साइकिलों का इस्तेमाल करना चाहिए और संभव हो तो बस, मेट्रो आदि में सामूहिक रूप से ही सफर करना चाहिए। संक्षेप में धरती के अस्तित्व को बचाने के लिए वायुमंडल की ओज़ोन परत को बचाना बहुत ज़रूरी है। इसलिए 16 सितंबर के दिन पूरी दुनिया में स्कूलों, कॉलेजों, सार्वजनिक स्थानों, दफ्तरों आदि में ओज़ोन परत बचाने के लिए सजगता बढ़ाने वाले व्याख्यान दिये जाते हैं ताकि लोग ओज़ोन परत को नष्ट करने वाली गैसों से अपनी स्तर पर बचें और अपनी सजगता से ओज़ोन परत को बचाएं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर