बहुत देर कर दी जनाब : जाते-जाते

आखिर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 27 महीने बाद उत्तर-पूर्व के राज्य मणिपुर के दौरे पर चले ही गए। वह शनिवार के दिन दोपहर के बाद पहले मणिपुर के शहर चुराचांदपुर और बाद में प्रदेश की राजधानी इम्फाल पहुंचे। उन्होंने पहले चुराचांदपुर में 7300 करोड़ के विकास प्रोजैक्टों का उद्घाटन किया और 7000 करोड़ के अन्य प्रोजैक्टों का नींव पत्थर भी रखा। इस अवसर पर एक रैली को सम्बोधित करते हुए उन्होंने लोगों को शांति बनाए रखने की अपील की और उन्होंने यह विश्वास भी दिलाया कि भारत सरकार पूरी तरह उनके साथ है और विकास कार्य में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। यहां वह हिंसा से पीड़ित परिवारों के कुछ लोगों से भी मिले। फिर वह इम्फाल को रवाना हो गए। वहां हवाई अड्डे पर राज्यपाल अजय कुमार भल्ला और मुख्य सचिव पुनीत कुमार गोयल द्वारा उनका स्वागत किया गया। चुराचांदपुर और इम्फाल में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए कड़े प्रबन्ध किए गए थे। 
नि:संदेह मणिपुर की समस्या दशकों पुरानी है। इसका हल शीघ्र किया जाना कठिन है, क्योंकि रहते अलग-अलग कबीलों के लोगों की दुश्मनी की दास्तान बहुत लम्बी है। मणिपुर में कबीलों में विवाद मई 2023 में शुरू हुआ था। दो बड़े कबीले कुकी और मैतेई आपस में भिड़ते रहे हैं। मई 2023 में शुरू हुई आपसी झड़पों में उस समय लगभग 260 मौतें हुईं थीं और 60 हज़ार लोग बेघर हो गए थे। उस समय यहां भारतीय जनता पार्टी का शासन था। मुख्यमंत्री बीरेन मैतेई कबीले से संबंधित हैं। उन्होंने इस विवाद को खत्म करने संबंधी पूरा ज़ोर लगाया परन्तु सफल नहीं हो सके। उसके बाद विवश होकर केन्द्र को यहां राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। इस समय के दौरान अमित शाह सहित कुछ केन्द्रीय मंत्रियों ने राज्य के दौरे भी किए परन्तु अभी तक भी इन कबीलों का आपसी विवाद खत्म नहीं हुआ। इस पूरे समय में देश के प्रधानमंत्री से यह आशा की जाती रही थी कि वह इस राज्य का दौरा करेंगे और अलग-अलग कबीलों को प्रत्यक्ष रूप से मिल कर विश्वास में लेने का यत्न करेंगे, परन्तु अपनी ही बनाई धारणा के कारण इस विवाद के होते प्रधानमंत्री ने यहां का दौरा नहीं किया।  इस पूरे समय में विपक्षी पार्टियों और देश के ज्यादातर सामाजिक संगठनों द्वारा उनकी आलोचना भी की जाती रही। 
नि:संदेह अपने फज़र् के पालन से उनकी ऐसी अनदेखी ने प्रधानमंत्री की छवि को कुछ सीमा तक धूमिल ज़रूर किया है। उनके अब तक संक्षिप्त दौरे संबंधी वहां का प्रतिनिधित्व करते अलग-अलग कबीलों और संगठनों में भारी रोष भी उभरा है परन्तु इसके साथ ही इन संगठनों ने यह उम्मीद भी प्रकट की है कि देश के प्रमुख होते हुए श्री मोदी इस मामले का कोई सार्थक हल ढूंढने में सफल होंगे। कुकी कबीले के ज्यादातर लोग और सामाजिक संगठन अपने बहुमत वाले क्षेत्र में स्वायत्तता के प्रशासनिक प्रबंध की मांग कर रहे हैं। चाहे इस छोटे-से उत्तर पूर्वी राज्य के हालात शीघ्र ठीक होने वाले तो नहीं प्रतीत होते परन्तु केन्द्र सरकार से यह उम्मीद ज़रूर की जाती है कि वह अपनी पूरी समर्था से इस जटिल व्यवस्था का कोई हल निकालने में देर या सवेर सफल ज़रूर हो जाएगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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