जीवन के लिए बचाएं ओज़ोन परत

आज विश्व ओज़ोन दिवस पर विशेष

कुदरत ने पृथ्वी ग्रह को विशेष प्रकार की खूबियां बख्शी हैं। इन खूबियों के कारण ही यहां मानव जीवन संभव हुआ है। यहां रासायनिक गैसों का संतुलन है। मानव जीवन को सुखदायी बनाने के लिए पृथ्वी पर पानी है। हरी-भरी प्रकृति है और इसके टिके रहने के लिए ठोस धरातल है, जोकि अपने गुरूत्वाकर्षण के कारण सबको टिकाए हुए है। सूरज की रोशनी ऊर्जा का सबसे बेहतर स्रोत है। सूर्य की किरणों में जहां जीवन देने वाले तत्व हैं, वहीं मानव जीवन के लिए पैराबैंगनी किरणें भी वह छोड़ता है। ये किरणें मानव शरीर की कोशिकाओं की सहनशक्ति से बाहर हैं। इन किरणों से कैंसर, श्वशन रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं। साथ ही साथ ये किरणें मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती हैं। पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए भी यह किरणें खतरनाक हैं। यहां भी फिक्र की कोई बात नहीं है। वायुमंडल में ही इन खतरनाक किरणों से बचाने के लिए पृथ्वी के सुरक्षा कवच के रूप में ओजोन परत है।
यहां तक तो सब ठीक है। लेकिन धरती की इस खूबसूरती और सुरक्षा को ग्रहण लगता दिख रहा है। इसका कारण ओज़ोन परत की सुरक्षा को खतरा है। विकास की नई से नई ऊंचाईयों को छूने के लिए बेताब मनुष्य ने आगे बढने में पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा। हमने ऐसी-ऐसी गैसें तैयार कर ली हैं, जाकि ओज़ोन की झीनी परत को नुकसान पहुंचा रही हैं। सबसे पहले तो यही जानना ज़रूरी है कि ओज़ोन परत होती क्या है?   
ऑक्सीजन के तीन अणुओं के जुड़ने से ओजोन (ओ-3) का एक अणु बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल ऑक्सीजन, हीलियम, ओजोन और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओज़ोन परत धरती के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है। अगर पृथ्वी के चारों ओर ओज़ोन परत का यह सुरक्षा कवच नहीं होता तो शायद अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी भी जीवनहीन होती।
चिंता की बात यह है कि ओज़ोन की झीनी परत में छेद हो चुके हैं और इसका क्षरण हो रहा है। अटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओज़ोन परत में छेद की जानकारी 1960 में हुई। उस समय इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। किन्तु जैसे-जैसे यह छेद बढने लगा वैसे-वैसे समूचे विश्व के वैज्ञानिकों को इसकी चिंता सताने लगी और वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह पता लग पाया कि वायुमंडल में प्रतिवर्ष के हिसाब से 0.5 प्रतिशत ओज़ोन की मात्रा कम हो रही है। अटार्कटिका के ऊपर वायुमंडल में 20 से 30 प्रतिशत ओज़ोन कम हो गयी है। न सिर्फ अंटार्कटिका बल्कि ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओज़ोन परत के छिद्रों को देखा गया है। ओज़ोन परत के नुकसान के लिए प्रकृति जिम्मेदार नहीं है। बल्कि मनुष्य की अंधी दौड़ और पर्यावरण के प्रति उदासीनता ही है। हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी) नामक चार गैसों का समूह ओज़ोन के क्षरण का कारण है। वैज्ञानिकों ने शोध के जरिये स्पष्ट किया है कि ये मानव निर्मित गैसें हैं। ओज़ोन को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों का उदगम स्थल एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक आदि हैं। एयर कंडीशनर में प्रयुक्त गैस ओजन के लिए हानिकारक है क्योंकि इन गैसों का एक अणु ओज़ोन के लाखों अणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी इसका कारण है। पेड़ों की कटाई से पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा काम होती है जिसकी वजह से ओज़ोन गैस के अणुओं का बनना कम हो जाता है। प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि इस दिन ओज़ोन परत से जुड़े तथ्यों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। ओज़ोन परत धरती पर जीवन के संरक्षण का अहम तत्व है। इसे बचाने के लिए धरती को हरा-भरा बनाना पहला व महत्वपूर्ण कदम है। वर्ष 2025 के लिए ओज़ोन संरक्षण दिवस के लिए विज्ञान से वैश्विक कार्रवाई तक विषय रखा गया है। जिसका सीधा मतलब है कि वैज्ञानिक खोजों व शोध तक सीमित रहने से काम चलने वाला नहीं है। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर अब हमें ऐसी पर्यावरणीय नीतियां बनानी चाहिएं और मिलजुल कर ऐसे काम करने चाहिएं ताकि जहरीली ग्रीन हाऊस गैसों में कटौती हो सके। 

मो. 09466220145

#जीवन के लिए बचाएं ओज़ोन परत