सितारों का समूहआकाशगंगा

आकाशगंगा (गैलेक्सी) विशाल गुरुत्वाकर्षीय सीमा में आबद्ध एक व्यवस्था है जिसमें तारे व तारकीय अवशेष, गैस एवं गुबार का अंतर-तारकीय माध्यम है एवं एक महत्वपूर्ण परन्तु प्रायोगिक स्तर पर जिसे ठीक-ठीक नहीं समझा गया, ऐसा एक घटक है जिसे आज़माइशी तौर पर काला पदार्थ कहते हैं। इस नाम की उत्पत्ति मूल यूनानी गैलेक्सियस से हुई, जिसका अर्थ है ‘दुधिया’ (मिल्की)। इसका संबंध मिल्की वे आकाशगंगा से है। प्रतिरूपी आकाशगंगाएं जिनमें कम से कम दस मिलियन प्रतिरूपी नन्हे-नन्हे सितारों से लेकर एक ट्रिलियन दैत्याकार सितारे हैं, सब के सब आकाशगंगा के केन्द्र बिन्दु के चतुर्दिक परिक्रमा पथ में है। आकाशगंगा अथवा आकाशगंगाओं में बहुल स्टार सिस्टम, तारों के समूह और विभिन्न तारों के बीच में बादल भी शामिल रह सकते हैं। सूर्य छायापथ आकाशगंगा के सितारों में से एक है। सौरमंडल के कक्ष में पृथ्वी एवं अन्य सभी पदार्थ शामिल हैं। ऐतिहासिक रूप से, आकाशगंगाओं को उनके स्पष्ट आकार के अनुसार वर्गीकृत किया गया है (आमतौर पर आकृतिमूलक वर्गीकरण के अनुसार)। एक सामान्य रूप अण्डाकार आकाशगंगा है जिसमें दीर्घ वृत्त के आकार वाले बारीक प्रकाश के पार्श्व चित्र हैं। सर्पिल आकाशगंगाएं धूल-धूसरित गोलाकार पट्टियों का जमावड़ा हैं। अनियमित अथवा असामान्य आकार की अजीबो-गरीब आकाशगंगाएं मानी जाती हैं, और आमतौर पर ये पड़ोसी आकाशगंगाओं के गुरुत्वाकर्षीय खिंचाव के परिणामस्वरूप विघटन के कारण बनती हैं। नज़दीकी आकाशगंगाओं के इस प्रकार की पारस्परिक प्रतिक्रिया अंतत: आकाशगंगाओं के विलयन में फलीभूत हो सकती है जो सितारों के गठन की उल्लेखनीय वृद्धि की घटना को प्रभावित कर सकती है, जिसे तारों के विस्फोट से बनी आकाशगंगा कहा जाता है। छोटी आकाशगंगाएं जिनमें सुसंगत संरचना का अभाव है उन्हें अनियमित आकाशगंगाओं के रूप में उल्लिखित किया जा सकता है। अनुमानत: 100 बिलियन से अधिक आकाशगंगाएं दृश्यमान ब्रह्मांड में हैं। अधिकतर आकाशगंगाओं के व्यास 1,000 से लेकर 100,000 पारसेक्स तारों की दूरी मापने के लिए इस्तेमाल होने वाली लम्बाई की इकाई होते हैं और आमतौर पर इनके बीच की दूरी लाखों पारसेक्स (या मेगापारसेक्स) होती हैं। अंतरछायापथीय अंतरिक्ष (आकाशगंगाओं के बीच का स्पेस या स्थान) औसतन एक परमाणु प्रति घन मीटर से भी कम घनत्व वाले तरल गैस से भरा है। बहुसंख्यक आकाशगंगाएं पदानुक्रम में सुसंगठित रूप से संघबद्ध हैं जो तारों के समूह (क्लस्टर्स) कहलाते हैं। ये बाद में बड़े आकारों में समूहबद्ध होकर सितारों के महाकाय समूह (सुपरक्लस्टर्स) कहलाते हैं। ऐसी बड़ी संरचनाएं आमतौर पर परतों एवं तंतुओं में सुव्यवस्थित हैं, जिनसे अंतरिक्ष का असीम शून्य भरा हुआ है। यद्यपि यह अभी तक अच्छी तरह समझ में नहीं आया है कि क्या अधिकतर मंदाकिनियों के कुल पदार्थ का 90 प्रतिशत काला द्रव्य ही है। निरीक्ष संबंधी आंकड़ों से यह पता चलता है कि ये अति विशाल संपीडित काले विवर (सुपरमैसिव ब्लैक होल) सब न सही लेकिन अधिक से अधिक मंदाकिनियों के मध्य मौजूद हो सकते हैं। ये कुछ मंदाकिनियों के मूल में पाए जाने वाले सक्रिय गांगेय छायापथ के नाभिकों के प्राथमिक कारण माने जाते हैं। छायापथ मंदाकिनी कम से कम एक नाभिक को तो अवश्य ही अपने अंदर आश्रय देती है।