उच्च विचारधारा वाले मां-बाप मनाने लगे हैं लड़कियों की लोहड़ी

एस.ए.एस. नगर, 12 जनवरी : पंजाब में मनाए जाने वाले पर्व में से लोहड़ी शगुनों और खुशियों का पर्व है। पहले जिस घर में लड़का पैदा हो या फिर लड़के की शादी हो, वे बड़े उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं परंतु आजकल लड़कियों के प्रति अपनी उच्च विचारधारा का प्रदर्शन करते हुए लड़कियों की लोहड़ी भी पूर्ण उत्साह से मनाई जाने लगी है। समाज में ऐसे भी अनपढ़ और दुर्भावना वाले लोग अपनी बेटियों को लड़कों के बराबर हक देने के लिए तैयार नहीं हैं और उनको पढ़ाई करने और नौकरी करने में रूकावट पैदा कर रहे हैं। परंतु यह संख्या अब बहुसंख्या न होकर कम संख्या रह गई है। यदि त्यौहार की पृष्ठभूमि को देखा जाए तो लोहड़ी के त्यौहार संबंधी प्रचलित कहानियों में से एक कहानी दुल्हा भट्टी से जोड़ी जाती है जो कि मुगल काल में दुल्ला भट्टी (जिसको डाकू भी कहा जाता है) अमीरों का दुश्मन और गरीबों का मसीहा था। एक गरीब पंडित की दो बेटियां सुन्दरी-मुन्दरी जिन पर मुगल शासन के दौरान एक अधिकारी की नज़र पड़ने पर उसने पंडित को इन लड़कियों का विवाह अपने साथ करवाने के लिए कहा। बेशक पंडित ने अपनी लड़कियों की मंगनी पहले ही होने संबंधी बताने पर भी मुगल शासक ने उसके ससुराल डरा-धमका कर लड़की की मंगनी तुड़वा दी। ऐसा देखकर पंडित ने दुल्ला भट्टी से बातचीत की, जिसके बाद दुल्ला भट्टी ने लड़कियों के ससुराल से बातचीत करके जंगल में ही आग जलाकर लड़कियों के विवाह की रस्में पूरी करवा दीं। इस मौके पर दुल्हे के पास सिर्फ मिठाई के तौर पर शक्कर ही थी जो कि उसने शगुन के तौर पर देकर सुन्दरी-मुन्दरी को विदा किया। ऐसी कहानी के कारण ही दुल्ला-भट्टी को याद करते हुए लोहड़ी का त्यौहार आने पर पहले ही मोहल्ले में बच्चों की आवाज़ें आनीं शुरू हो जाती हैं कि ‘सुन्दर मुन्दरिए हो तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो।’ पर धीरे-धीरे आधुनिक  रीति-रिवाज़ों में परिवर्तन आने के कारण लोहड़ी मांगने वाले बच्चों की संख्या बहुत कम होती जा रही है और शहरों में केवल गरीब परिवार के बच्चे ही लोहड़ी मांगते देखे जा सकते हैं। इस त्यौहार को खुशी से जोड़ते हुए समाजसेवी संस्थाओं और अधिकतर पढ़े लिखे तथा जागरूक लोगों द्वारा अपनी बेटियों को लोहड़ी मनाने की रीत चलाई गई है, जिसको लगातार काफी प्रोत्साहन मिल रहा है। लोहड़ी को लड़कियों को लोहड़ी का नाम भी दिया जाता है और इस नाम पर बड़े-बड़े समागम भी करवाए जाते हैं। यहां तक इस दिन लोगों द्वारा अपनी बेटी के हाथों गरीबों को दान भी दिया जाता है और काफी संस्थाओं द्वारा नवज़ात बेटियों और माताओं को सम्मानित भी किया जा रहा है जो कि एक बहुत बड़े सामाजिक वरिवर्तन का प्रतीक है। ऐसा होने से लड़कियों का मनोबल भी बढ़ रहा है और समाज में असमाजिक तत्वों का मुकाबला करने के लिए लड़कियां स्वयं को लड़कों के बराबर समझने लग पड़ी है। समाज में आम ही देखने को मिलता है कि कोई ऐसा विभाग नहीं है जहां लड़कियों ने महत्वपूर्ण पद और उपलब्धियां प्राप्त न की हों। वे लड़कियां अन्यों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन रही हैं। श्री गुरु नानक जी के कथन, ‘सो क्यों मंदा आखिए, जितु जम्मे राजान’ आज बेटियां मां-बाप और समाज तथा अपने देश का नाम रोशन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा कर इस कथन को सत्य साबित कर रही हैं।