बहुरंगी संस्कृति का लोकपर्व लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार देश की बहुरंगी संस्कृति, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता का परिचायक है। लोहड़ी का पर्व फसल से जुड़ा है। यह पर्व पुरानी फसल की कटाई और नई फसल की बुआई से संबंधित है। विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा सहित उत्तर भारत में यह त्योहार परम्परागत हंसी-खुशी, उमंग, उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रवासी भारतवासी विदेशों में भी अपने रंगीले त्योहार की खुशियां गीत, संगीत और नृत्य के साथ बांटते हैं। लोहड़ी का त्योहार हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है। 
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस बार सूर्य 15 जनवरी, 2024 को मकर राशि में गोचर कर रहा है, जिस वजह से इसी दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में लोहड़ी 13 की जगह 14 जनवरी, 2024 को मनाई जाएगी। मगर कुछ स्थानों पर 13 जनवरी को भी लोहड़ी मनाने के समाचार मिल रहे है। पंचांग के अनुसार 13 जनवरी को लोहड़ी पर्व है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार यह त्योहार सूर्य की उत्तरी गोलार्ध की यात्रा का प्रतीक है। उत्तर भारत के इस लोकप्रिय फसल उत्सव में अच्छी फसल के लिए आभार व्यक्त करने और ईश्वर से सुख-समृद्धि हेतु प्रार्थना करने के लिए पवित्र अलाव जलाया जाता है। 
लोहड़ी मनाने के पीछे भी एक कहानी है जिसके नायक दुल्ला भट्टी है। बताया जाता है कि सांदल बार इलाके के जागीरदार ने एक ब्राह्मण की दो बेटियों को उठा लिया था। यह इलाका अब पाकिस्तान के मुल्तान शहर के पास है। दुल्ला मुगलों के खिलाफ  तब गुरिल्ला लड़ाई कर रहे थे। कहानी के मुताबिक कि दुल्ला भट्टी ने दोनों लड़कियों को छुड़ाया था। लड़कियों के सिर के सालू (पल्लू) को बेटियों की इज़्ज़त माना जाता था जिसे उसने रखवाया। तब किसी गरीब के हक में और वह भी लड़कियों के हक में खड़े होना बड़ी बात थी। 
हर त्योहार की तरह यह भी दोस्तों, परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलकर मनाया जाता है। उपले और लकड़ी की मदद से अलाव जलाया जाता है। पंजाब में लोहड़ी बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है। ऐसा मान्यता है कि इस दिन, दिन छोटा और रात काफी बड़ी होती है। इस दिन अलाव जलाकर लोग इसके चारों तरफ  घूमकर नाचते हैं और आग में प्रसाद डालते हैं। वैसे तो यह त्योहार मूल रूप से पंजाबियों का है लेकिन पूरे उत्तर भारत में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से पंजाब के अलावा हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में इसकी धूम होती है। 
पारिवारिक समूह के साथ लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी एवं मूंगफली का भोग लगाया जाता है। ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भांगड़ा इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। पंजाबी समाज में इस पर्व की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसका संबंध मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात् जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है तो उस परिवार की ओर से खुशी बांटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है। मित्रों और रिश्तेदार उन्हें इस दिन विशेष सौगात के साथ बधाइयां भी देते हैं। 
लोहड़ी से 10-12 दिन पहले ही बच्चे लोहड़ी के लोक गीत गाकर दाने, लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। इस एकत्र की गई सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर अलाव जलाया जाता है। रेवड़ी और मूंगफली आदि अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये चीज़ें प्रसाद के रूप में सभी लोगों को बांटी जाती हैं। पहले बेटा होने पर यह त्योहार मनाया जाता था मगर अब बेटी पैदा होने पर भी पूरे जोश और उत्साह से लोहड़ी मनाई जाती है। इस आयोजन का उद्देश्य बेटियों को समाज में बेटों के बराबर मान-सम्मान दिलाना है व लोगों की नकारात्मक सोच को बदलना है। आज लोहड़ी के त्योहार की पवित्रता सैकड़ों गुणा बढ़ गई है क्योंकि अब भारतीय संस्कृति में देवी के रूप में पूजी जाने वाली कन्याओं की लोहड़ी मनाई जा रही है। सच है जिनके यहां पहली बेटी ने जन्म लिया है वे समाज की रूढ़ीवादी परम्पराओं को तोड़कर बेटी की पहली लोहड़ी हर्षोल्लास से मना रहे हैं। 

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