बदल गई है प्यार की परिभाषा

‘वैलेंटाइन’ आज के दौर का वह दिन है जिसमें सभी अपने महबूब या महबूबा को महंगे तोहफे भेंट कर प्यार की गहराई दर्शाते हैं। पर असल में इसकी शुरुआत की चर्चा करें तो 18वीं सदी में यह दिन प्रचलित हो चुका था। इसकी शुरुआत पोप जेलसियोस नाम के रोमन शख्स ने की। वैलेंटाइन को ‘बसंत की पहली संत’ भी कहते हैं। उस सदी में वैलेंटाइन किसी सदी में रोम के ‘शहीदों’ को कहा जाता था तथा 14 फरवरी को उन्हें फूल व श्रद्धापुष्प अर्पित कर याद किया जाता था। फिर धीरे-धीरे लोग इस दिन अपने बेहद अजीज़ को भी फूल देने लगे थे।
वैलेंटाइन का शब्दिक अर्थ है ‘खत, कार्ड’। मतलब अपने सबसे प्यारे को इस दिन प्रेम-पत्र देना या कोई गिफ्ट देना। इस दिन को ‘संत वैलेंटाइन’ भी कहा जाता है। 19वीं सदी तक आते-आते इस दिन शादी करने की मान्यता प्रचलित हुई। रोम में कान्सास के विश्वविद्यालय के प्रोफैसर जैक का मानना है कि जो लोग आपस में प्यार करते हैं उनके लिए ‘मध्य फरवरी’ में ‘पवित्र शादी’ में बंधने का बिल्कुल सही समय है। इसलिए इस ‘पवित्र जूनो’, ‘जूनो शोधक’, ‘जूनो फरवरी’, ‘13-14 फरवरी’ को मनाया जाता है। तब यह रोम का एक स्थानीय त्यौहार था।
20वीं सदी तक आते-आते इसमें बहुत-सी कथाएं जुड़ीं व अलग हुईं। इस दिन को मनाने के तरीके में भी भारी बदलाव हुआ। अब इस दिन अपने प्यार को जताने के लिए लाल गुलाब देना, चॉकलेट, दिल के आकार में पैकेट बाक्स देना, डायमंड देना आदि प्रयोग किए जाने लगे।  21वीं सदी में पहुंच कर इस दिन का रंग, रूप व ढंग ही बदल गया। अब लोग सिर्फ अपने प्यार को ही नहीं बल्कि अपने दोस्तों, माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार, गुरु आदि को गिफ्ट देकर अपने आदर-सम्मान व प्यार का परिचय देने लगे हैं। मौजूदा दौर में वैलेंटाइन एक फैशन सिंबल बन कर रह चुका है। सिर पर जुनून की तरह चढ़ा हुआ है। इस दिन म्यूजिक की तेज़ आवाज़, छलकते जाम, हवा में उड़ते धुएं के छल्ले, पश्चिमी फैशनेबल युवतियां व दोस्ती के नाम पर हर हद पार करने को उतारू युवा इस दिन सैलीब्रेशन के नाम पर हमारी संस्कृति को कितना शर्मसार करते हैं, इसका अंदाजा शायद उन्हें कभी न हो। बात आधुनिकता या पुरातन की नहीं है। बात है इस दिन के सही मायने (पवित्र शादी) को जिंदा रखने की। जिसे आज हमारी युवा पीढ़ी पैरों तले रौंदकर अपनी मौजमस्ती का एक दिन समझ चुकी है। आज प्रेम की परिभाषा ही बदल चुकी है। हीर-रांझा, लैला-मंजनू, शीरी-फरहाद, रोमियों-जूलियट के सच्चे प्रेम के किस्से अब किताबों में ही सिमट कर रह गए हैं। प्रेम आज सिर्फ उपभोग और मनोरंजन का साधन बन कर रह गया है। अब प्रेम दो दिलों को जोड़ता नहीं बल्कि तोड़ता है। आज असफल प्रेम दुष्कर्म, तेजाब, आत्महत्या, हत्या और फांसी जैसे अपराधों को जन्म दे चुका है।
इस दिन की पाकीजगी को जिंदा रखकर मनाए जाने में कोई ऐतराज़ नहीं है। पर आज के युवाओं को बाइक चाहिए, महंगा फोन, महंगे फैशनेबल कपड़े चाहिएं लड़कियों को इम्पे्रस करने के लिए। लड़कियों को पारदर्शी परिधान चाहिएं, लड़कों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए। आज के युवा प्यार के असली फलसफे को भुला चुके हैं। ‘प्यार कुछ पाने का नहीं बल्कि अपने प्यार के लिए सब कुछ चुपचाप सह जाने व गंवा देने या खुद मिट जाने का जज़्बा है।’ 
पर उन्हें तो दिखावे में लपेटकर दिए प्यार पर ही ऐतबार रह चुका है। इसलिए युवा याद रखें कि जीवन को हानि पहुंचाती चीज़ों से दूर रहें, नशे को अलविदा कहें, चकाचौंध में अपनी पहचान मत खोने दें व प्यार के अहसास को पहचानें और इससे अपनी ज़िंदगी को महकाएं। तभी वैलेंटाइन असल में मनाया जा सकता है। इसके असली मायने तभी जिंदा रखे जा सकते हैं यदि हम इसकी पवित्रता को बरकरार रखें और प्रेम के प्रति हमारी श्रद्धा और विश्वास अटूट बने रहें।