सादगी से मनाएं होली 

प्रतिवर्ष जैसे ही फागुनी बयार चलने लगती है तो युवक हों या वृद्ध, बालक हों या किशोर, साथ ही महिलाएं भी-सभी के दिल होली की उमंग से तरंगित हो जाते हैं। सभी लोग बेसब्री से इस रंग रंगीले त्योहार की प्रतीक्षा करते हैं। करें भी क्यों न, प्यार व मस्ती का पर्व जो ठहरा। हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना विशिष्ट स्थान है। हर एक त्योहार का अपना अलग मजा है। होली भी ऐसा ही एक निराला त्योहार है। इस दिन होली की मस्ती में डूबे हुए जन अपनी उम्र, जाति, पद तथा योग्यता को ताक पर रखकर मात्र होली के ही रंगों में डूबे नजर आते हैं। इस दिन के आनंद को वे जी भरकर लेना चाहते हैं।  रंगों के इस त्योहार की मस्ती से निकलकर थोड़ा विचार करें तो हम अनुभव करते हैं कि इस त्योहार की आड़ में अनेक विकृतियां भी हमारे आसपास के वातावरण में पनप गई हैं। जिन लोगों के प्रश्रय से ऐसी विकृतियों को बल मिला है, वे ही लोग इसका समाधान भी कर सकते हैं। वह समय बीत गया, जब महीनों पहले ही घर पर फूलों से प्राकृतिक रंग बनाने की तैयारियां की जाने लगती थीं। आज ऐसे रंग बनाने का कष्ट कौन करे और क्यों करे? किसे समय है।होली का दिन रंगों की जगह जब कीचड़, गोबर, वार्निश, कैमिकल, तारकोल आदि का प्रयोग हुआ देखते हैं तो बड़ा दु:ख होता है। यह तो रंगों का ही त्योहार है। कीचड़, गोबर अथवा तारकोल का त्योहार नहीं। इस पर्व को गुलाल आदि से ही मनाएं। ऐसा सभी के हित में रहेगा, क्योंकि रंग के अलावा सभी पदार्थ हमारी आंखों व त्वचा के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं। होली को कुछ लोग नशा करने का दिन मान बैठे हैं। वस्तुत: ऐसा नहीं है। शराब, भांग तथा अफीम आदि का प्रयोग अच्छा नहीं है। नशा तो नशा ही है। होली एवं दीपावली के त्योहार हमें नशा करने और जुआ खेलने को नहीं कहते। बुराई का अंत भी बुरा ही होता है।