आंखों देखे विश्व लेखक मेले

चंडीगढ़ में चली दो दिवसीय विश्व पंजाबी कान्फ्रैंस ने मुझे आंखों देखी विश्व लेखक मुलाकातें याद करवा दीं। मैं तीन कान्फ्रैंसों की विलक्षणता बताना चाहूंगा। पहली विश्व कान्फ्रैंस 6 जून से 21 जून, 1980 में पूरे दो सप्ताह ब्रिटेन में चली।  इसमें दुनिया भर से तीन दर्जन लेखक आये, जिनको प्रबंधकों ने ब्रिटेन के सभी बड़े शहरों में भ्रमम करवाया और प्रत्येक स्थान पर साझे विषय पर सैमीनार भी आयोजित करवाए। दिन के समय सैमीनार होते और सायं को कवि दरबार और नाटक। पंजाब से हिस्सा लेने वाले सोहन सिंह जोश, संत सिंह सेखों, जसवंत कंवल, हरिभजन सिंह आदि सभी उस कान्फ्रैंस द्वारा पहली बार ब्रिटेन गए थे। इतना बड़ा मेला रचाने वाली ब्रिटेन की प्रगतिशील लेखक सभा थी। रणजीत धीर, जुगिन्द्र शमशेर, अवतार जंडियालवी और शिव चरण गिल के संयुक्त प्रयास से यह कान्फ्रैंस आयोजित की गई।  इस कान्फ्रैंस के लिए प्रबंधकों ने अपनी कारों, कोठियों के अलावा विश्वविद्यालयों, गुरुद्वारों और मस्जिदों के मेहमानखानों की चाबियां अपने कब्ज़े में की हुई थीं, मज़ा आ गया। 1983 में भारत सरकार ने मुझे और तमिल लेखकों वासंती सुंदरम को फ्रांस में हो रही विश्व लेखक मुलाकात में शामिल होने के लिए भेजा। फ्रांस के नीस शहर में होने वाली इस लेखक मुलाकात में दुनिया भर के प्रसिद्ध कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, जीवनी लेखक और पत्रकार सभी शामिल हुए। मुझे और वासंती को भी भारत के महान लेखक बताकर पेश किया गया। हमें समुद्र के किनारे आलीशान बैंड बजाकर शाम के भोजन के लिए ले जाया गया। हम सागर तट के किसी भी होटल में प्रवेश करके कुछ भी खा-पी सकते थे। होटलों में तैयार किए गए भोजन और बांटी जाने वाली शराब के नाम मोटे अक्षरों में लिखे हुए थे। हमारे रहने का प्रबंध पांच सितारा होटल मैरिडियन में किया हुआ था। नीस के मेयर मार्शल जूलियन का आदेश था कि किसी डेलीगेट को किसी भी तरह की असुविधा हुई तो ज़िम्मेदार व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जायेगी। जिस ऑडीटोरियम में कान्फ्रैंस होनी थी, वह नई दिल्ली की खुली राविन्द्रा रंगशाला जितनी विशाल थी। हिस्सा लेने वालों के लिए रखी गई मेज़-कुर्सियों की कोई शृंखला नहीं थीं। धीरे-धीरे भीड़ और शोरगुल बढ़ रहा था। मेज़ वाले क्या कह रहे थे, और किसको इसकी किसी को कोई परवाह नहीं थी। कान्फ्रैंस के आकर्षण का केन्द्र फ्रांसीसी बैले डांसर लुडमिला चैरीना थी। वह जिस मेज़ पर जाकर बैठती, दूर निकट से कुर्सियां लाकर सभी उसके आस-पास बैठ जाते। वह 50 की होकर भी 25 वर्ष की लग रही थी। मेरी दाढ़ी, पगड़ी और वासंती की काली और बड़ी आंखें आकर्षण का केन्द्र बनीं। एक युवती मेरे पास बैठकर खुशवंत सिंह और अमृता प्रीतम के बारे में बातें करनी लगीं और वासंती के साथ तमिल लेखकों के बारे में उनके हमारे पास आकर बैठने से हमारा काफी सम्मान बढ़ गया था। जो कान्फ्रैंस के पांचों दिन जारी रही। चंडीगढ़ की कान्फ्रैंस की विलक्षणता इसके द्वारा प्रदान किए वशिष्ठ सेवा सम्मानों के कारण है। सरदारा सिंह जौहल को अर्थशास्त्री और शिक्षा शास्त्री के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डाले गए योगदान के लिए चुना गया। जंडियाला गांव के साधारण परिवार में से उठकर भारत के कृषि आयोग, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की गवर्निंग बॉडी के सदस्य के तौर पर ही नहीं, पंजाब स्टेट प्लानिंग बोर्ड के सदस्यों तक पहुंचने वाली इस हस्ती का सम्मान करना उचित है। चार दशकों से फिलीपीन्स, थाईलैंड, कनाडा में समाज सेवा में मग्न सुक्खी बाठ फाऊंडेशन स्थापित करने के बाद अब कनाडा में पंजाब का निर्माण करके इसको साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बनाने वाले सुक्खी बाठ भी इनमें शामिल हैं। कपूरथला के शाही घराने में जन्मी अनीता सिंह ने अलायंस फ्रांसे और इनटैक का नेतृत्व करते हुए शास्त्री संगीत की पंजाबी में लिखी मूल बंदिशों के रख-रखाव के लिए अद्वितीय कार्य किया है। टोरंटो में प्रथम रेडियो शो शुरू करके इकबाल माहिल ने जगजीत, चित्रा और सुरिन्द्र कौर जैसे उच्चकोटि के कलाकारों को अंतर्राष्ट्रीय मंच प्रदान करके कनाडा में बेसहारा बच्चों के इलाज के लिए धन-राशि जुटाने का विलक्षण कार्य किया है।  जैतों में जन्मे जंग बहादुर गोयल ने विश्व साहित्य के शाहकार नावलों को चार संस्करणों में पेश करने के अलावा 56 क्लासीकल रचनाओं का पंजाबी अनुवाद करके पंजाबी पाठकों की अंतर्राष्ट्रीय सोच को चमकाया और बढ़ाया है। अन्य उपलब्धियों के अलावा मैं चंडीगढ़ की विश्व पंजाबी कान्फ्रैंस को उनके द्वारा किए गए बेहतर चुनाव को विलक्षण मानता हूं। ब्रिटेन की कान्फ्रैंस में वहां के गुरुद्वारों का अहम योगदान था। पैरिस वाली कान्फ्रैंस में पैरिस सरकार का और चंडीगढ़ वाली में नामधारी दरबार, भैणी साहिब का और पंजाब कला परिषद का। 
भारत-पाक आने-जाने की बात हम चंडीगढ़ वाली विश्व पंजाबी कान्फ्रैंस में पाकिस्तान के पंजाबी प्रेमी ़फखर जमां को भारत सरकार की ओर से पर्याप्त वीज़ा न दिये जाने पर हैरान हो रहे थे कि मानसा से इस तरह की नई खबर आई है। 23 से 28 मार्च तक सी.पी.आई. (एम.एल.) लिबरेशन द्वारा रचाए जा रहे 10वें महा सम्मेलन में शामिल होने के लिए उतावले पाकिस्तानियों में से किसी एक को भी वीज़ा नहीं दिया जा रहा। देश के बंटवारे के 70 वर्ष गुजर जाने के बाद भी इस तरह का घटनाक्रम निंदनीय है। 

अंतिका
(फिराज़ गोरखपुरी)
हैरां हुए न थे, जो तसव्वुर में भी कभी
तस्वीर हो गए, तेरी तस्वीर देखकर