रीवा : जहां बसी है एक पूरी संस्कृति और सभ्यता

बीहड़ नदियों की संगमस्थली है रीवा जहां से घोघर नदी उत्पन्न होकर आगे गंगा नदी में मिल जाती है। अपनी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के कारण रीवा लोगों को आकर्षित करती रही है। इसी शहर में रचा बसा है एक पूरा महाकाव्य, एक पूरी सभ्यता और एक पूरा नगरीय व ग्रामीण जीवन। रोजमर्रा की ज़रूरतों की आपाधापी के बीच भी यह शहर अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखकर एक सुनहरा इतिहास संजोए हुए है। यातायात के साधनों में रेलवे तथा सड़क परिवहन की पर्याप्त सुविधाएं हैं जिससे यह शहर पूरे देश से जुड़ा हुआ है। प्रसिद्ध जी.टी. रोड भी इस शहर से होकर गुजरती है। रीवा के ऐतिहासिक स्थल शुरू से ही लोकप्रिय रहे हैं। यहां की चित्रकूट नगरी का वर्णन रामचरित मानस में प्रभावपूर्ण ढंग से किया गया है। यहीं पर कामदागिरि में कामतानाथ जी का मंदिर है। कहते हैं कि महाराजा विश्वनाथ सिंह को पुत्र होने का वरदान भी यहीं से मिला था जिसके लिए उन्होंने यहां राम जानकी मंदिर एवं पुत्रदाता वृक्ष की स्थापना की थी जिसके फल से उन्हें श्री रघुराज सिंह जैसे शूरवीर पुत्र मिले जिन्होंने अनेक काव्यादि लिखे। राम-भरत का महत्वपूर्ण भ्रातृ मिलन भी यहीं हुआ है। भगवान राम ने महाकवि स्वामी तुलसी दास को यहीं पर दर्शन दिये थे जो इस दोहे में स्पष्ट है, ‘चित्रकूट के घाट पे भई संतन की भेंट। तुलसी दास चंदन घिसै, तिलक लेतु रघुबीर।।’ रीवा के क्योंटी नामक स्थान पर महाना नदी प्रपात बना हुआ है। कहा जाता है कि इसके पानी के अन्दर सोने के मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। यहां वनवास के समय सीता जी ने रसोई बनाई थी। रीवा में क्योंटी का मकर संक्रांति मेला प्रसिद्ध है। रीवा शिक्षा की नगरी है, साहित्यकारों की संगम स्थली, चिन्तकों की भूमि तथा महान कलाकारों और राजनीतिज्ञों की कर्मस्थली है। विशेष बात यह है कि यहां सैनिक स्कूल है। गोपाल शरण सिंह और अन्य प्रसिद्ध कवि भी यहीं हुए हैं। रीवा में अनेक मंदिर हैं जिनमें जगन्नाथ मंदिर काफी प्रसिद्ध है। हर वर्ष यहां रथयात्रा निकलती है। इसके बारे में कथा प्रचलित है कि महाराजा रघुराज सिंह जी के पुत्र महाराजा व्यंकट रमण जी सोन नदी के उस पार अपनी फौज सहित दौड़ पर गये थे। रथयात्रा के समय पर उन्हें वापस लौटना था। इसी बीच तेज़ वर्षा हो जाने के कारण सोन पूरे वेग से बह रही थी किन्तु जिस प्रकार यमुना नदी ने वासुदेव जी को श्री कृष्ण जी को ले जाने में मार्ग दिया था, उसी प्रकार सोन नदी ने इन महाराजा को भी मार्ग दिया था। अंग्रेज़ी शासन के दौरान फौजी कमाण्डर व्यंकट रमण के पुत्र श्री गुलाब सिंह महाराजा भी इसी शहर के थे जिन्होंने तीन-तीन शिकारियों को खा जाने वाले शेर को ज़मीन पर खड़े होकर मारा था और कई उपाधियों सहित सात खून का माफीनामा भी पाया था। सन् 1945 में इन्होंने अपने रीवा राज्य को आज़ाद करवा के जनता के सुपुर्द किया जिससे अंग्रेज़ों को रीवा के बाहर जाना पड़ा था।
पूरे विश्व का अजूबा है वह सफेद शेर जिसे महाराजा गुलाब सिंह के पुत्र महाराजा मार्त्तण्ड सिंह ने पकड़ा था। शिक्षा के क्षेत्र में एक गौरवान्वित पृष्ठभूमि संजोए हुए है रीवा विश्वविद्यालय। रीवा राज्य को महान कलाकार संगीत सम्राट तानसेन की प्राप्ति और भारत सम्राट अकबर की मां हमीदा बानू बेगम को शरण देने का गौरव प्राप्त है जिसके कारण रीवा को कर से मुक्त रखा गया था। उनकी सनद को अंग्रेज़ों ने भी मान्यता दी थी। रीवा अविजित राज्य रहा है। इसके सिंह-द्वार पर दो मृगेन्द्र मूर्तियां सज्जित हैं जिन पर यह लेख विभूषित है, ‘मृगेन्द्र प्रति द्वन्दताम ताम्या प्रयात।’ ऐतिहासिक स्थलों का खजाना है रीवा राज्य। यहां गोविन्दगढ़ का तालाब जगत प्रसिद्ध है जिसके बारे में कहा गया है कि आधा किला तालाब के अन्दर बसा हुआ है। यह शहर सीमेंट के उत्पादन में भी विशेष स्थान रखता है। प्रसिद्ध बान्धवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान भी इसी राज्य में है। रीवा राज्य न्याय की नगरी कही गयी है। यहां की जनता ने बान्धवगढ़ के राजा की महिमा का उल्लेख कुछ इस प्रकार किया -
पुण्य बीज बरिने बयो। कर्ज कीन्ह द्विपात।। सीचौ बान्धवगढ़ नृपति। जब देखिन कुम्हिलात। (उर्वशी)

— अमिता अवस्थी