कालका-शिमला रेलगाड़ी

जब भारत के प्रधानमंत्री जम्मू-कश्मीर में ज़ोजिला को कारगिल से जोड़ने के लिए 14 किलोमीटर लम्बी उस सुरंग का उद्घाटन कर रहे थे, जिससे श्रीनगर से कारगिल और लेह की दूरी साढ़े तीन घंटे की बजाय 15 मिनट में तय हो जायेगी। मैं कालका-शिमला रोड पर धर्मपुर रेलवे स्टेशन पर था, जहां से ब्रिटिश सरकार की टॉवाय ट्रेन (खिलौना गाड़ी) गुजरती है। मैंने पहली बार इस गाड़ी का सफर 1951 की गर्मी की ऋतु में किया था। इस रेलवे लाईन का इतिहास याद आ गया। ब्रिटिश सरकार ने मैदानों की गर्मी से बचने के लिए 1864 में शिमला को गर्मियों की राजधानी बना लिया था। चाहे वहां पहुंचने के लिए गोरों-गोरियों को कच्चे पहाड़ी रास्तों का कालका से शिमला का सफर बैलगाड़ियों पर तय करना पड़ता था। ब्रिटिश सरकार को कालका से शिमला रेलवे लाईन बनाने में 39 वर्ष लगे। 103 सुरंगें बनानी पड़ी और 800 छोटे-बड़े पुल। 1903 में इस लाईन का लार्ड कज़र्न द्वारा उद्घाटन करने तक सिर्फ 500 अंग्रेज़ अधिकारी दिल्ली से शिमला जाते थे। 1920 में ऐसे अधिकारियों तथा उनके साथियों की संख्या 50,000 हो गई थी। पहाड़ों में से सुरंगें निकालने का कार्य इतना आसान नहीं। बड़ोग वाली सुरंग सबसे लम्बी थी, जिसको बनाने वाले ब्रिटिश रेलवे इंजीनियर बड़ोग कहीं असफल हो गया तो शर्मिंदगी के कारण उसने अपनी जान ले ली थी। जब उसके उत्तराधिकारी हैरिंगटन ने यह सुरंग मुकम्मल करवाई तो इसका नाम पहले इंजीनियर की याद में बड़ोग रखा गया जो आज भी चलता है। आज के दिन यह गाड़ी 6 बार शिमला जाती है और आती है। गत 115 वर्षों में इस रेलवे लाईन द्वारा करोड़ों की संख्या में यात्री हिमाचल प्रदेश का भ्रमण कर चुके हैं, उनमें ब्रिटिश मिशनरी भी शामिल हैं। एक ईवान स्टोक्स नाम के मिशनरी को पहाड़ी सभ्याचार इतना पसंद आया कि उन्होंने कोटगढ़ की पहाड़न से विवाह करवाकर हिन्दू धर्म अपना लिया। यह भी नोट करने वाली बात है कि इस दंपति ने ज़िला शिमला में सेब के फलों की कृषि का इतना प्रचार किया कि इस चीनी की आर्थिक उन्नति का बड़ा स्रोत बनीं। आज के दिन इस रेलवे लाईन और इस पर चल रही खिलौना गाड़ी को यूनेस्को द्वारा बढ़िया विरासत का दर्जा मिल चुका है। 7089 करोड़ रुपए से बनने वाली जोजिला सुरंग कारगिल तथा लेह-लद्दाख के सभ्याचारक और आर्थिक विकास में भी योगदान डालेगी। सभी भारत वासियों की नज़रें इस ओर लगी हुई हैं। विदेशों में सिख मंत्री और अधिकारी इन दिनों गोबिंद सिंह दियो नाम के सिख राजनीतिज्ञ के मलेशिया देश का कम्युनिकेशन व मल्टीमीडिया मंत्री बनने का समाचार आया तभी न्यूयॉर्क के पुलिस कमिश्नर जेम्स नील द्वारा गुरसोच कौर नाम की दस्तारधारी सिख बीबी के अस्टिटैंट पुलिस अधिकारी बनाये जाने की सूचना मिली है। इन समाचारों ने दोनों देशों के सिखों के हौसले बुलंद किए हैं। इससे थोड़ा पहले हमारे मित्र रघवीर सिंह सिरजणा की बेटी रचना सिंह के ब्रिटिश कोलम्बिया असैंबली की सदस्य चुने जाने पर वहां के सिख निवासियों की वाह-वाह करवा दी थी। विदेशी सिख ज़िंदाबाद। आवारा कुत्ते तथा अन्य जानवर नाभा के एक प्रवासी मज़दूर राम बाबू के सात वर्षीय बेटे मुनीष कुमार की आवारा कुत्तों के काटने से मृत्यु आवारा जानवरों की भयानक समस्या की ओर इशारा करती है। चाहे गरीब मजदूर ने स्थानीय पुलिस स्टेशन को इसकी खबर नहीं दी, परन्तु प्रशासन का हर आए दिन होती इस तरह की घटनाओं की ओर ध्यान न देना चिंताजनक है। आवारा गायों का सड़कों पर घूमना भी जानी और माली नुक्सान का कारण बनता है। मुझे इस घटना ने एम.एस. रंधावा को स्मरण करवा दिया है, जब वह 1947 में दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर थे। एक समय जब बहुत गड़बड़ी वाले भागों में उनको धारा 144 लगानी पड़ी तो उन्होंने दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों से कर्फ्यू के दौरान आवारा कुत्ते भी खत्म करवा दिये थे। वर्तमान अधिकारियों में वह वाला दम और खम कहां?

अंतिका
(एक लोक टप्पा)
असां भरेया त्रिरंजन छड्ड जाणा
चिट्ठी आ गी जोरावर दी।