बच्चें के उज्ज्वल भविष्य के लिए खत्म की जाए बाल मज़दूरी

12जून को समाज से बाल मज़दूरी की समस्या को समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाल मज़दूरी विरोधी दिवस दुनिया भर में मनाया जा रहा है। सन् 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर संगठन के सदस्य देशों में ‘वोरसट फॉरमस ऑफ चाईल्ड लेबर’ विषय पर चर्चा करवाने की सर्वसम्मति हुई थी। इस फोरम ने आर्थिक दौड़ में बच्चों के शोषण को रोकने का कदम उठाया था। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर संगठन ने प्रत्येक वर्ष 12 जून को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल मज़दूर दिवस मनाने का फैसला सन् 2002 में लिया था। यूनीसेफ के अनुसार बाल मज़दूरी समाज के लिए एक बुराई है। बाल मज़दूरी बच्चे के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्माक विकास के रास्ते में रुकावट बनती है। आज के बच्चे आने वाले कल का भविष्य हैं। बहुत ही दु:ख की बात है कि देश के सभी बच्चों को पढ़ने, आगे बढ़ने और खेलने आदि के समान अवसर नहीं मिल रहे। अंतर्राष्ट्रीय बाल मज़दूरी रोको संगठन की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के विकासशील देशों में बाल मज़दूरों की संख्या लगभग 22 करोड़ है, जिनमें 61 प्रतिशत बाल मज़दूर एशिया महाद्वीप में रह रहे हैं।  5-14 वर्ष की आयु तक के जो बच्चे अपनी और अपने परिवार की उप-जीविका के लिए मेहनत मज़दूरी करते हैं, बचपन और शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए मज़दूरी करनी पड़ती है। बाल मज़दूरों को लम्बे समय तक भूखे- प्यासे रहकर असुरक्षित माहौल में कम वेतन पर कार्य करना पड़ता है, ऐसे बच्चे भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कई बार तो बाल मज़दूरों को कार्य करने के बदले में सिर्फ रोटी-पानी ही मिलता है। बाल मज़दूरी की समस्या विकराल  रूप धारण करती जा रही है। बचपन की आयु पढ़ने, खेलने और मौज-मस्ती करने की होती है परन्तु बच्चों को कृषि, होटलों, रेस्टोरेंटों, ढाबों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, कारखानों, ईंट बनाने वाले भट्ठों तथा अन्य स्थानों पर मज़दूरी करते हुए आम ही देखा जा सकता है। भारतीय संविधान की धारा 24 के अनुसार 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों से ऐसा कार्य लेने की मनाही है, जिससे बच्चों की प्रतिभा को सामने आने या उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगता हो।  भारतीय संविधान निर्देशक सिद्धांतों (धारा 45) के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा देना सरकार की ज़िम्मेदारी है। अब बेशक देश में शिक्षा का अधिकार सन् 2010 से लागू हो चुका है परन्तु इसके बावजूद अनेक बच्चे स्तरीय शिक्षा से वंचित हैं। देश के नेताओं और नौकरशाही के मनों में बाल मज़दूरी रोकने की इच्छाशक्ति न होने के कारण बाल मज़दूरी निषेध एक्ट सिर्फ फाइलों का शृंगार बनकर ही रह गया है। शिक्षा का अधिकार एक्ट में यह व्यवस्था की गई है कि आठवीं कक्षा तक किसी छात्र को फेल नहीं करना। इस बात का फायदा उठाते हुए बी.पी.एल. परिवारों के माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल में तो दाखिल करवा देते हैं परन्तु बाद में बच्चों को स्कूल भेजने की बजाय मज़दूरी करने लगा देते हैं। इस तरह बच्चा स्कूल में सारा साल अनुपस्थित रहने के बावजूद कक्षा तो पास कर जाता है परन्तु उसके हिस्से कुछ भी नहीं आता। भारत में आज़ादी के बाद बाल मज़दूरी जैसे अमानवीय घटनाक्रम को समाप्त करने के लिए देश के संविधान में धारा 24 की व्यवस्था की गई थी जिसके अनुसार 5-14 वर्ष के बच्चे से कोई काम नहीं लिया जा सकता। देश में बाल मज़दूरी को समाप्त करने के लिए सन् 1986 में सरकार ने बाल मज़दूर एक्ट बनाया। इसके साथ-साथ अगस्त 1987 में सरकार ने बाल मज़दूरी की राष्ट्रीय नीति का ऐलान किया। इन सभी नीतियों के बावजूद बाल मज़दूरी आज तक भी जारी है। इसका मुख्य कारण राजनीतिक नेताओं और नौकरशाही में बाल मज़दूरी को समाप्त करने की इच्छाशक्ति की कमी है।  बाल मज़दूरी की समस्या ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिया हुआ है। गरीबी ही बाल मज़दूरी की बुराई की जड़ है। बाल मज़दूरी को समाप्त करने के लिए सरकार को सभी नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्रयास करने चाहिएं। किसी भी बच्चे को पेट की भूख मिटाने के लिए मज़दूरी न करनी पड़े, शिक्षा हासिल करना सभी बच्चों का प्राथमिक अधिकार है। सभी नागरिकों को प्राथमिक ज़रूरतें रोटी-कपड़ा और मकान मुहैय्या करवाना सरकार की ज़िम्मेदारी है।  देश में सारे कामकाज करने वाली सभी संस्थाओं /संस्थानों का पंजीकरण करना सरकार आवश्यक बनाये। इन संस्थाओं में कार्य करने वाले सभी मज़दूरों का रिकार्ड रखा जाए। बाल मज़दूर से कार्य करवाने वाली संस्थाओं के लाइसैंस रद्द किए जाएं और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। सरकार के साथ-साथ स्वै-सेवी संगठन, धार्मिक नेता भी बाल मज़दूरी को जड़ से समाप्त करने के लिए लोगों को जागरूक करें। बाल मज़दूरी को समाप्त करने के लिए जन आंदोलन पैदा करना समय की मुख्य ज़रूरत है। सरकार को बाल मज़दूरी की समस्या को जड़ से उखाड़ने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिएं ताकि मज़दूरी करने वाले मासूम से बच्चे भी कोमल हाथों में पुस्तक, कॉपी, पैन/पैंसिल पकड़ कर अपने स्वर्णिम भविष्य की किस्मत लिख सकें।