बरगाड़ी कांड मामले की जांच : सरकार पारदर्शी ढंग से सच्चई सामने लाए

हृदय को दुखी करने वाले बरगाड़ी कांड के दोषियों को पकड़ा जाना ज़रूरी था, परन्तु जितनी देर इस कांड को हल करने में लगी है, वह हैरानीजनक कम अपितु साज़िशी ज्यादा लगती है। हां, इस कांड के दोषियों को पकड़े जाने की मांग को हर सिख की मांग है। अब जब पंजाब पुलिस इस मामले के दोषियों को पकड़ लेने के दावे कर रही है तो इसका स्वागत करना तो बनता ही है। परन्तु यह केस अदालतों में किस तरह पेश किया जाता है और इसकी पैरवी कैसे की जाएगी, इसकी सच्चाई तो समय पाकर और न्यायिक फैसलों से ही पता चलेगी। 
यह कांड जो एक जून, 2015 को फरीदकोट के गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला के गुरुद्वारा साहिब में से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप चोरी होने से शुरू हुआ था, लगभग तीन वर्ष के लम्बे समय के बाद चाहे पुलिस के नुक्ता-ए-निगाह से तो हल कर लिया गया है परन्तु इस कांड के राजनीतिक अर्थ और परतें अभी भी गहरी हैं। समय की सरकार का दायित्व है कि इस मामले में सब कुछ पूरे पारदर्शी ढंग से पंजाब के लोगों के सामने रखा जाएगा ताकि इस सरकार पर भी पूर्व सरकार की तरह ही राजनीति खेलने के आरोप न लग सकें। वैसे जिस तरह की ‘सरगोशियां’ सुनाई दे रही हैं, उनसे तो यही प्रतीत होता है कि जैसे राजनीतिक गुट सारा सच सामने लाने की अपेक्षा अपने-अपने राजनीतिक फायदों-नुक्सानों का हिसाब लगाकर ही चल रहे हों। लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव? जिस तरह की चर्चाएं सुनाई दे रही हैं, उनके अनुसार इस कांड के हल के लिए पंजाब पुलिस द्वारा अचानक दिखाई गई तेजी का समय, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा बरगाड़ी मोर्चे पर बैठे बादल विरोधी सिख नेताओं की सोच के अनुसार उठाये जा रहे कदम (वैसे किसी तरह भी सही, किसी कारण भी सही, यदि कुछ न्याय होता है, उसका हम स्वागत करते हैं) वास्तव में 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व अकाली दल बादल को एक बार फिर पछाड़ कर खड़ा करने की कोशिश ही हैं। गौरतलब है कि पूर्व विधानसभा चुनावों में अकाली दल का जितना नुक्सान बरगाड़ी कांड और सिरसा डेरे के साथ संबंधों ने किया था, उतना शायद माफिया के प्रचार ने भी नहीं किया था। 
कुछ अकाली समर्थक क्षेत्र तो यह आरोप भी लगा रहे हैं कि इस कांड को हल करने के लिए यह समय बादल विरोधी खाड़कू गुटों को सिखों में प्रभाव बढ़ाने के लिए चुना गया है। क्योंकि यह बिल्कुल नहीं हो सकता कि लम्बे समय से इस कांड की जांच कर रही पंजाब पुलिस की विशेष जांच टीम को मुतवाजी कार्यकारी जत्थेदार भाई ध्यान सिंह मंड द्वारा लगाए मोर्चे के बाद अचानक ही दो-चार दिनों में दोषियों के बारे में सुराग मिल गए और उन्होंने यह मामला हल कर लिया। अपितु यह समझा जा रहा है कि वास्तव में तो पुलिस जांच टीम पहले ही इस मामले की परतें खोल चुकी होगी और राजनीतिक इशारे का इंतजार कर रही होगी। ऐसी चर्चाएं भी हैं कि बादल विरोधी अकाली और पंथक गुटों की दिलचस्पी पंजाब की सत्ता में नहीं, अपितु हाल के समय सिर्फ शिरोमणि कमेटी तक ही सीमित है। वैसे हैरानी की बात है कि इस मामले में सी.बी.आई. जांच का क्या बना इसकी कोई भी चर्चा कहीं से भी सुनाई नहीं दे रही? बादल दल की तैयारी?यह नहीं कि बादल अकाली दल इस स्थिति से अंजान है और वह चुपचाप ‘दड़ वट्ट ज़माना कट्ट’ की नीति पर चलेगा। पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के इस बयान की ‘बरगाड़ी कांड के दोषियों की धर पकड़ वही पुलिस टीम कर रही है जिसका गठन हमने किया था’ को इस बात की शुरुआत माना जा सकता है कि बादल अकाली दल इस स्थिति में होने वाले सम्भावित राजनीतिक नुक्सान से बचने के हर सम्भव प्रयास  की तैयारी में हैं। पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के साथ अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल, पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया और डा. दलजीत सिंह चीमा की गांव बादल की मुलाकात को भी इसी संदर्भ में ही देखा जा सकता है। समझा जा रहा है कि अकाली दल बरगाड़ी कांड के दोषी पकड़े जाने का तो स्वागत करेगा, परन्तु यदि पंजाब की कांग्रेस सरकार इससे आगे गई और मामले में अकाली दल और बादल सरकार को दोषी ऐलान करने की कोशिश की गई तो जस्टिस रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट में बादल सरकार को किसी तरह ज़िम्मेदार ठहराया गया तो अकाली दल सरकार और कांग्रेस के खिलाफ जवाबी हमलावर मुहिम शुरू करने के बारे में विचार-विमर्श कर चुका है। हमारी जानकारी के अनुसार अभी यह विचार-विमर्श निजी स्तर पर है परन्तु इसके बारे में विस्तृत फैसला लेने के लिए अकाली दल की कोर कमेटी की बैठक भी शीघ्र ही बुलाई जा सकती है। आप्रेशन ब्लू स्टार की फाइलें सार्वजनिक हों अब जब ब्रिटेन के फ्रीलांसर पत्रकार फिल मिलर द्वारा दायर याचिका पर ब्रिटेन के एक सूचना अधिकारों के बारे में ट्रिब्यूनल के जज मरे शैंक्स ने यह फैसला सुना दिया है कि आप्रेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की भूमिका या सहायता के बारे में कैबिनेट फाइल जिसका नाम ‘इंडिया पॉलीटीकल’ है, जो ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों एम.आई.-5, एम.आई.-6 और जी.सी.एच.क्यू से संबंधित है और प्रधानमंत्री कार्यालय की फाइलों के एक खास हिस्से को छोड़ कर अन्य फाइलें सार्वजनिक कर दी जाएं तो भारत में भी यह मांग होनी शुरू हो गई है कि आप्रेशन ब्लू स्टार के 34 वर्षों बाद इससे संबंधित भारतीय सरकारी दस्तावेज़ भी सार्वजनिक किए जाने चाहिए अथवा नहीं? हम समझते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का यह अधिकार होता है कि वह देश में घटी घटनाओं के कारणों और स्थितियों के बारे में जान सके।  इसलिए ज़रूरी है कि अब यह बात लोगों के सामने लाई जाए कि आप्रेशन ब्लू स्टार करने का फैसला कैसे और किन परिस्थितियों में किया गया? इस फैसले की पृष्ठभूमि क्या थी और कौन-से ऐसे दस्तावेज़ थे जिन्होंने भारत सरकार को अपने ही देश के एक धार्मिक अल्पसंख्यक के मुख्य धर्म स्थल पर सैन्य हमला करने के लिए फैसला लेने पर मजबूर किया। क्या सैनिक हमला किए जाने के बिना कोई अन्य विकल्प ही नहीं बचा था? या अन्य रास्ते पर विचार नहीं किया? यह सच्चाई भी सामने आनी चाहिए कि दरबार साहिब पर हमले के दौरान गुप्त सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार क्या-क्या हुआ? इस स्थिति को टालने के लिए क्या-क्या प्रयास किए गए। किन-किन नेताओं की इन प्रयासों को असफल करने में क्या-क्या भूमिका थी? जैसे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री ने आप्रेशन ब्लू स्टार में भारत सरकार की सहायता के लिए स्पैशल एयर सर्विस आफिसर को भारत भेजा था। क्या इसी तरह इस मामले में भारत ने अन्य विदेशी देशों से भी कोई सहायता ली थी? यदि ली थी तो क्यों? उल्लेखनीय है कि आप्रेशन ब्लू स्टार के दिनों में इस मामले में रूस के नाम की चर्चा भी सुनाई देती रही थी। इस समूचे मामले में पाकिस्तान तथा अन्य भारत विरोधी देशों की क्या भूमिका थी?  बेशक ब्रिटेन के सूचना अधिकारों के ट्रिब्यूनल ने इस फैसले के खिलाफ ब्रिटेन के कैबिनेट कार्यालय को 11 जुलाई, 2018 तक अपील करने की मोहलत भी दी है परन्तु भारत जहां वास्तव में यह कांड हुआ है, जहां अपने देश के लोगों पर सैन्य हमला किया गया, की मानवाधिकार संस्थाओं को मानवाधिकार कानूनों अधीन संबंधित न्यायालय में आप्रेशन ब्लू स्टार से संबंधित सरकारी दस्तावेज़ सार्वजनिक करने की मांग अवश्य करनी चाहिए ताकि स्वयं को सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने वाले देश के लोग भी सच्चाई से अवगत हो सकें।

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