प्रसिद्ध प्राचीन श्री राम गोपाल मंदिर डमटाल (हि.प्र.)

प्रसिद्ध प्राचीन ऐतिहासिक श्री राम गोपाल मंदिर पठानकोट से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर चक्की खड्ड के बाएं किनारे स्थित डमटाल गांव में है। डमटाल गांव पंजाब तथा हिमाचल की सीमा के साथ आगे-पीछे आंख-मिचौली खेलता है। पठानकोट (पंजाब) तथा डमटाल (हि.प्र.) के क्षेत्र आमने-सामने सड़कों-मोहल्लों से विभाजित होता है। एक ही सड़क घूमती हुई दोनों क्षेत्रों में आती जाती है। पठानकोट के लोगों की ज़मीन जायदाद हिमाचल में तथा हिमाचल के लोगों की ज़मीन पंजाब में भी है। वक्फ बोर्ड की भूमि ज्यादा है जो लोगों ने किराए पर ले रखी है। पंजाब के लोग इस मंदिर को देखने ज्यादा आते हैं। यह मंदिर ज़िला कांगड़ा तथा तहसील इन्दौरा के अन्तर्गत आता है। श्री रामगोपाल मंदिर डमटाल-कण्डवाल मार्ग पर सड़क से लगभग दो सौ मीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थापित है। कभी यहां दुर्ग था। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 1500 फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर चारों ओर से पेड़ों से घिरा हुआ है। मंदिर के दाएं किनारे दुर्गा माता का मंदिर है। इसके साथ ही मुख्य ड्योढ़ी-गोपाल ड्योढ़ी, अध्यात्मिक ड्योढ़ी, प्राचीन वट वृक्ष, बाईं ओर गद्दी मंदिर, ऊपर गुरु निवास, दाईं ओर अन्न भण्डार, महात्माओं की गुम्बदाकार समाधियां हैं। श्री राम गोपाल जी का मंदिर उत्तर की ओर है। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने तुलसी चौरा, हाथ जोड़े महावीर की विशाल मूर्ति, पीछे गोशाला है। इसके उत्तर की ओर पिण्डीनुमा शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग के साथ धर्मताल है। सम्भवत: धर्मपाल के नामानुसार-डमटाल नाम पड़ा। मंदिर की दीवारों पर अनुपम चित्रकला दर्शनीय है।  यह लगभग 17वीं सदी में निर्मित हुआ। डमटाल एक औद्योगिक क्षेत्र है। यहां दांगू पीर, हनुमान मंदिर, शिव मंदिर अन्य पावन स्थान हैं। कांगड़ा ज़िला में मलकवाह से डाडर, खुआडा, नेरा, लुहारपुरा, हड़ल, लिहोरा डूमण, मैरा, बतराह, रवणी, पेल, टनूठ, बेली महन्ता, डमटाल होते हुए चक्की खड्ड माजरा और छन्नी गांव के मध्य पंजाब के प्रवेश का मीरथल के समीप ब्यास नदी दाएं किनारे से प्रवेश करती है। यह खड्ड मलकवाह से लेकर माजरा तक पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा को विभाजित करती है। चक्की खड्ड में प्रवेश करने वाली प्रमुख जबर खड्ड है। यह टनूण और कण्डवाल के मध्य चक्की खड्ड के बाएं किनारे प्रवेश करती है। पठानकोट के प्रसिद्ध ठेकेदार तथा लेखक भाई श्री हरबंस सिंह कंवल तथा मनमोहन सिंह धकालवी की ज़मीन मंदिर की सीमा वाले क्षेत्र में वक्फ बोर्ड के अधीन आती है। उन्होंने बताया कि यह प्राचीन मंदिर सभी धर्मों के लोगों में लोकप्रिय और सौहार्दता का प्रतीक माना जाता है। ज़िला कांगड़ा के विभिन्न क्षेत्रों में पर्वतों के दामन और प्राकृतिक कन्दराएं या मानव निर्मित गुफाएं पाई जाती हैं। इन गुफाओं में प्राचीन समय ऋषि मुनि तप किया करते थे। धौलाधार पर्वत श्रेणी के कई स्थानों पर गद्दियों ने शर्द ऋतु या वर्ष के बचाव के लिए गुफाओं का निर्माण किया था। ऐसी गुफा का प्रमाण इन्द्रहार दर्रे के पश्चिम में स्थित लहेश गुफा है। इस गुफा का द्वार संकरा है परन्तु भीतर बड़ा धरानुमा स्थान है। इसी तरह डमटाल के श्री राम गोपाल मंदिर से एक गुफा गुरदासपुर के पण्डोरी धाम तक जाती है, परन्तु वर्तमान में इन गुफाओं के भीतर जाना सम्भव नहीं है। डमटाल मंदिर की यह प्राचीन गुफा डमटाल के उत्तर में पेड़ों से ढकी एक पहाड़ी के दामन में है। जनमान्यता के अनुसार यह गुफा पंजाब के पण्डोरी धाम गुरदासपुर तक विस्तृत तथा इसका निर्माण पाण्डवों ने बनवास के समय किया होगा। वर्तमान में यह गुफा झाड़ियों के कारण बंद है। ज़िला कांगड़ा में शिवालिक पर्वत श्रेणी की विभिन्न शाखाओं का प्रसार इस भू-क्षेत्र का सौन्दर्य है। शिवालिक पर्वत श्रेणी सुल्याली के समीप कांगड़ा में प्रवेश कर चक्की खड्ड के बाएं किनारे उत्तर से दक्षिण की ओर मुड़ती हुई भदरोया, माओ, छतरोली पहाड़ियों के नामानुसार जासूर के उत्तर में जाछ पर्वत, जौन्टा तक विस्तृत है। यह पर्वत कांगड़ा-पठानकोट राष्ट्रीय मार्ग में जौन्टा से लेकर चक्की खड्ड का बाएं किनारे तक राष्ट्रीय मार्ग के बाएं किनारे विस्तृत है। मंदिर के केन्द्र में दीवारों तथा छतों के ऊपर विभिन्न भव्य रंगों में चित्रकारी, प्राचीन कला शैली तथा शिल्प की अनूठी तवारीख को त्रैकालिक सौंदर्यकरण की चकाचौंध का जीवंत प्रमाण है। विशेष तौर पर यहां की दीवारों की छतों पर की गई चित्रकारी हिन्दू धर्म ग्रन्थों तथा इतिहास के पन्नों की कहानियां सुन्दर एवं आकर्षक चित्रों द्वारा तवारीख एवं घटनाओं को बयान करती हैं। भारत की प्राचीन चित्रकारी का नमूना देखना हो तो इस स्थान में देखा जा सकता है। यह चित्रकारी आधुनिक कलाओं से कहीं ऊपर तथा सर्वश्रेष्ठ है। उद्यम तथा परिश्रम का नमूना।  किसी समय यहां षोड्शोपचार की सभी विधियां होती थीं जो आजकल नज़र नहीं आतीं। पूजा-अर्चना सरकारी मुलाजिम करते हैं। मजबूरी और श्रद्धा का भेद देखने को मिलता है। इस स्थान से दाईं-बाईं ओर हिमाचल की पहाड़ियों के दृश्य सुबह-शाम दिल को लुभाते हैं। यहां आकर शान्ति तथा आध्यात्मिकता के किवाड़ खुलते हैं। यहां कई पर्व-त्यौहार धूमधाम एवं श्रद्धा से मनाए जाते हैं। आप भी इस स्थान के दर्शन करें।

—बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
मो. 98156-25409