मधुमक्खियों की बुद्धिमत्ता

एक गांव के बाहर की ओर बहुत बड़ा जंगल था। उस जंगल में बहुत से जानवर तथा पक्षी रहते थे। जंगल के सभी जानवर तथा पक्षी कभी-कभी आपस में इकट्ठे बैठते। आपस में बातचीत करते। अपना दुख-सुख एक दूसरे से बांटते। जंगल का राजा हाथी उसके सलाहकार जानवर पक्षियों तथा जानवरों से उनकी समस्याएं पूछते। उनसे जंगल की समस्याओं तथा सुधार के बारे में सुझाव मांगते। वर्ष में एक बार जानवरों तथा पक्षियों की महासभा होती। उसमें जंगल से बाहर के जानवर तथा पक्षी अतिथि के तौर पर शामिल होते। उस महासभा में जानवर तथा पक्षी आपस में मिलकर खुशी मनाते। जंगल के नए राजा का चुनाव करते। एक बार महासभा से पहले बहुत सी मधुमक्खियों ने अपना बहुत बड़ा छत्ता बनाया। महासभा से दो दिन पहले उन्होंने महासभा के प्रबंध होते देख जंगल के राजा को पूछा- ‘महोदय, क्या हम आपकी सभा में सम्मिलित हो सकती हैं?’ राजा ने कहा- ‘मधुमक्खियों यह निर्णय मैं अकेला नहीं ले सकता। मुझे अपने साथियों से पूछना पड़ेगा।’ उसने अपने साथियों से पूछा। उन्होंने उनको महासभा में शामिल करने से साफ इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे न तो जानवर हैं और न पक्षी। फिर वे हमारी महासभा में कैसे शामिल हो सकती हैं? मधुमक्खियों को उनका उत्तर सुनकर बहुत निराशा हुई। समय व्यतीत होता गया। मधुमक्खियों की संख्या बढ़ती गई। उनका छत्ता बहुत बड़ा हो गया। एक दिन बहुत से शिकारियों का एक टोला जंगल में जानवरों का शिकार करने पहुंचा। उन्होंने जंगल में अपना जाल भी फैला लिया। अचानक शिकारियों का मुखिया बोला ‘मित्रो, ज़रा ठहरो, जंगल में जाने से पहले मुझे अच्छी तरह जंगल को देख लेने दो।’वह जंगल में गया उसने मधुमक्खियों का छत्ता देखकर कहा- ‘मित्रो, जंगल में प्रवेश करने से पहले सोच लो। मधुमक्खियां संख्या में अधिक हैं। जंगल में प्रवेश करते ही वे हमारे ऊपर आक्रमण कर देंगी। उनसे हमारा बचकर निकलना बहुत कठिन है। उसकी बात सुनकर अन्य शिकारी बोले- ‘भाई, हम जंगलों में जाते ही रहते हैं। आज हम कोई नया शिकार तो नहीं करने लगे। तुम जंगल के अंदर चलो। देख लेंगे जो कुछ भी होगा’ शिकारी आपस में विचार-विमर्श करने के पश्चात् जंगल में चले गए। जैसे ही उन्होंने जंगल में प्रवेश किया, उन्हें देख कर जंगल के जानवरों में भगदड़ मच गई। मधुमक्खियों का ध्यान शिकारियों की ओर चला गया। प्रधान मधुमक्खी ने सभी मधुमक्खियों को कहा-‘बहनों, हमें शिकारियों के आक्रमण से जंगल के जानवरों की रक्षा करनी चाहिए। वे भी हमारे ही साथी हैं।’ अन्य मधुमक्खियों ने कहा- ‘हम जंगल के जानवरों तथा पक्षियों की रक्षा क्यों करे। वे तो हमें जंगल का हिस्सा ही नहीं समझते।’ प्रधान मधुमक्खी ने कहा-‘यदि हमारी सोच भी इनके जैसे हो गई तो हम में और इनमें क्या अंतर हुआ। तुम शीघ्रता से शिकारियों पर आक्रमण करो। कहीं देर न हो जाए। अन्य मधुमक्खियों ने मिलकर शिकारियों पर धावा बोल दिया। शिकारियों ने मुश्किल से भागकर अपनी जान बनाई। जंगल के राजा तथा उसके सलाहकारों को अपनी भूल का एहसास हो गया। उन्होंने मधुमक्खियों को बुलाकर उनका धन्यवाद किया।’