जन-कल्याण के लिए होना चाहिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल

ब्रिटेन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सम्मेलन में वैश्विक स्तर पर नियंत्रण विहीन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि आई.ए.) से दुनिया के लिए भारी खतरा उत्पन्न होने की शंका जताई गई है। इससे लोगों की गोपनीयता तो खत्म होगी ही और इन्सानी जीवन पर भी खतरा मंडराने लगेगा। सबसे खास बात यह कि आज बेरोज़गारी की समस्या से दुनिया जूझा रही है। ऐसे में कृत्रिम बुद्धिमत्ता बेरोज़गारी बढ़ाने के साथ सुरक्षा, राजनीतिक, शैक्षिक एवं संवेदनशील मुद्दों पर अनावश्यक हस्तक्षेप करेगी। वैसे तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है अर्थात यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया गया इंटेलिजेंस है। ब्रिटेन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से जुड़े जोखिमों और प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के नेतृत्व में उनसे निपटने के तरीकों पर विचार-विमर्श करने के लिए 100 से ज्यादा विश्व नेता, तकनीकी दिग्गज, शिक्षाविद और शोधकर्ता ने एआई से उपजने वाले सम्भावित खतरों से निपटने की योजना पर एक राय दी है। तय यह हुआ है कि सरकारें एआई तकनीक को कायदे-कानून के अनुसार विकसित करें। इस बात पर भी चिन्ता जताई गई कि अगर निजी कम्पनियों में एआई के विकास को लेकर खुली प्रतिस्पर्धा छिड़ी तो यह मानवता के लिए नुकसानदेह साबित होगी। वैसे भी वैश्विक बोस बनने की सनक में कई राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के दुश्मन बनते जा रहे हैं। 
हाल की एक रिपोर्ट में ब्रिटिश सरकार ने एआई के कुछ संभावित खतरों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें जैव-आतंकवाद, साइबर हमले और बाल यौन शोषण की डीपफेक इमेज शामिल हैं। इतना ही नहीं एआई में कई नौकरियों को एक साथ करने की क्षमता है, जो वर्तमान में मानव द्वारा की जाती हैं। इससे बड़े पैमाने पर नौकरियां खत्म हो सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जो दिमाग वाले काम पर बहुत अधिक निर्भर हैं। एआई केवल उतना ही निष्पक्ष हो सकता हैं जितना कि उसके डेटा को प्रशिक्षित किया जाता है। एआई सिस्टम साइबर हमलों और हैकिंग के प्रति सेंसेटिव हैं। यदि एआई सिस्टम में छेड़छाड़ की जाती है, तो इससे बहुत-सा डेटा लीक हो सकता है, जिससे आम जनता को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। एआई सिस्टम के हल जटिल और समझने में कठिन हो सकते हैं. जिससे आपको इसमें मौजूद कमियां या सिस्टम से हुई गलती की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए यह कभी-कभी कीमती समय खराब करता है। एआई-संचालित हथियार मानव जीवन को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिसका हाल ही में एक मामला अमरीकी वायु सेना में भी आया, जिसमें एआई ने अपने ही ऑपरेटर को मौत के घाट उतार दिया। इसलिए यह तय करना बहुत ज़रूरी है कि एआई का उपयोग ऐसे हथियार बनाने के लिए किया जाना चाहिए, जो मानव को नुकसान न पहुंचा पायें। हालांकि यह तय करना ज़रूरी है कि एआई के जोखिमों को कम और फायदों को अधिक किया जाए। इसके लिए सरकारों, कारोबारियों और जनता के बीच तालमेल की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एआई का उपयोग इस तरह से किया जाए जिससे पूरे समाज को लाभ हो।
विश्व के पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सुरक्षा शिखर सम्मेलन ब्रिटेन के बकिंघम में यूनियन कौशल विकास और उद्यमिता तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भारत की तरफ  से सुरक्षा, विश्वास और जवाबदेही पर विशेष ध्यान देने के साथ एआई के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया। मंत्री ने कहा कि इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि हम एक ऐसे युग में प्रौद्योगिकी के भविष्य को आकार देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जहां यह मानव जाति के लिए अब तक के सबसे रोमांचक अवसरों में से कुछ पेश कर रहा है। मंत्री ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भारत की पहले से ही तेज़ और विस्तृत हो रही डिजिटल अर्थव्यवस्था, विकास और शासन का एक गतिशील प्रवर्तक है। उन्होंने कहा कि हम एआई को खुलेपन, सुरक्षा, विश्वास और जवाबदेही के चश्मे से देखते हैं। मंत्री ने आगे कहा कि एआई का उपयोग केवल जनमानस की भलाई के लिए किया जाना चाहिए।
ब्रिटेन में दो दिवसीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शिखर सम्मेलन दुनिया के पहले एआई सुरक्षा संस्थान के निर्माण के साथ सम्पन्न हो गया। एआई सुरक्षा संस्थान जी-7 देशों के भीतर पहला टास्क फोर्स बन गया है। टास्क फोर्स के एक्सटर्नल एडवायजरी बोर्ड में राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर कंप्यूटर विज्ञान तक के कई दिग्गज होंगे, जो नए वैश्विक केंद्र को सलाह देंगे। संस्थान का इरादा एआई माडल की संभावित हानिकारक क्षमताओं से निपटने के लिए नए प्रकार के एआई उपक्रम का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना है। 
 कई देश इंटरनेट के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर हाईस्पीड वाले देश सउदी अरब, साउथ कोरिया, आस्टेलिया और कनाडा जैसे देशों को इसका बेहतर फायदा होगा। इसी तरह कम्प्यूटर तकनीक में अग्रणी देश कनाडा, अमरीका, आस्टेलिया, जर्मनी, सिंगापुर, स्विट्ज़रलैण्ड और चीन जैसे देशों के लिए एआई में काम करना अन्य देशों की अपेक्षाकृत सरल होगा। ऐसे में चंद देशों को तकनीकि उपलब्धता को फायदा मिलेगा। ऐसे में कुछ देश एआई जैसी तकनीक पर शिंकजा कसना चाहेंगे। इसलिए बेहतर यही होगा कि ज़रूरत के हिसाब से एआई तकनीक के क्षेत्र में काम करने के लिए एक मानक, नियम और इन पर नियंत्रण रखने हेतु पारदर्शी व्यवस्था की दरकार होगी।