आओ , चलें अंतरिक्ष में बेमिसाल इमारतें

गोडार्ड के बाद तीसरे फेज़ में दाखिल हुए रॉकेट। इसका श्रेय वर्कर वान ब्रान नामक जर्मन को मिला। अमीर राईसज़ादा  थे ब्रान। उनके पिता जर्मनी की वैमर रिपब्लिक सरकार में कृषि मंत्री थे। मां का संबंध फ्रांस और इंग्लैंड के शाही खानदान से जुड़ता है। वान ब्रान बचपन से पियानो के शौकीन थे। बढ़िया संगीतकार बन सकते थे वह। यह बचपन में ही इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों से लगता था। परन्तु उनकी मां ने जिस दिन से उनको टैलीस्कोप लेकर दिया, ब्रान संगीत की बजाय स्पेस (अंतरिक्ष) की ओर आकर्षित होने लगे। वह विज्ञान और विज्ञान गलप की पुस्तकें पढ़ते।  रॉकेट की स्पीड बढ़ाने के बारे में योजनाएं बनाते। 12 वर्ष के ब्रान ने एक दिन बर्लिन की भीड़ भरी गलियों में अफरा-तफरी मचा दी। उन्होंने चुपचाप ही एक टॉय वेगन (इस तरह कहें कि खिलौना ट्रक/ट्रक का खिलौना) के पीछे दीपावली की आतिशबाज़ियों का गुच्छा बांध कर आग लगा कर धकेल दिया। आतिशबाज़ियों की चिंगारियां पीछे की तरफ तथा ट्रक आगे की ओर। उनका सोचा विचार सफल रहा। वह बहुत खुश हुए परन्तु पुलिस खुश नहीं हुई। उनको हिरासत में ले लिया गया। पिता ने रिहा करवा दिया। कई वर्ष बाद उन्होंने इस घटना के बारे में स्मरण करते हुए कहा ‘मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यह सिद्धांत/अनुभव इतना सफल रहेगा। यह तो कामेट की तरह भागा। जब सभी रॉकेट जल गए तो ट्रक स्वयं रुक गया।’ ब्रान कहते हैं कि मेरी गणित में दिलचस्पी नहीं थी, परन्तु रॉकेटों ने यह भी पढ़ा दिया। कैलकलस, न्यूटन के सिद्धांत, अंतरिक्ष उड़ान के समीकरण सब कुछ। एक दिन उन्होंने अपने प्रोफैसर को कहा ‘सर मैं चांद पर जाने की योजना बना रहा हूं।’ चुपचाप मुस्कुराए उनके प्रोफैसर। वान ब्रान ने फिजीक्स की ग्रेजुएशन की। सन् 1934 में उन्होंने डाक्टरेट भी कर ली। वैसे उनका अधिकतर समय बर्लिन रॉकेट सोसायटी नामक शौकिया सोसायटी में गुज़रता। इसके सदस्य इधर-उधर से जुगाड़ करके/स्पेयर पार्ट्स जोड़ कर/नए परीक्षण करके रॉकेट बनाते। इनके परीक्षण के लिए सोसायटी के पास शहर के बाहरी तरफ 300 एकड़ का उजाड़ मैदान था। 1934 में इस सोसायटी ने एक ऐसे रॉकेट का सफलता से परीक्षण किया, जो आसमान में दो मील ऊंचा उठा। वान ब्रान समय पाकर किसी जर्मन यूनिवर्सिटी में फिजीक्स के प्रोफैसर लग जाते परन्तु नाज़िया की चढ़त के दिन थे। सरकार का ध्यान सेनाओं और घातक हथियारों की ओर था। नाज़ियों को वान ब्रान में घातक हथियारों की खोज और विकास की सम्भावनाएं नज़र आईं। उन्होंने उनके डाक्टरेट के थीसिज़ के प्रकाशन पर पाबंदी लगा कर उनको खुले फंड देकर बढ़िया, अधिक रेंज और अधिक ऊंचे उड़ने वाले शक्तिशाली रॉकेट डिजाइन करने पर लगाया। बजट की कोई सीमा नहीं थी उनके लिए। उनको रॉकेट प्रोजैक्ट के डायरैक्टर बनाया गया। वान ब्रान की किसी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। परन्तु रॉकेट डिजाइन उनका मन-भावन कार्य था। बचपन का सपना। उन्होंने यह डायरेक्टरी स्वीकार कर ली। सरकार ने उनकी सहायता के लिए देश के बड़े वैज्ञानिक और इंजीनियर भी उनके हवाले कर दिए। ब्रान और उनकी टीम अब रॉकेट डिजाइन में व्यस्त हो गए। सरकार ने उनको नाजी पार्टी की सदस्यता की पेशकश भी की, परन्तु उन्होंने नम्रता सहित अस्वीकार कर दी। वान ब्रान ने तस्यिलकोवस्की, गोडार्ड और अपने अब तक के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाते हुए वी-2 नामक शक्तिशाली रॉकेट बनाए। 46 फुट ऊंचे, 27,600 पौंड भारी इन रॉकेटों की स्पीड 3580 मील प्रति घंटा और यह 60 मील ऊंचे उड़ सकते थे। 200 मील दूर तक मार करने वाले इन रॉकेटों ने लंदन तथा एंटवर्प में आतंक मचा दिया। शहरों में ब्लाकों के ब्लाक इन्होंने ध्वस्त कर दिए। स्पीड, रेंज और तबाही के सभी रिकार्ड तोड़ दिए, आवाज़ से तेज। साऊंड बैरियर तोड़ने वाला पहला रॉकेट वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष में जाने वाला पहला रॉकेट। मित्र देशों पर तीन हज़ार से अधिक वी-3 द़ागे गए। 9 हज़ार लोग मारे इन्होंने, रॉकेट बनाने में लगाए जंगी कैदियों में से जो मरे वह अलग। नाज़ियों को किसी के जीने-मरने की चिंता नहीं थी। कार्य करते व्यक्ति भूख से मरे या निद्रा से या किसी विस्फोट से, उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था। वान ब्रान एक बार रॉकेट बनाने वाली साइट पर गए तो उनका मन बहुत खराब हुआ, बिल्कुल नर्क। उन्होंने किसी सरकारी सैन्य अधिकारी के साथ बात की तो उन्होंने उनको डांट कर चुप करवा दिया। अपने कार्य से ही मतलब रखो, नहीं तो तुम्हें भी इन जैसे किसी नर्क में भेजना पड़ेगा। बाद में एक बार उन्होंने किसी प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘मैंने नाज़ियों के किसी डैथ कैम्प या जंगी हमले के बारे में कभी आलोचना नहीं की थी। यदि करता तो निश्चय ही वह मुझे गोली मार देते, खड़े को ही।’ वान ब्रान शैतान का पुतला बन कर रह गए। युद्ध के अंत में 1944 में एक बार वह शराब में टल्ली हो गए तब उन्होंने इतना कहा, ‘मैं तो रॉकेट बनाना चाहता था, यहां युद्ध के हथियार बनाने पड़ रहे हैं मुझे’ पार्टी में उनकी इतनी बात ही किसी जासूस ने सरकार तक पहुंचा दी। वान ब्रान को हिटलर की गेस्टैपो ने गिरफ्तार कर लिया। पोलैंड के कैदी कैंप में लगभग 2 सप्ताह रहे। पता ही नहीं था कि कब गोली का आदेश हो जाए। उन पर यह भी दोष लगा कि वह देश द्रोही है। ऐसे ़खतरनाक हालात में एल्बर्ट स्पीयर ने हिटलर को वान ब्रान की जान बख्शने की अपील की और कहा कि वी.-2 रॉकेटों के लिए अभी भी हमें उनकी ज़रूरत है।