हॉकी खेल को उत्साहित करना सिख जगत की ज़िम्मेदारी 

भारतीय हॉकी इतिहास के सुनहरी पन्ने अगर कभी पलट कर देखें तो उनमें भी कुछ खास पन्नों को मोड़ने का मन करता है। यह वह है जिन पर पंजाब के गौरवशाली, जोशीले और हॉकी खेल के मैदान में अपनी जान लुटाने वाले सिख हॉकी खिलाड़ियों का गौरवमयी ज़िक्र है, समूचे सिख कौम के हीरों की गाथा है। एक ऐसी सनसनीखेज कहानी है सिख कौम, सिख बहादुरी के गौरव की, जो हम समझते हैं कि भविष्य में ही सिख बच्चे-बच्चियों के लिए एक प्रेरणा, एक उत्साह बना रहना चाहिए। एक वचनबद्ध हॉकी लेखक होने के नाते जब हम इन दिनों में पूरे विश्व हॉकी साहित्य का बहुत तेजी से अध्ययन कर रहे हैं, खास करके आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हालैंड, स्पेन, स्विटज़रलैंड, डेनमार्क, बैल्जियम, न्यूज़ीलैंड, कीनिया, मलेशिया आदि देशों के पूर्व हॉकी ओलम्पियनों के भारतीय हॉकी के बारे में विचार जानने की कोशिश कर रहे हैं, उनके द्वारा लिखे कई पुरातन लेखों में कुछ नई लेख में से एक सांझा सूरत जो हमारी पकड़ में आ रहा है वह यह है कि  उनके अनुसार जुड़े और सफेद रुमाल वाले सिख खिलाड़ियों की दहशत पूरे विश्व हॉकी जगत में बहुत थी। विश्व भर के हॉकी प्रेमी सिख हॉकी खिलाड़ियों के खेल से बहुत आनंदित और रोमांचित हुआ करते थे। उस आलम के बीच हॉकी की बदौलत भी पूरे विश्व में सिख कौम का सम्मान, सिख जगत के लिए गर्व और सम्मान की बात थी। भारतीय हॉकी इतिहास इस बात का गवाह है कि पंजाब का सम्मान और पंजाब की शान गुरमीत सिंह 1932 लास ऐंजल्स में ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता टीम का इन्साइड लैफ्ट खिलाड़ी था और यही पहला सिख हॉकी खिलाड़ी था, जिसने यह भी साबित किया कि जो जोश, जो बहादुरी सिख कौम के खिलाड़ियों में है, उसको आने वाला समय ही बताएगा। फिर आए त्रिलोचन सिंह, बलबीर सिंह, गुरदेव सिंह, पृथीपाल सिंह, चरणजीत सिंह, जोगिन्दर सिंह, दर्शन सिंह, जगजीत सिंह, हरमीक सिंह, अजीत पाल सिंह, तरसेम सिंह, कुलवंत सिंह, अजीत सिंह, हरचरण सिंह आदि बेशुमार सिख हॉकी खिलाड़ी, जिन्होंने लास ऐंजल्स में ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता गुरमीत सिंह के बाद भारतीय हॉकी के झंडे को बुलंद रखने के लिए अपनी जान लगा दी। हम महसूस करते हैं कि इन जुझारू खिलाड़ियों के साथ-साथ सिखी का झंडा भी बुलंद किया। सिख कौम के गौरव को भी बढ़ाया। उसके बाद भी हज़ारों सिख हॉकी खिलाड़ी भारतीय टीम के लिए ‘सिंह’ के नाम के अधीन तो खेले लेकिन अफसोस, अधिकतर के केस कटे हुए हैं। हमारे इन नौजवान, जोशीले, खिलाड़ियों को इधर ध्यान देना चाहिए। इन दिनों में हमें कुछ पूर्व हॉकी ओलम्पियन खिलाड़ियों को मिलने का मौका मिला। सब की इसके बारे यह राय है कि मौजूदा भारतीय हॉकी टीम पर आने वाले समय में हॉकी पकड़ने वाला हर सिख हॉकी खिलाड़ी जुड़े और सफेद रुमाल को ज़रूर यकीनी बनाए, जो उनकी परम्परा रही है। यही बस नहीं, विश्व सिख भाईचारे के लिए सबसे बड़ी चिंता, खेल संसार के पक्ष से यह है कि आज अधिकतर नौजवान सिख पीढ़ी हॉकी जैसी जोशीली और तेज-तर्रार खेल से अपना मुंह ही फेर चुकी है और तेजी से इस खेल से दूर होती जा रही है। सिख हॉकी खिलाड़ियों की वह मान-सम्मान वाली सारी गाथाओं का इस पीढ़ी को पता ही नहीं। सारा विश्व जानता है कि सिख कौम शानदार इतिहास सृजन के लिए तो प्रसिद्ध है लेकिन इसके गौरवमीय इतिहास को पढ़ने वालों में अब यह नहीं है। वह दिन दूर नहीं जिस दिन सिख कौम के हॉकी खिलाड़ियों का विश्व हॉकी के इतिहास में गौरवशाली उपलब्धियों का न कोई जानकार बचेगा, न ही हॉकी खेल का कोई नाम लेवा। हम अपील करते हैं कि विश्व स्तर के जिन भी सिख जत्थेबंदियों, सिख संस्थाओं सिखी के गौरव को बरकरार रखने के लिए यत्नशील हैं, उनको सिख खेल संसार की और भी ज़रूरी ध्यान देने की ज़रूरत है। अफसोस यह है कि आधुनिक समय में हमारे खेल इतिहासकार भी हॉकी के क्षेत्र में सिख खिलाड़ियों की शान के चर्चे तो बहुत करते हैं लेकिन यह चिंता ही नहीं करते कि हमारे आधुनिक नौनिहाल पीढ़ी के लिए यह इतिहास प्रेरणा स्रोत क्यों नहीं बन सका?