बरखा - बहार

बहार ने अपने विश्वसनीय सूत्रों से पता किया कि पम्मी के पापा को फैक्टरी में कोई घाटा नहीं पड़ा, बल्कि आस्ट्रेलिया में पक्का होने के लिए वहां गोरी लड़की से उसने विवाह कर लिया है और वहां अपनी फैक्टरी स्थापित करना चाहता है। तभी गुस्से में बहार ने पम्मी से बात करनी चाही। किन्तु वह बारम्बार फोन काटता जा रहा था। फिर बहार ने उसे मैसेज भेजा। पम्मी कहां गये तेरे वायदे ? क्या बरखा से दिल्लगी करना चाहते थे? आखिर उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? उसके टूटे दिल का जिम्मेवार कौन है? लड़के होते ही ऐसे हैं।  पम्मी की ओर से इस मैसेज का कोई उत्तर नहीं आया। बरखा उदासी-निराशा के आलम में रहने लगी। एक दिन वह बहार से मिलने उसके घर गई। दोनों आपस में लिपट कर बहुत रोईं।बरखा ने बहार से कहा,‘बहार ! तुम ठीक ही कहती थी कि प्यार मेें धोखा ही धोखा है। परन्तु बहार ने बरखा को दिलासा देते हुए कहा। बरखा चिन्ता न कर। अगर पतझड़ आती है तो बसन्त ऋतु भी दूर नहीं होती। हां, अब प्यार सोच समझ कर ही करना। न, बाबा न, प्यार शब्द से ही अब मुझे सख्त नफरत हो गई है। परन्तु बरखा, एक बात तुम्हें भी कहूंगी कि बांस के पेड़ की भांति बनना जो तेज़ हवा चलने पर झुक कर पुन: सीधा खड़ा हो जाता है। यही बात मैंने कभी पम्मी को भी कही थी। किन्तु वह तो सफेदे का पेड़ बन कर तेज़ हवा के झोंकों को सहन नहीं कर सका, झुक गया और टूट गया। उसमें दृढ़ता का अभाव था। तेरी भावनाओं की अपेक्षा उसे अपना हित प्यारा था, प्यार-प्यार नहीं था। बरखा, तुम बूढ़ी तो नहीं हो चली है। दुनिया अच्छे लोगों से खाली तो नहीं हो गई। इस धरा पर अनेक नेक इन्सान हैं जिनके आसरे यह संसार चल रहा है। ओह माई गॉड ! बरखा, मैं तुम्हें बताना ही भूल गई। परसों यामिनी का विवाह है। तुम तैयार रहना। हम दोनों विवाह अटैंड करने इकट्ठी चलेंगी। बरखा-बहार जब विवाह स्थल पर पहुंचीं तो बारात आ चुकी थी। रिबन काटने की रस्म हो रही थी। दूल्हे के दोस्त तथा यामिनी की सहेलियों में मधुर नोक-झोंक चल रही थी। लड़कियां दूल्हे के एक दोस्त आकाश की कुछ ज्यादा ही खिंचाई कर रहीं थीं। देखने में वह भला मानस सा लग रहा था। दूल्हे के साथ-साथ स्नो-स्प्रे से आकाश को भी पूरी तरह भिगो दिया गया। फिर भी वह तनिक विचलित नहीं हुआ। बरखा विस्मत हो यह दृश्य देख रही थी। न जाने क्यों उसे भले मानस पर बहुत दया आ रही थी? खीझ कर उसने अपनी सहेलियों को उससे मजाक करने से रोका पर भला इस रस्म में लड़कियां कब किसे छोड़ती हैं? प्रोग्राम प्रगति पर था। उधर आरकैस्ट्रा ग्रुप ने अपनी तान छेड़ दी। एकाएक पुराने गीत ‘ये समय, समय है यह प्यार का दिल न चुरा ले कोई मौसम यह बहार का’ पर डांसर डांस करने लगीं। सभी युवा अपनी फुल मस्ती में थे। आकाश-बरखा और बहार भी नाच-गीत में सम्मिलित हो गईं। अनायास नाचते-नाचते बरखा पैर फिसलने से नीचे गिर गई तो आकाश ने उसे अपनी बाहों में संभाल लिया। बरखा शर्म-हया, लज्जा से एकदम लाल सी हो गई। बरखा ने आकाश को हाथ छोड़ने को कहा। इस क्षणिक मुलाकात ने काफी गहनता नाप ली थी। इसीलिए आकाश ने कहा कि खुद तो हाथ छोड़ती नहीं और मुझे हाथ छोड़ने को कह रही हो। दूर गगन की छांव में तारे भी इस नई युगलबंदी पर मंद-मंद मुस्करा रहे थे। आकाश-बरखा नाचने के बाद एक कोने में जाकर बतियाने लगे और बहार भी पूर्णत: प्रसन्नचित थी। मजाक के लहजे में उसने कहा-बरखा ! अब बताओ प्यार के विषय में तेरी क्या राय है ? धत् तेरे की बहार। ऐसे मजाक न कर। मेरा दिल धक-धक कर रहा है। कमली कहीं की, यही तो प्यार है मेरी जान, बरखा। अब जाओ, अपना घर बसाओ। पर अपनी बहार को न भूल जाना क्योंकि बरखा और बहार अभिन्न हैं। 


मोहल्ला पब्वियां
धर्मकोट, (जिला मोगा)
मो. 94170-80333