प्रांतीय चुनावों का प्रभाव


पांच राज्यों के चुनाव परिणाम हमारे सामने हैं। इनसे कई ऐसे प्रभाव सामने आए हैं, जिनसे निकट भविष्य की राजनीति के चिन्ह कुछ स्पष्ट होते दिखाई देते हैं। चाहे इन प्रांतों के चुनाव परिणामों से लोकसभा संबंधी परिणाम निकालना अवश्य मुश्किल है, परन्तु इनके राजनीतिक माहौल पर पड़ने वाले प्रभाव से इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि आगामी कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इस समय लोकसभा में मोदी के नेतृत्व में भाजपा का वर्चस्व है। इसे किसी प्रकार की कोई चुनौती नहीं है, परन्तु मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणामों से यह बात सामने आई है कि आगामी समय में भाजपा की चमक-दमक कम हो सकती है। 
ये चुनाव राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मिज़ोरम में हुए हैं। इनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें हैं, जबकि तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति की सरकार थी तथा मिज़ोरम में कांग्रेस की। राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं, मध्यप्रदेश में 230 और छत्तीसगढ़ में 90 सीटें हैं। छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश में भाजपा पिछले 15 वर्षों से सत्तारूढ़ चली आ रही थी। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार पहली बार गठित हुई थी। इनमें राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बहुमत हासिल करने में सफल हुई है, जबकि मध्यप्रदेश में ये पंक्तियां लिखे जाने तक भाजपा एवं कांग्रेस में कांटे की टक्कर बनी हुई थी। इससे यह मुख्य बात सामने आती है कि इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव घटने के कई कारण हो सकते हैं, परन्तु इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन्होंने इन चुनावों के लिए निरन्तर कड़ी मेहनत की थी, का प्रभाव भी इन परिणामों से काफी सीमा तक कम हुआ प्रतीत होता है। इन तीनों राज्यों में एक प्रकार से भाजपा एवं कांग्रेस की प्रत्यक्ष टक्कर थी। चाहे लम्बी अवधि तक शासन चलाने के कारण लोगों में भाजपा के प्रति उत्साह अवश्य कम हुआ था। प्रांतीय स्तर पर सरकारों की कार्यप्रणाली का भी मतदाताओं पर असर पड़ा था, परन्तु इन पर केन्द्रीय नीतियों का प्रभाव भी दिखाई देता है। नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में केन्द्र में सत्ता संभालते हुए जो आशाएं जगाई थीं, वे पूरी नहीं हो सकीं। खासतौर पर इस काल के दौरान कृषि के क्षेत्र में उपजे संकट का संतोषजनक हल निकालने में सरकार विफल रही है। नौजवानों में बढ़ी बेरोज़गारी ने भी मतदाताओं के मन पर प्रभाव डाला था। यदि आगामी समय में भी ऐसा प्रभाव एवं रुझान बढ़ा रहा तो भाजपा के लिए यह एक बड़ी चिंताजनक बात होगी, क्योंकि इन राज्यों में लोकसभा के होने वाले चुनावों में लगभग 65 सदस्य चुने जाते हैं। इस समय भारतीय जनता पार्टी के साथ इन राज्यों में 62 सदस्य हैं। 
भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले ये तीन राज्य देश के उत्तरी एवं केन्द्रीय प्रदेश हैं, जबकि तेलंगाना दक्षिण एवं मिज़ोरम उत्तर-पूर्व का राज्य है। राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में अधिकतर प्रतिनिधित्व भाजपा के पास ही रहा है। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी ने मायावती के साथ मिलकर इन दोनों पार्टियों का मुकाबला करने का अवश्य यत्न किया था परन्तु इस यत्न को फल नहीं मिला। मिज़ोरम में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। वहां 10 वर्ष तक ललथनहवला के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी रही है, परन्तु इसे मिज़ोरम नेशनल फ्रंट ने ज़ोरमथांगा के नेतृत्व में चित्त कर दिया है, जबकि तेलंगाना में प्रांतीय पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति एक बार फिर सत्तारूढ़ हुई है। इन चुनाव परिणामों से जहां भविष्य में कांग्रेस में अधिक उत्साह जागृत होगा, वहीं भाजपा को एक सीमित समय में अपनी कार्यशैली को बदलने के बारे में सोचना होगा। जिस प्रकार का माहौल बन रहा है, उससे यह प्रभाव परिपक्व होता है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा का वर्चस्व पहले जैसा नहीं रहेगा तथा राजनीतिक क्षेत्र में उसे भारी चुनौतियों के साथ जूझना पड़ेगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द