पंजाबी यूनिवर्सिटी में आठवीं विश्व पंजाबी साहित्य कांफ्रैंस शुरू

पटियाला, 9 जनवरी (परगट सिंह) : पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पंजाबी साहित्य अध्ययन विभाग की तरफ से पंजाब कला परिषद के सहयोग के साथ उप-कुलपति डा. बी.एस घुम्मन के नेतृत्व मे ‘प्रवासी पंजाबी साहित्य-प्राप्तियां और संभावनाएं’ विषय पर करवाई जा रही तीन दिना कांफ्रैंस का उद्घाटन आज यूनिवर्सिटी के विज्ञान आडीटोरियम में किया गया। श्री गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व को समर्पित इस कांफ्रैंस के उदघाटन सैशन की अध्यक्षता उप -कुलपति डा.बी.एस. घुम्मन ने की। कांफ्रैंस में मुख्य मेहमान के तौर पर शामिल पूर्व विदेश राज्य मंत्री श्रीमती परनीत कौर ने कहा कि मानक अध्यापन और ठोस खोज -कार्य करके पंजाबी यूनिवर्सिटी की पूरी दुनिया में पहचान बन गई है। प्रवासी पंजाबी साहित्य पर हो रही यह कांफ्रैंस साहित्य की दुनिया बारे गंभीर विचारों का मंच साबित होगी। उन्होंने कहा कि योग्य प्रशासन और मानक शिक्षा के साथ ही विद्वानों की संख्या में विस्तार हो सकता है और देश तरक्की के रास्ते पड़ सकता है। पदमश्री डा. सुरजीत पातर ने उद्घाटन शब्दों में शायराना अंदाज में कहा कि आज पंजाब की पहचान भौगोलिक हदों से गुज़र कर पूरी दुनिया में कायम हो चुकी है। प्रवासी साहित्य का इस में बड़ा योगदान है। पूर्व लोक सभा मैंबर एच.एस. हंसपाल, भारतीय संगीत सोसायटी की चेयरमैन राजकुमारी अनीता सिंह और कनेडा से एम.पी. सुख धालीवाल कान्फ्रेंस में विशेष मेहमान के तौर पर शामिल हुए। उन्होंने पंजाबी क्लासिकल संगीत और प्रवासी पंजाबियों के जीवन की समस्याओं बारे अपने गहरे अनुभव सांझे किये। प्रसिद्ध आलोचक डा. हरचन्द सिंह बेदी ने कांफ्रैंस के कुंजीवत भाषण में कहा कि 1970 व्यों के आख़िरी पड़ाव पर प्रवासी पंजाबी साहित्य के अध्ययन और खोज की तरफ ध्यान गया और तब से पंजाबी यूनिवर्सिटी में स्थापित अलग-अलग पंजाबी विभागों ने इस में अहम योगदान डाला है। उन्होंने कहा कि विदेशों में नसली भेदभाव की कई मिसालें सामने आतीं हैं और इस भेदभाव के मुख्य कारण आर्थिक हैं। विभाग के प्रमुख और कांफ्रैंस के निर्देशक डा. हरजोध सिंह ने कांफ्रैंस के विषय बारे बताया और विभाग की पिछली प्रकाशनाओं और चलते हुए खोज -कामों पर रौशनी डाली। उन्होंने बताया कि कांफ्रैंस में कैनेडा, अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, जापान, नार्वे, बैंकाक के इलावा भारत और पंजाब के अलग-अलग कोनों से लगभग 500 से पर प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। अंत में विभागीय लोक अर्पण किए गए, जिनमें प्यारा सिंह भोगल, डा. हरजोध सिंह, डा. मोहन त्यागी और डा. जसवीर कौर की किताबें शामिल थी।