पंजाबी हिन्दुओं ने अपने देश पंजाब को कैसे सजाया और संवारा ?

एक सवाल अकसर पंजाबी हिन्दू समाज को किया जाता है कि इस वर्ग ने पंजाब के लिए क्या किया? इसका सही और मुकम्मल जवाब देने की ज़रूरत है। 
हुआ यह कि 1849 में लाहौर दरबार पर कब्ज़ा करने के बाद पंजाब अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में आ गया और उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत रखने के लिए यहां की राजनीति और अर्थ-व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। 19वीं शताब्दी का आधा और 20वीं शताब्दी के पहले कुछ सालों का समय पंजाब के इतिहास में एक बावंडर साबित हुआ, जिसने समाज के कई समुदाय के बीच सत्ता हासिल करने का एक ऐसा संघर्ष शुरू किया, जो आज तक कायम है।
इसमें सबसे आगे है अपनी अलग पहचान और अस्तित्व को लेकर शुरू किया गया एक संघर्ष जिसमें मुख्य तौर पर हिन्दू-सिख और कई घटनाओं में मुसलमान भी आपस में उलझते रहे। आर्य समाज और सिंह सभा लहर के बीच अकादमिक और सामाजिक टकराव एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
अंग्रेजों ने उनके खिलाफ हुई 1857 की बगावत से एक बड़ा सबक सिखा था कि ज़मीनी स्तर पर हुई हिन्दू-मुस्लिम भागीदारी ने बगावत को असल ताकत दी थी। इसलिए चालाक ब्रिटिश साम्राज्य ने पंजाब के हिन्दुओं, सिखों और मुसलमानों को उनके अपने धर्म पर केन्द्रित रखने की रणनीति को आगे बढ़ाया।
इसके अलावा 1857 की बगावत में पंजाब की ़गैर-हाज़िरी ने अंग्रेजों को इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा उन्होंने पंजाबी हिन्दुओं और सिखों को उनके गुणों के मुताबिक अपनी सेवाओं में बड़ी संख्या में भर्ती करना शुरू कर दिया।
उदाहरण के तौर पर पंजाबी हिन्दुओं, मुख्य तौर पर ब्राह्मण, बानिये, खत्री और अरोड़ा समाज के लोगों को उन्होंने मध्य स्तर की नौकरशाही में प्रबंधकीय पद दिये जबकि सिखों को ब्रिटिश-भारतीय सेना में भर्ती किया। इस अनाधिकारित नीति का इतना गम्भीर प्रभाव था कि 1884 तक आधी ब्रिटिश-भारतीय सेना पंजाबी सिख और मुसलमानों से बनी थी।
इसके साथ ही अंग्रेजों ने पंजाब में सड़कें, रेलवे लाईनें, नहरें, डाक और टैलीग्राफ दफ्तरों, अस्पतालों, कालेजों, विश्वविद्यालयों और कानून अदालतें बनाने में बहुत निवेश किया।
इन संस्थाओं के कारण ही धीरे-धीरे, परन्तु लगातार, एक छोटा सा पंजाबी मध्य वर्ग उभरा। इनमें बहुसंख्या पंजाबी-हिन्दू वर्ग की थी जो अंग्रेजी में पढ़ा हुआ था और सरकारी नौकरी में शामिल था और अध्यापन, दवाई और कानून जैसे व्यवसाय अपना रहा था। यह वर्ग चाहे फारसी, पंजाबी और हिन्दी जानता था लेकिन इनको अंगे्रजी के महत्व के बारे में पता था।
अंग्रेजों ने एक तरफ निवेश और आर्थिक विकास को उत्साहित किया और दूसरी तरफ ‘नव-उदारवाद’ के नाम पर हो रहे धार्मिक सुधारों को समर्थन दिया जो ‘दकियानूसी आदतें और अंधविश्वास’ दूर करने के नाम पर नये रिवाज़ बना रहे थे। उसी समय में ही पंजाब में डेरावाद के पैर पसारे।
महाराजा रणजीत सिंह के गद्दी पर बैठने के बाद पश्चिमी पंजाब के कई भाईचारे खासतौर पर खत्री, अरोड़ा और बानिया समाज सिखों और हिन्दुओं के मिश्रित रूप बने हुए थे। इसमें से कई परिवारों के लोग खालसा पंथ का हिस्सा बन गये थे जबकि उसी परिवार के कई लोग हिन्दू धर्म के रीति-रिवाज़ मुताबिक ही जीवन व्यतीत कर रहे थे। हिन्दू धर्म के रीति-रिवाज़ और परंपराओं को जारी रखने के बावजूद एक बड़े अनुपात ने मूर्ति पूजा को छोड़ दिया था। इनकी सामाजिक पहचान पर कोई अधिक फर्क नहीं पड़ा था। जब तक अंग्रेज नहीं आए थे। उन्होंने नीतिगत तरीके के साथ अलग पहचान से संघर्ष को उभारा।
इस पूरी उथल-पुथल में कई ऐसी शख्सियतें थीं जो लगातार अपने काम पर केन्द्रित कर रही थीं और उन्होंने प्रत्येक स्तर पर पंजाब में एक अग्रगामी माहौल बनाया और यह क्षेत्र दक्षिण एशिया का एक प्रमुख इलाका बना। 
इन सब में एक प्रमुख शख्सियत थीं सर गंगाराम जो अग्रवाल बानिया जाति से थे और उन्होंने पश्चिमी पंजाब में पड़ते दो ज़िले साहीवाल (पुराना नाम मौंटगुमरी) और फैसलाबाद (लायलपुर) में 20 हज़ार किले से अधिक क्षेत्र को नहरी पानी के साथ आबाद किया। सन् 1940 के रिकार्ड के मुताबिक पश्चिमी पंजाब का करीब 5 लाख एकड़ का क्षेत्र नहरी पानी की सिंचाई के अंतर्गत आ गया था, जिसमें कसूर, उकाड़ा और लाहौर ज़िले की ज़मीनें भी शामिल थी।
इसके अलावा सर गंगाराम ने लगभग आधा लाहौर शहर डिज़ाइन किया और तकरीबन सभी बड़े प्रतिष्ठान खड़े किए जिसमें लाहौर नैशनल कालेज, लाहौर औद्योगिक कालेज, पंजाब सचिवालय लाहौर, गंगाराम अस्पताल, गंगाराम कालेज, लाहौर अज़ायब घर, मुख्य डाकखाना शामिल हैं। इसके अलावा माडल टाऊन, माल रोड, डिफैंस कालोनी का इलाका भी बसाया। लाहौर से पठानकोट तक रेल लाइन बिछाने में भी सर गंगाराम का महत्वपूर्ण योगदान था। इसके अलावा उन्होंने रावी हाऊस नामक बच्चों के लिए अनाथ-आश्रम भी खोला। लाहौर के अलावा उन्होंने आज के पटियाला शहर को भी संवारा था। जब उन्होंने महाराजा पटियाला के कहने पर पटियाला सचिवालय और नया मोती महल डिज़ाइन किया और बनाया था।
सर गंगाराम की खासियत यह थी कि उन्होंने किसी राजा महाराजा के घर जन्म नहीं लिया था। वह पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे और उन्होंने आई थामसन इंजीनियरिंग कालेज (आज का आई.आई.टी. रुड़की) से डिग्री प्राप्त की और अपनी मेहनत व दिमाग के साथ कुछ शानदार इमारतें खड़ी कीं और धन कमाया जो उन्होंने बढ़ती आयु में आम गरीब लोगों की सेवा में ही खर्च कर दिया। 20वीं शताब्दी के पहले दशकों में सर गंगाराम ने करोड़ों रुपये मानवता की सेवा में ही समर्पित कर दिये।
सर गंगाराम के अलावा कई अन्य पंजाबी हिन्दू शख्सियतें भी थीं जिन्होंने अपने काम से यह साबित किया कि पंजाबी रोशन दिमाग हैं और अन्य बहुत जातियों से बहुत आगे हैं। इनमें सबसे पहली लाइन में शामिल हैं लाला रुचि राम साहनी।
रुचि राम साहनी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पंजाब में वैज्ञानिक और तर्कशील सोच को पैदा करने को प्राथमिकता दी। डेरा इसमाईल खान में पैदा हुए रुचि राम साहनी ने पहले छात्रवृत्ति लेकर पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और फिर छात्रवृत्ति पर ही इंग्लैंड पढ़ने गये, जहां उन्होंने नोबल पुरस्कार जीतने वाले अरनैस्ट रथरफोरझड, नील बोहर और कैज़ीमर फैज़ान जैसे प्रमुख वैज्ञानिकों के साथ अनुसंधान क्षेत्र में काम किया। इंग्लैंड में तीन वर्ष काम करने के बाद रुचि राम साहनी पंजाब वापिस आ गए। उन्हें यहां फैले अंध-विश्वास से गुस्सा था। वह यह देखकर दुखी थे कि कैसे लोग अपनी बुरी आदतों और अंध-विश्वासों के कारण पिछड़ रहे थे। उन्होंने प्रण लिया कि वह लोगों को इस अंध-विश्वास की गिरफ्त से बाहर निकालेंगे।
इसी कारण रुचि राम साहनी ने गांवों-शहरों में लगने वाले मेलों को ही अपना अड्डा चुना। वह वहां लोगों को उनकी पंजाबी भाषा में ही समझाते थे कि कैसे वृक्ष दिन में आक्सीज़न देते हैं और कैसे रात को यही वृक्ष ज़हरीली गैस कार्बन डाइआक्साइड छोड़ते हैं। वह बताते थे कि रात को वृक्ष के नीचे सोने वाले को भूत नहीं बल्कि ज़हरीली गैस मारती है। 
उनके भाषण में बात मनुष्य की परछाईं से शुरु होती थी और गंदे पानी के साथ फैलने वाली बीमारियों तक जाती थी। इसके अलावा वह लोगों को बिजली के महत्व के बारे में भी बताते थे और उसके करंट से सुचेत रहने के बारे में भी आगाह करते थे। इसके अलावा साबुन के साथ हाथ धोने की महत्ता और पंजाब के दरियाई पानी के बारे में भी लोगों को जागरुक करते थे।
रुचि राम साहनी पंजाब के पहले मौसम वैज्ञानिक भी थे, जो न सिर्फ सरकार को बल्कि आम लोगों को भी मौसम और उनके मुताबिक उगाए जाने वाली फल-सब्ज़ियों के बारे में बताते थे। एक रिकार्ड के मुताबिक रुचि राम साहनी ने अपनी ज़िंदगी में करीब 1536 मेलों में भाषण दिया, जिसमें उन्होंने लोगों को विज्ञान के महत्व के बारे में बताया।
इसके अलावा रुचि राम साहनी ने ‘गुरु का ब़ाग मोर्चे’ का नेतृत्व किया और 1919 के जलियांवाला ब़ाग हत्याकांड के बाद अंग्रेजों के खिलाफ हुए आंदोलन का भी हिस्सा बने।
रुचि राम साहनी की खासियत यह थी कि उन्होंने अपने सभी बच्चे अच्छी तरह से पढ़ाए जिनमें बिक्रमजीत साहनी, मुलकराज, बीरबल, बोधराज और लीलावती जो सब पंजाब के प्रसिद्ध स्कालर बने और अपने-अपने क्षेत्रों में नाम कमाया। 
रुची राम साहनी के बाद एक और शख्सियत थे लाला हरकिशन लाल।
डेरा गाज़ी खान की लैयाह तहसील में जन्मे लाला हरकिशन लाल भी पढ़ाई में तेज़ थे और सरकारी छात्रवृत्ति पर पहले सरकारी कालेज लाहौर पहुंचे फिर ट्रिनटी कालेज इंग्लैंड गये, जहां उन्होंने गणित की पढ़ाई की और फिर वापिस पंजाब आ गये।
यहां आकर दयाल सिंह मजीठिया के साथ आकर मिले जिन्होंने लाला हरकिशन लाल के हुनर की कद्र की और उसको कारोबार शुरू करने के लिए कज़र् दिया। फिर लाला हरकिशन लाल ने 1899 में लाहौर बिजली सप्लाई कम्पनी खोली और सिर्फ 12-14 वर्ष में ही उन्होंने लाहौर सहित पंजाब के हर बड़े शहर तक बिजली पहुंचाई। खम्बों से लेकर आम लोगों के घरों तक बिजली की तारें जोड़ने का हर छोटा-बड़ा काम किया।
इस समय के दौरान पंजाब आटा चक्की और कपड़ों की दर्जनों फैक्टरियां खोलीं जहां सैंकड़ों नौजवान लड़कों को सिखलाई और नौकरी दी। इसके अलावा साबुन बनाने के कारखाने लगाये और पक्की ईटों के भट्ठे खोले, बर्फ के कारखाने लगाए। लाला हरकिशन लाल पंजाब में हज़ारों परिवारों को रोज़गार देने वाले पहले आम पंजाबी उद्योगपति थे। उन्होंने पंजाब में रह कर ही दौलत कमाई और पंजाब को ही अमीर किया।
जलियांवाला ब़ाग हत्याकांड के बाद लाला हरकिशन लाल अंग्रेज सरकार के खिलाफ खुलकर बोले और मारे गये लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए अदालतों में गये और हर मुमकिन प्रयास किया। इससे दो वर्ष के बाद ही ब्रिटिश सरकार ने लाला हरकिशन लाल पर गबन का केस बनाकर उनकी सारी जायदाद कुर्क कर ली।
इसके अलावा और भी कई पंजाबी हिन्दू शख्सियतें थीं जैसे सर छोटू राम, प्रोफैसर मनोहर लाल, हरगोबिंद खुराना जिन्होंने अपने देश पंजाब को सजाने संवारने में बहुत महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभाई।