फसली विभिन्नता के लिए ज़रूरी है बासमती की काश्त

पंजाब को हरित इन्कलाब के संस्थापक होने का गौरव तो हासिल हो गया परन्तु किसानों की आय में वृद्धि नहीं हुई। धान की काश्त बढ़ने और भूमिगत पानी का स्तर नीचे जाने से 14.78 लाख ट्यूबवैलों को चलाने के लिए सबमर्सीबल पम्पों की ज़रुरत पड़ गई। इस कारण सिर्फ  पानी का संकट ही नहीं आया बल्कि बिजली संकट भी पैदा हो गया। सबमर्सीबल पम्पों के साथ गहरी सतह से पानी निकालना न ही समझदारी थी और न ही कोई स्थायी समाधान। पी.ए.यू. के विशेषज्ञों के अनुसार सबमर्सीबल पम्पों के साथ गहराई से पानी कल्लर वाला निकलने लग पड़ा तो ज़मीन बंजर हो जाएगी। 
विभिन्नता के पक्ष से  किये जा रहे प्रयासों के बावजूद धान की काश्त के लिए रकबा कम नहीं किया। ट्यूबवैलों की संख्या निरन्तर बढ़ाए जाने और वार्षिक रीचार्ज से अधिक पानी का निकास होने के कारण पानी का स्तर नीचे जाने की समस्या गंभीर हो गई है। 
आगामी खरीफ के मौसम में पंजाब सरकार ने जो धान की सीधी बिजाई के लिए 20 लाख एकड़ रकबा और मक्की की काश्त के लिए 5 लाख एकड़ से अधिक रकबा लाने की योजना बनाई है, उससे भूमिगत पानी का स्तर नीचे जाने की समस्या हल होने की संभावना बहुत कम होती नज़र आ रही है। आईसीएआर-आईएआरआई से सम्मानित और पंजाब के साथ धान की सबसे अधिक उत्पादकता के कारण में भारत सरकार से कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त करने वाले किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना कहते हैं कि उन्होंने गत वर्ष कुछ रकबे पर सीधी बिजाई करके काश्त की थी, जिसके लिए पानी की आवश्यकता ट्रांसप्लांटिड रकबे से अधिक पड़ी और लागत भी अधिक आई। सीधी बिजाई सिर्फ उन ज़मीनों पर ही करनी चाहिए जहां नहरी पानी उपलब्ध हो। पीएयू से सम्मानित और पीएयू किसान सलाहकार समिति के सदस्य तथा फतेहगढ़ साहिब जिले के किसान बलबीर सिंह जड़िया अमलोह कहते हैं कि उसने गत वर्षों में मक्की की काश्त की और अनुभवों से यह पाया कि मक्की को पानी की आवश्यकता कोई कम नहीं। धान को छोड़ कर दूसरी सभी फसलों के मुकाबले मक्की को गन्ने सहित पानी की अधिक ज़रूरत है। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा की गई रिसर्च दर्शाती है कि 1 जुलाई के बाद लगाई गई फसल से पानी का स्तर ऊंचा हो जाता है। जुलाई में लगाई गई फसल को बीमारियां भी कम लगती हैं। इस पक्ष से बासमती की काश्त बड़ी योग्य है क्योंकि बासमती की ट्रांसप्लाटिंग जुलाई में ही की जाती है। बासमती की थोड़े समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1692 जुलाई के अंत में ही लगाई जाती है। इन किस्मों की फसल कई बार बारिश के पानी से ही पक जाती है। विभिन्नता योजना में बासमती की काश्त को प्राथमिकता दिये जाने की आवश्यकता है। इसकी काश्त के लिए गत वर्ष के 6.29 लाख हैक्टेयर रकबे से आसानी से और रकबा बढ़ाया जा सकता है। 
विशेषज्ञों के अनुसार पंजाब में 9 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त किये जाने की संभावना है। बासमती के विश्व प्रसिद्ध ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह डायरैक्टर आईसीएआर-भारती कृषि अनुसंधान  कहते हैं कि बासमती के निर्यात का भविष्य बहुत अच्छा है। गत वर्ष (सन् 2019-20) में 44.55 लाख टन बासमती विदेशों को भेजी गई जिससे भारत को 31000 करोड़ से अधिक की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई। वर्ष 2020-2021 के दौरान 46 लाख टन बासमती विदेशों को भेजे जाने का अनुमान है। इससे 33000 करोड़ रुपये तक की विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।  डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार वर्तमान वर्ष (2021-22) में पिछले वर्ष से 34 फीसदी निर्यात में वृद्धि होने की संभावना है। आल इंडिया बासमती राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार ईरान से बासमती के काफी आर्डर प्राप्त हो रहे हैं। सेतिया के अनुसार ईरान सस्ते चावल चाहता है, इस तरह उनको पूसा बासमती-1509 किस्म के चावल भेजे जा रहे हैं जो पूसा बासमती-1121 से 9 रुपये प्रति किलो तक सस्ते पड़ते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पूसा बासमती-1509 और पूसा बासतमी-1121 के चावलों की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं। 
विभिन्नता लाने में बासमती की काश्त बड़ी योग्य है और कारगर हो सकती है परन्तु सरकार को इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर देना चाहिए। बासमती की काश्त बढ़ने से भूमिगत पानी की गिरावट का मामला काफी सीमा तक हल हो जाएगा। इस तरह जून में लगाए जा रहे धान की काश्त का रकबा कम होने की संभावना होगी जब भूमिगत पानी का स्तर नीचे जा रहा हो।