अब तक नहीं बदली समाज की बेटी बारे सोच 


शब्द बदले, काम बदला, तारीख बदली, साल बदला, कैलेण्डर बदले, युग बदला पर कहीं कुछ आज भी बदलने से रह गया है तो वह है समाज की सोच। कहते हैं आज हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं पर हमारा सोचने का तरीका बिल्कुल अट्ठारहवीं सदी जैसा है। आज भी हम बेटी को पराया मानते हैं। अगर आज भी बेटी पैदा होती है तो उसको बोझ समझा जाता है। आज भी बेटी की जगह बेटे को अधिक महत्त्व देते हैं। अगर यह सोचा जाए कि बेटी भी हमारे वंश का हमारा अंश है तो बहुत कुछ बदल सकता है।
आज हमारे देश में महिला साक्षरता दर 65.47 प्रतिशत है। आज भी हमारे देश की 34.53 प्रतिशत महिलाएँ शिक्षा से दूर हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें से पहला कारण बेटी को पराया मानना है। हम यह सोचते हैं कि इसको स्कूल भेज कर क्या करना। इसको तो पराये घर ही जाना है या कौन-सा परिवार को कमा कर खिलाएगी पर हम यह क्यों नहीं सोचते कि अगर हम बेटी को पढ़ाते हैं तो वो आगे की पीढ़ी को भी शिक्षा दे सकती है। वो खुद पढ़ेगी, साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी पढ़ाएगी। दो कुल का मान बढ़ाएगी। क्या सच में बेटी परायी होती है? अगर हाँ तो.....फिर क्यों हम उनसे वंश बढ़ाने की उम्मीद करते हैं? क्यों हम मान और सम्मान की बात बेटी से करते हैं? अगर बेटी कुछ अच्छा काम करे तो हमारी वरना परायी, यह दोगलापन क्यों? हम एक छोटी-सी बात नहीं समझना चाहते कि स्त्री ही समाज की सृजक और संवाहक है। अगर हम उसको सम्मान देंगे, अच्छी शिक्षा देंगे, तो हम एक अच्छे और स्वस्थ समाज को पोषित करेंगे। अगर बेटी बढ़ेगी तो समाज बढ़ेगा और समाज बढ़ेगा, सफल होगा तो हम बढ़ेंगे, सफल होंगे। अगर हम खुद का विकास चाहते हैं तो बेटी को कभी पराया धन कह कर उलाहना मत दो।  हम हमेशा यह सोचते हैं कि बेटा बुढ़ापे में हमारा सहारा बनेगा इसलिए बेटे को पढ़ाना जरूरी है पर हम यह क्यों नहीं सोचते कि बेटी भी तो हमारा सहारा बन सकती है। जब माँ ने दोनों को जन्म देने में समान तकलीफ उठाई, फिर परवरिश में समानता क्यों नहीं?
बेटी भी बेटे की तरह आपके कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। जरूरत है सिर्फ एक मौका देने की और अपनी सोच बदलने की। हमारे समाज में आज भी यह सोच है कि बेटे से वंश चलता है पर कभी किसी ने यह सोचा कि सिर्फ बेटा ही वंश आगे बढ़ा सकता है क्या? उसको भी वंश को आगे बढ़ाने के लिए किसी स्त्री का सहारा लेना होगा। तभी वंश आगे बढ़ पायेगा।  हमें दोनों को समान भाव से रखना चाहिए, दोनों के प्रति सोच, भावनाएँ, परवरिश समान रखनी चाहिए, ताकि राष्ट्र की प्रगति में दोनों का योगदान हो और हम भेदभाव वाली बुराई से भी निजात पाकर अपनी बेटी को ससम्मान समाज में जीवन यापन के लिए तैयार कर सकें । लड़की भी लड़कों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर राष्ट्र की प्रगति में निर्णायक पक्ष बन सकता है। (अदिति)