‘झूठ बुलवाए रे जो मशीनवा मोबाइलवा की’

 

मोबाइल के अविष्कार से एक बात तो जरूर है कि हजारों सुविधाओं के साथ एक विशेष सुविधा ये हुई है कि झूठ बोलने वालों की दिक्कतें कम हो गई है लेकिन मोबाइल से झूठ बोलने वालों के कान खड़े होना स्वाभाविक है मजा तो तब आता है जब सामने वाला झूठ बोल रहा हो और उसका झूठ पकड़ा जाए।
मुझे पक्का यकीन है जिसने भी यह मोबाइल बनाया है वह इस दुखदाई मोबाइल के चक्कर में अवश्य फंसा होगा तभी जाकर उसने ऐसे यंत्र को बेखटके से बनाया जिससे आसानी से झूठ बोला जा सके। झूठ की ट्रेनिंग देने में फोन का जो योगदान है उसे भुलाया नहीं जा सकता है वह झूठ बोलने वाले को पकड़ लेती है फोन पर झूठ बोलने में सिर्फ वाणी की साधना करनी पड़ती है और टारगेट ऐसा होना चाहिए कि जब आप झूठ बोलते हो तो पसीना ना आए,आंखें न झुके! ऑन द स्पॉट झूठ बोलना बहुत मुश्किल है जरा भी कहीं होमवर्क में कमी रह जाए तो पूरा खेल खराब हो जाता है इसलिए झूठ के प्रशिक्षु शुरू में फोन पर प्रेक्टिस करके अपना आत्मविश्वास पुख्ता कर सकते हैं किसी भी कला में शुरुआती दौर में झूठ बोलने में आत्म-विश्वास डगमगाता है तो बंदा कभी भी प्रखर झुठा नहीं बन सकता है इसके लिए बड़ी साधना करनी पड़ती है तब जाकर के झूठा का खिताब मिलता है। यदि आमने सामने से बोला वो झूठ झमाझम जम जाए तो फिर झूठ को आगे बढ़ा कर नेतागिरी तक करने का मामला जमाया जा सकता है एक सज्जन ऐसे थे जो तीन महीने से लगातार मुझे मोबाइल पर नहीं मिल रहे थे मैंने झूठ बोलने वाले से पूछा कि ‘साहब आजकल दिखाई नहीं देते! कहीं ऊपर वूपर तो नहीं चले गए! अगर मर गए हैं तो बहुत बुरा हुआ होगा क्योंकि मेरे पास उन्हें देने के लिए बीस लाख थे जो उनके मित्र ने उनके लिए दिए थे पर अब क्या? अब तो वह रहे नहीं चलो जी उनकी आत्मा को शांति पहुंचे!् और फिर क्या होता है अगले ही मिनट साहब जिंदा होकर फोन पर आ जाते हैं पूछने लगते हैं। ‘कहां है बीस लाख रुपए’ फिर मैंने उसे डांटा बदमाश हमारे लिए समय नहीं है! और बीस लाख के लिए समय है! ‘मैंने इस बात के लिए उसे नहीं डांटा कि वह झूठ बोलते हैं क्योंकि झूठ तो इधर हर कार्य का आदमी बोलता है मैंने इस बात के लिए उन्हें डांटा कि झूठ को नॉन-प्रोफेशनल तरीके से क्यों बोल रहे हैं और बुलाते हैं। फिर मैंने उन्हें तरीके से झूठ बोलने के तरीके सुझाए।
कुछ महिलायें तो दिन भर के कामकाज से फुर्सत होकर सास बहू साजिश करने में लगी रहती हैं और एक दूसरे की दिनभर की चांय-चांय में अपने अंदर के बवाल को बाहर निकालने के लिए मोबाइल का सहारा लेकर बैठ जाती है और शुरू हो जाती है पति की कांय.कांय से लेकर सास ननंद इन सब की बुराई लेकर और इतनी बुराई बोलती है सच्ची झूठी लगाकर कि सामने वाला भी उसे सही समझने लगता है। मजा तो तब आता है जब इनकी फोन पर की गई बातें सामने वाला व्यक्ति रिकॉर्ड कर लेता है पर इस झूठ की कलाकारी को बड़े ध्यान से सुनने पर बाद में पता चलता है कि वह कितना बड़ा झूठा या झूठी थी। झूठ बोलना आसान नहीं होता है ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ यानी इस किस्म का झूठ बोलने के लिए साहब या मैडम के प्रियजनों, कारिंदों को बहुत साधना करनी पड़ती है उन्हें अंदाज लगाना पड़ता है कि उधर वाला फोन पर टालने योग्य है या घास डालने योग्य है और यह ताड़ना पड़ता है कि उधर वाला बंदा कुछ काम कराने के चक्कर में है या उससे कोई काम निकल सकता है।  सबसे मजे की बात तो यह है कि छोटे छोटे बच्चों के हाथों में आजकल जो मोबाइलवा आ गया है तो उससे यह स्कूल में फोन लगा देते हैं और प्रिंसिपल साहब की तरफ  बहाना शुरू कर देते हैं आवाज बदल.बदल कर और पेट में दर्दए बुखार इत्यादि का बहाना ऐसे करते हैं कि प्रिंसीपल साहब इमोशनल होकर आराम करने की सलाह दे देते हैं। किसी को धमकाना हो किसी से बात मनवानी हो तो यह मोबाइलबा बड़ा हमदर्द नजर आता है। झूठ पर झूठ बोलने वाले साधकों को यह समझ लेना चाहिए कि उधर से बोलने वाले भी स्मार्ट होते हैं उनसे पार पाना भी कई बार आसान नहीं होता है। मैं ऐसे कई महानुभावों को झेल चुकी हूं जो अपना अमीर होने का रुतबा झाड़ते रहते हैं पर रहते एक ही लुंगी में है लेकिन फोन पर ऐसे बॉस बने फिरते हैं जैसे कहीं के सूबेदार हो! असलियत तो तब पता चलती है जब उनके घर जाओ तो वह सब्जी काटते नजर आते हैं फिर यह मोबाइलवा उनकी पोल खोल देता है। 
 यह मोबाइलवा जब से आया है तब से झूठ का बोलबाला हर जगह नजर आया है और मोबाइलवा पर झूठ बोल कर अपने स्टेटस को लोग बढ़ा रहे हैं।  ऐसा ही एक मेरे मित्र ने मेरे साथ किया था और यह कहा कि. ष्आज मेरी मीटिंग कंगना राणावत के साथ है और उसके साथ मैं जरूरी डिस्कस कर रहा हूं! और मैं हंसकर बोली - ‘हाऊ! यह तो पॉसिबल नहीं है क्योंकि इस समय तो कंगना राणावत के साथ घर पर तो मैं हूँ फिल्म की शूटिंग के लिए बातचीत चल रही है!’ फिर मुझे पता लगा कि वह मोबाइलधारी मित्र मेरे पीछे ही बैठकर थोड़ी दूरी पर एक नदी के किनारे कोने में छिप कर बात कर रहा था जहां मैं बैठी हुई थी। वही नदी के दूसरी ओर के मुहाने से छुप कर मैं भी बतिया रही थी । तो फंडा यह निकला कि मोबाइल पर ऐसे स्टेटसवर्धक झूठ बोलने से पहले आसपास देख लेना चाहिए कि क्या पता अगला भी कंगना राणावत के साथ बैठा हो। 
-मिज़र्ापुर (उ.प्र.)