सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने ही बचाई मोदी की छवि !

 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ऐसे आए हैं, जिनसे सरकार को राहत मिली है। ऐसे फैसलों की आलोचना भी खूब हुई और न्यायपालिका पर सरकार के दबाव में काम करने के आरोप भी लगे। लेकिन अब खुद भाजपा ने कहा है कि न्यायपालिका ने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि और उनकी सरकार के फैसलों की रक्षा की है। पिछले दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि कैसे न्यायपालिका ने मोदी की छवि बचाई। उन्होंने कहा कि चाहे राफेल विमान सौदे का मामला हो, नोटबंदी का फैसला हो, नेताओं के खिलाफ  केंद्रीय एजेंसियों की जांच का मामला हो, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट हो या आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का मामला हो, हर मामले में विपक्ष ने दुष्प्रचार किया और अदालत ने मोदी की छवि और उनके फैसले को सुरक्षित रखा। हैरानी की बात यह है कि खुद भाजपा के मुताबिक जिस न्यायपालिका ने मोदी की छवि बचाई है, उसी पर मोदी सरकार सबसे ज्यादा हमलावर दिख रही है। बहरहाल, भाजपा की बड़ी नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री का न्यायपालिका को लेकर दिया गया बयान मामूली नहीं है। यह बड़ा सवाल है कि न्यायपालिका इसे किस रूप में ले? क्या इससे न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि मजबूत होती है या प्रतिबद्ध न्यायपालिका की धारणा बनती है? यह भी सवाल है कि बड़े मसलों को लेकर जब हर बार न्यायपालिका ने सरकार की रक्षा की है, तो फिर न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव का क्या मतलब है? क्या यह टकराव दिखावा है?
खबरों से खौफ  खाती सरकार
कई टीवी चैनलों और अखबारों के बाद केंद्र सरकार की निगाहें अब डिजिटल और सोशल मीडिया पर हैं। इसलिए वह इन माध्यमों पर आने वाली खबरों का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की दिशा में तरह-तरह के यत्न कर रही है। इस सिलसिले में फेक न्यूज़ की पड़ताल करने की जिम्मेदारी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानी पीआईबी को देने के कानून का जो मसौदा तैयार हुआ है, वह उसकी ऐसी ही कोशिश है, लेकिन यह इकलौती कोशिश नहीं है। पिछले दिनों सरकार ने अपने इमरजेंसी पावर का इस्तेमाल करके बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण रोक दिया था। उसे किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर करने से रोका गया। हालांकि इसके बावजूद डॉक्यूमेंट्री जगह-जगह देखी जा रही है। डॉक्यूमेंट्री वाले विवाद से पहले केंद्र सरकार ने जोशीमठ में पहाड़ धंसने और मकानों में दरारें आने की घटनाओं पर सूचना साझा करने से रोक दिया था। सरकार ने इसरो को निर्देश दिया था कि वह सेटेलाइट का डाटा शेयर न करे। इसके बाद पीआईबी को फेक न्यूज़ की पड़ताल का ज़िम्मा देने का मामला सामने आया है। इसमें कहा गया है कि अगर पीआईबी किसी न्यूज़ को फेक न्यूज़ के तौर पर फ्लैग कर दे तो न्यूज़ प्लेटफॉर्म से उसे हटाना होगा। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून को बदलने का मसौदा पेश किया गया है। वैसे सुप्रीम कोर्ट श्रेया सिंघल केस में कह चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत लगाई गई पाबंदियों के अलावा वाक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
कोश्यारी का पद छोड़ना 
महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से भगत सिंह कोश्यारी की रवानगी में अब औपचारिकता ही शेष है। उन्होंने पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर पदमुक्त होने की इच्छा जताई थी। हालांकि हकीकत यह है कि उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया था ताकि सम्मानजनक तरीके से उनकी विदाई हो सके। वैसे वह भाजपा के बहुत काम आ रहे थे। सुबह छह बजे चोरी-छिपे भाजपा के मुख्यमंत्री को शपथ दिलानी हो या उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार के कामकाज में अडंगे लगाना हो, उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों और स्थापित परम्पराओं से हट कर सारे काम किए। लेकिन मराठी अस्मिता को चोट पहुंचाने वाले उनके बयानों से पार्टी को वोटों का नुकसान होता दिख रहा था। इसलिए उनकी विदाई की पटकथा पिछले साल नवम्बर में ही लिखी जा चुकी थी, जब उन्होंने छत्रपति शिवाजी को लेकर विवादित बयान दिया था। उसी समय तय हो गया था कि भाजपा उनको पद पर बनाए नहीं रख सकती है। कोश्यारी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि छत्रपति शिवाजी पुराने ज़माने के नायक हैं और नौजवानों को भीमराव अम्बेडकर और नितिन गडकरी जैसे नए नायकों से प्रेरणा लेनी चाहिए। इससे पहले उन्होंने महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फूले के बाल विवाह को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। फिर राजस्थानी समाज के एक कार्यक्रम में कह दिया था कि राजस्थान और गुजरात के लोग मुम्बई छोड़ कर चले जाएं तो मुम्बई का सारा जलवा खत्म हो जाएगा। उनके ये सारे बयान मराठी गौरव को आहत करने वाले थे। 
भाजपा की मदद करेंगी ममता!
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी पूर्वोत्तर में ऐसी राजनीति कर रही हैं, जिससे भाजपा को सीधा फायदा होगा। बंगाल की राजनीति में बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं को पूरी तरह से भाजपा के साथ जाने से रोकने या किसी और दबाव के कारण उन्होंने पिछले कुछ समय से भाजपा के प्रति बहुत सद्भाव दिखाया है। उसकी अगली कड़ी अब पूर्वोत्तर की राजनीति में दिख रही है। यानी ममता भी वैसी ही राजनीति कर रही हैं, जैसी पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में मायावती करती आ रही हैं। ममता बनर्जी ने पिछले दिनों मेघालय का दौरा किया और सभी सीटों पर पूरी ताकत से लड़ने का ऐलान किया। मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा ने भाजपा के साथ चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया है। सो, नैशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) और भाजपा दोनों सभी सीटों पर लड़ रही हैं। इनके अलावा कांग्रेस भी सभी सीटों पर लड़ रही है। इस चारकोणीय मुकाबले में भाजपा को फायदा हो सकता है। इसी तरह त्रिपुरा में इस बार भाजपा घिरती दिख रही है। सीपीएम और कांग्रेस ने आपस में तालमेल बिठा लिया है। इसका जवाब देने के लिए भाजपा किसी तरह से प्रद्योत देबबर्मा की तिपरा मोथा के साथ तालमेल के प्रयास कर रही है। इस बीच ममता बनर्जी अपनी अलग राजनीति कर रही हैं। त्रिपुरा में तृणमूल को जो भी वोट मिलेगा उसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।