अब नेपाल फंस रहा है चीन के चक्रव्यूह में

 

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में नेपाल इन दिनों चीन की रेल की वजह से चर्चा में है। दरअसल 24 फरवरी, 2023 को सालों से प्रस्तावित चीन और नेपाल के बीच औपचारिक रूप से रेल परिवहन की शुरुआत हो गई। मालगाड़ी 9 से 10 दिनों में काठमांडू पहुंच जाया करेगी।  चीनी विदेश मंत्रालय के मुताबिक चीन के ग्वांग्झू शहर से पहली बार एक मालगाड़ी नेपाल की राजधानी काठमांडू के लिए रवाना हुई थी। उनके मुताबिक जल्द ही दोनो देशों के बीच यात्री रेलगाड़ियों की भी शुरुआत होगी। अब अगर चीन और नेपाल के बीच नियमित रूप से यात्री रेलगाड़ी की सेवाएं शुरू हो जाएंगी तो ज़्यादातर नेपाली भारत आने की बजाय चीन जाने में ज्यादा रूचि दिखाएंगे। इससे नि:संदेह कूटनीतिक स्तर पर भारत की स्थिति कमज़ोर हो सकती है, लेकिन इसका एक फायदा भी हो सकता है कि अगर बड़े पैमाने पर चीन की तरफ नेपाली चले गये तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनका बोझ कम होगा तथा मनीऑर्डर इकोनॉमी से नेपाल की आर्थिक स्थिति सुधरेगी, जिससे भारत के साथ नेपाल का कारोबार बेहतर होगा। ये सुखद कल्पनाएं हैं जो ज्यादातर नेपालियों ने कर रखी हैं, लेकिन इन कल्पनाओं के सच साबित होने से कहीं ज्यादा उस डर की आशंका बढ़ गई है, जिसके चक्रव्यूह में फंसकर आज पाकिस्तान की हालत बहुत दयनीय हो चुकी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान की इस आर्थिक दुर्गति के लिए किसी और देश से ज्यादा पाकिस्तान के शासक ही जिम्मेदार हैं, लेकिन जब पाकिस्तान की इस हालत की विस्तृत जांच की जाती है तो चीनी कज़र् का जाल भी एक बड़े खलनायक के रूप में उभरकर सामने आता। आज पाकिस्तान पर 5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बोझ तो अकेले लिए गये कज़र्ों के ब्याज की भरपायी का है और इस बोझ में 30 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा चीन से लिए गये कज़र् के ब्याज का है।
फिलहाल हमारा ध्यान पाकिस्तान की आर्थिक दुर्गति के बजाय नेपाल की अर्थव्यवस्था के इस दुष्चक्र में फंसने की आशंका पर होना चाहिए। नेपाल में पहले से ही चीन के उपभोक्ता बाज़ार का भारी जलवा है। नेपाल के उपभोक्ता बाज़ार आम तौर से चीनी सामान से ही भरे रहते हैं। अभी तक चीन के सामान को नेपाल तक पहुंचने में 25 से 30 दिन लगते थे, लेकिन अब अगर मालगाड़ी चीन से चलकर 9- 10 दिनों में नेपाल पहुंचेगी तो15 से 20 दिनों की बचत होगी। यह बचत महज समय की नहीं होगी, ईंधन और बाज़ार से छूट जाने वाले अवसरों की भी  होगी। मतलब यह कि अब अगर 15 से 20 दिन पहले चीन के उत्पाद नेपाल की बाज़ार में पहुंचेगे तो उनकी बिक्री के लिए 15 से 20 दिन का अतिरिक्त समय रहेगा। हालांकि सब कुछ चीन की योजनाओं के मुताबिक ही हो जाए, यह संभव नहीं है। 26 दिसम्बर, 2022 को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद ही प्रचंड ने आनन फानन में 2 फरवरी, 2023 को नेपाल के पोखरा शहर में एक और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया जो पूरी तरह से चीन द्वारा निर्मित किया गया है।
नेपाल को और साथ ही साथ चीन को भी यह उम्मीद थी कि इस हवाई अड्डे के उद्घाटन के साथ ही यहां अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की भरमार हो जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भारत अभी तक नेपाल के इस पोखरा स्थित हवाई अड्डे को लेकर आश्वस्त नहीं है और फिर उद्घाटन के बाद कुछ ही दिनों के भीतर जिस तरह से नेपाल के इस एयरपोर्ट में दुर्घटना हुई, उसने दोनों देशों को हिलाकर रख दिया है। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक तो नेपाल के लिए चीन का यह निर्मित हवाई अड्डा सफेद हाथी बन जायेगा। नेपाल के लिए यह सौदा बहुत बड़ा झटका इसलिए है, क्योंकि पहले उसे लग रहा था कि चीन ने उसे मुफ्त में यानी मदद के नाम पर इस हवाई अड्डे को विकसित किया है, लेकिन चीन ने इस हवाई अड्डे के उद्घाटन के समय स्पष्ट कर चुका है कि इस हवाई अड्डे के निर्माण में जो लागत आयी है, वह नेपाल पर मामूली ब्याज दर पर दिया गया ऋण है, न कि आर्थिक मदद। इसलिए इस हवाई अड्डे के निर्माण पर जो खर्च आया है, उसे हर हाल में वापस करना होगा।
ऐसे में हम यह कैसे मान लें कि लगभग अढ़ाई लाख करोड़ रुपये में निर्मित इस रेल परिवहन को चीन नेपाल को मदद के नाम पर गिफ्ट कर देगा। आज नहीं तो कल नेपाल से भी चीन वैसे ही नियमित ब्याज व कज़र् अदायगी का दबाव डालेगा जैसे पाकिस्तान पर उसका दबाव है। नेपाल और चीन के बीच कई और ऐसी ही रेल परियोजनाएं बातचीत के स्तर से आगे निकलकर कामकाज के स्तर पर पहुंचने वाली हैं और अगर अगले 10 सालों में इन कई परियोजनाओं के पूरा होने के बाद अगर हम नेपाल पर चीन के कज़र् और उस कज़र् पर लगने वाले ब्याज का आंकलन करें तो नेपाल की स्थिति भयानक होगी।
हालांकि चीन को लेकर नेपाल के अपने सामरिक हित हैं, इसलिए हो सकता है चीन उसे कुछ रियायत दे, लेकिन अगर चीन इसके बदले में नेपाल के अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय कारोबार को उसके जरिये सम्पन्न कराने की इच्छा रखता है तो यह भी नेपाल के लिए चीनी चक्रव्यूह में फंसने जैसा होगा। मालूम हो कि साल 2021 में नेपाल ने चीन से 233.92 बिलियन नेपाली रुपये का सामान आयात किया था, जबकि वह मुश्किल से महज 1 बिलियन नेपाली रुपये का सामान निर्यात कर सका था। जानकारों का मानना है कि अगले कुछ सालों में अगर नेपाल का ज्यादातर कारोबार चीन की व्यापारिक ट्रेन पर निर्भर हो जाता है तो यह काठमांडू की अर्थव्यवस्था के लिए किसी शोककथा से कम नहीं होगा क्योंकि आने वाले दिनों में चीन का नेपाल पर इतना ज्यादा कज़र् और इस कज़र् के लिए की जाने वाली मामूली सहायता इतनी भारी हो जायेगी कि नेपाल की सारी अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर