इस बार तीखे होंगे गर्मी के तेवर

 

पिछले साल दिसम्बर में जब केरल के तिरुवनंतपुरम में विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए भारत में भीषण गर्मी को लेकर चेतावनी दी थी, तब शायद ही किसी को आभास हुआ होगा कि आगामी वर्ष में गर्मी अपने प्रचंड रूप में इसी क्षेत्र में दस्तक देगी। गत 9 मार्च, 2023 को तिरुवनंतपुरम और कन्नूर जिलों में तापमान 54 डिग्री को छू गया। ताप का यह सूचकांक तापमान और आर्द्रता को मिलाकर तय किया जाता है और बताता है कि लोगों को कितनी गर्मी महसूस हो रही है। मतलब, इन क्षेत्रों में लोगों को 54 डिग्री सेल्सियस तापमान के बराबर गर्मी के एहसास से रूबरू होना पड़ा। इस साल यह गर्मी की दस्तक भर है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में गर्मी सिर्फ  डराएगी नहीं, बल्कि रुलाएगी भी! 
भीषण गर्मी को लेकर इस बार पहले ही अनुमान लगाए जाने लगे थे। गर्मी की दस्तक ने अनुमानों पर मुहर लगाने का काम किया है। गोवा में मार्च के शुरुआती 11 दिनों में ही महादेई वन्य जीव अभ्यारण्य में आग लगने की 48 घटनाएं हो चुकी हैं। हो सकता है कि इनमें से कुछ घटनाओं के पीछे मानवीय भूलें हों, लेकिन गोवा में अभूतपूर्व रूप से चल रही गर्म हवाओं को ही इनके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। पिछले दिनों वहां हालात ऐसे हो गए थे कि स्कूलों तक को बंद तक करना पड़ा। गर्मी की यह प्रचंडता एक-दो राज्यों या कुछ विशेष क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। मौसम विज्ञान विभाग का दावा है कि इस बार फरवरी महीने का अधिकतम औसत तापमान 146 वर्षों में सबसे अधिक रहा, वहीं न्यूनतम औसत तापमान 122 सालों में पांचवें स्थान के तौर पर दर्ज किया गया। विभाग की हाइड्रोमेट और एग्रोमेट सलाहकार सेवा के प्रमुख एस.सी. भान का कहना है कि अप्रैल और मई में बेहद गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
विश्व बैंक ने गत दिसम्बर में ‘भारत में शीतलन क्षेत्र में जलवायु निवेश के अवसर’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत दुनिया का ऐसा पहला देश होगा, जो भीषण गर्म हवाओं का सामना करेगा। इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल (यूएनआईपीसीसी) के आंकलन के हवाले से कहा गया कि सिर्फ अत्यधिक गर्म हवाएं ही नहीं चलेंगी, बल्कि इनके चलने की समयावधि भी बढ़ेगी। जी-20 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने भी अपनी 2021 की रिपोर्ट में कहा था कि 2036 से 2065 के बीच भारत में लू चलने की समयावधि 25 गुना तक बढ़ जाएगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि भीषण गर्मी की वजह से 2030 तक देश में तीन करोड़ 40 लाख लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। करीब 38 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां का वातावरण गर्म है। बेतहाशा गर्मी से उपजे तनाव के चलते लोगों की उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ेगा जो अंतत: नौकरी से हाथ धोने का कारण बनेगा।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) का मानना है कि इस बार कुछ देश या कुछ क्षेत्र नहीं, बल्कि समूची दुनिया भीषण गर्मी से जूझेगी। इसकी वजह ‘अल-नीनो’ का सक्रिय होना भी है। ‘अल-नीनो’ एक प्राकृतिक घटना है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में प्रशांत महासागर के ऊपर के वातावरण में घटित होती है। इस दौरान महासागर की सतह का तापमान चार-पांच डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, जो भीषण गर्मी का कारण बनता है। इससे पहले साल 2016 भी ‘अल-नीनो’ की वजह से बहुत गर्म रहा था। लेकिन क्या यह अकेला कारण है, जो इस बार लोगों को भीषण गर्मी में झुलसाएगा? अगर पिछले साल के कार्बन उत्सर्जन के आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतिह बिरोल ने विगत दो मार्च को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि पिछले साल 36.80 गीगाटन कार्बन का उत्सर्जन दर्ज किया गया। तमाम देशों ने अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोयले का जमकर इस्तेमाल किया। परिणामणस्वरूप उत्सर्जन में 1.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसका परिणाम भीषण गर्मी के रूप में लोगों को भुगतना पड़ेगा।
मुद्दा सिर्फ  गर्मी बढ़ने तक ही सीमित नहीं है। बढ़ता प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण की कमी जैसे तमाम कारण हैं जो ग्लोबल वार्मिंग की वजह बन रहे हैं। इसके चलते जलवायु पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हाल यह है कि एक ही क्षेत्र कभी भीषण गर्मी तो कभी सूखे से जूझ रहा है। केरल में कुछ महीने पहले बारिश व बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया था तो अब गर्मी ने डरा दिया है। अमरीका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अध्यक्ष रिक स्पिनरेड ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि इस सदी के खत्म होते-होते दुनिया के तकरीबन 36 बड़े शहर समुद्र का जलस्तर बढ़ने की वजह से लोगों के रहने योग्य नहीं रहेंगे। इनमें न्यूयॉर्क, टोक्यो, लंदन, सिंगापुर, दुबई, ढाका, बैंकॉक जैसे शहरों के साथ भारत के तीन शहर चेन्नई, मुम्बई और कोलकाता भी शामिल हैं। 
बहरहाल, गर्मी के बदले हुए तेवरों से यह तो तय है कि इस बार चुनौतियां कुछ ज्यादा हैं। कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं, तो वही एच3एन2 इन्फ्लुएंजा भी पैर पसार रहा है। डायरिया, चिकन पॉक्स, टायफाइड जैसे दर्जनभर रोग गर्मी अपने साथ लेकर आती है। ऐसे में भीषण गर्मी से डरने की नहीं, बल्कि सामना करने की तैयारी में जुटने की ज़रूरत है। हालांकि 6 मार्च को गांधीनगर के राजभवन में बैठक कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  उच्चाधिकारियों को गर्मी से निपटने के लिए तैयार रहने का निर्देश दे चुके हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर