राजनीतिक भ्रष्टाचारियों पर ईडी और सीबीआई का शिकंजा

लम्बे अरसे से सीबीआई और ईड़ी को लेकर विपक्षी दलों द्वारा इसके दुरूपयोग के आरोप लगते रहे है। इसमें सच्चाई कितनी है यह किसी से छूपी नहीं है। लेकिन साल 2019 में केन्द्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी करके प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में बदलाव किए। इसके तहत ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में स्पेशल पावर दिया गया था। इसके बाद से ईडी की ताकत में कई गुना इजाफा हुआ। ईडी ने 2021-22 में मनी लॉन्ड्रिंग के 1200 केस दर्ज किए। पी.एम.एल.ए. के सेक्शन 17 के सब-सेक्शन (1) में और सेक्शन 18 में बदलाव कर दिया गया और ईडी को ये शक्ति दी गई कि वह इस कानून के तहत लोगों के आवास पर छापामारी, सर्च और गिरफ्तारी कर सकती है। इससे पहले किसी अन्य एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट में पीएमएलए की धाराएं लगने पर ही ईडी जांच करती थी, लेकिन अब ईडी खुद ही एफआईआर दर्ज करके गिफ्तारी कर सकती है। 
अब बात करें सीबीआई कि तो संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार,  31 जनवरी, 2022 तक कुल 1,025 मामले सीबीआई के पास लंबित थे, जिनमें से 66 मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित थे। सही है कि ऐसी कोई सरकार नहीं, जिस पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप न लगता हो। हालांकि जब देश में यूपीए की सरकार थी तो सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में टिप्पणी की थी कि सीबीआई सरकार का तोता है। केंद्र में बैठी सरकार अपने मातहत काम करने वाली एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ  कर रही है। यह आरोप नया नहीं है।
केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की शिकायत करने वाले दलों की मानें तो मनीष सिसोदिया को बिना किसी प्रमाण गिरफ्तार किया गया। यदि ऐसा है तो अदालत ने उन्हें जमानत देने से मना करते हुए सीबीआई के रिमांड पर क्यों भेजा दिल्ली की शराब नीति के मामले में पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद आठ विपक्षी दलों की ओर से लिखा इस आशय का पत्र कई प्रश्न खड़े करता है कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इस पत्र में आम आदमी पार्टी के साथ सात अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी हस्ताक्षर किए हैं। 
सबसे पहले तो यही प्रश्न उठता है कि आखिर आम आदमी पार्टी को छोड़कर केवल सात विपक्षी दल ही इस नतीजे पर क्यों पहुंचे कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है? इसके बाद राजद सुप्रीमों लालू यादव के ठिकानों में छापेमारी के बाद ईडी ने 600 करोड़ की सम्पत्ति का दावा किया है। इसके अतिरिक्त यह प्रश्न भी उठता है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस पत्र पर हस्ताक्षर कैसे कर सकती हैं? क्या बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले को अनदेखा कर दिया जाए? शिक्षकों की भर्ती में घोटाला किया गया और बेहद बेशर्मी के साथ किया गया, यह निष्कर्ष कलकत्ता उच्च न्यायालय का है। क्या तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य दल यह चाहते हैं कि देश की जनता यह विस्मृत कर दे कि शिक्षक भर्ती घोटाले में गिरफ्तार बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के यहां से करोड़ों की नकदी बरामद की गई थी? यदि तृणमूल कांग्रेस पार्थ चटर्जी को निर्दोष मानती है तो फिर उसने उन्हें पार्टी से निलंबित क्यों किया घ्केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की शिकायत करने वाले दलों की मानें तो मनीष सिसोदिया को बिना किसी प्रमाण गिरफ्तार किया गया।
 यदि ऐसा है तो अदालत ने उन्हें जमानत देने से मना करते हुए सीबीआई के रिमांड पर क्यों भेजा? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यदि शराब नीति में कहीं कोई खामी नहीं थी तो फिर घोटाले का शोर मचते ही उसे वापस क्यों लिया गयाघ् क्या विपक्षी दल इसकी जिम्मेदारी ले सकते हैं कि दिल्ली सरकार की ओर से वापस ली गई शराब नीति में कहीं कोई खामी नहीं थी और उससे शराब विक्रेताओं को कहीं कोई अनुचित लाभ नहीं मिल रहा था एक सवाल यह भी है कि क्या चिट्ठी लिखने वाले विपक्षी दलों के नेता मनीष सिसोदिया समेत जो अन्य नेता घपले-घोटालों के आरोप में केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं, उनके निर्दोष होने का प्रमाण दे सकते हैं? यह हैरानी की बात है कि विपक्षी नेताओं की चिट्ठी में उन लालू यादव का भी जिक्र है, जिन्हें चारा घोटाले में सजा सुनाई जा चुकी है। यह सही है कि ऐसी कोई सरकार नहीं, जिस पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप न लगता हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि राजनीतिक भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लग गई है। राजनीतिक भ्रष्टाचार एक कटु सच्चाई है। 
विपक्ष की बात करे तो कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी, एनसीपी से लेकर उद्धव ठाकरे की पार्टी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे से लेकर सांसद अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, सांसद भावना गवली, संजय राउत से लेकर जन-प्रतिनिधियों की एक लम्बी लिस्ट सीबीआई और ईडी के पास मौजूद है। सरकार ने दिसम्बर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक जानकारी देकर बताया था कि 51 सांसदों और 71 विधायकों के खिलाफ  मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत केस दर्ज हैं। जबकि सीबीआई  की कोर्ट में पेश एक ऐसी ही रिपोर्ट में बताया गया है कि मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ कुल 121 केस लंबित हैं। इनमें से 51 सांसद हैं। जिनमें 14 मौजूदा और 37 पूर्व संसद सदस्य हैं। 5 का निधन हो चुका है। इसके साथ ही सीबीआई के समक्ष 112 विधानसभा सदस्यों के खिलाफ  केस है। इनमें 34 मौजूदा और 78 पूर्व विधायक हैं, जबकि 9 का निधन हो चुका है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 37 सांसदों के खिलाफ  जांच लंबित है। सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया है कि देशभर में सीबीआई की विशेष अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों के खिलाफ कुल 151 मामले लंबित हैं और 58 मामलों में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। हालांकि, लगभग एक-तिहाई मामलों में, मुकदमा घोंघे की गति से आगे बढ़ रहा है । आरोप तय नहीं किए गए हैं, जबकि अपराध कई साल पहले किए गए थे।