सफल एक्टर, असफल प्रेमी 

हरिहर जेठालाल जरीवाला जो रुपहले पर्दे पर संजीव कुमार के नाम से विख्यात हुए, उन एक्टर्स में से थे जो स्टार होने के बावजूद धारा के विपरीत तैरना पसंद करते थे। इसलिए उन्हें अपनी जवानी में भी बुजुर्ग व्यक्तियों के किरदार निभाने पर भी कोई आपत्ति नहीं थी। वह फिल्म ‘मौसम’ में शर्मिला टैगोर के डॉक्टर पिता और फिल्म ‘शोले’ में जया भादुड़ी (अब बच्चन) के ठाकुर ससुर उस समय बने जब वह 35 वर्ष के भी नहीं थे। इन किरदारों को उन्होंने पर्दे पर विश्वसनीय बना दिया था, जिससे उनकी अभिनय क्षमता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जिसका परिचय उन्होंने फिल्म ‘संघर्ष’ में दिलीप कुमार के सामने अपनी प्रभावी अदाकारी से पहले ही दे दिया था। बहरहाल, सवाल यह है कि वह जवानी में ही बुढ़ापे के रोल करना क्यों स्वीकार कर लेते थे, जबकि उनके पास हीरो बने रहने के भी पर्याप्त अवसर थे? यह सही है कि एक अच्छा एक्टर हर किरदार को चुनौती के तौर पर स्वीकार करता है और अपने आत्मविश्वास के चलते उसे अपनी छवि खराब होने का डर भी नहीं होता है, लेकिन तबस्सुम के उक्त प्रश्न का संजीव कुमार ने जो उत्तर दिया था वह आश्चर्यजनक था, जिसमें उन्होंने अपनी मौत की भी एकदम सही भविष्यवाणी कर दी थी।
संजीव कुमार ने कहा था, ‘मैं कभी बूढ़ा नहीं होने का क्योंकि अपने परिवार के अन्य पुरुषों की तरह मैं भी 50 वर्ष से अधिक जिंदा रहने वाला नहीं हूं। इसलिए मैं पर्दे पर ही बुढ़ापे को अनुभव करना चाहता हूं।’ संजीव कुमार की भविष्यवाणी सही साबित हुई। 6 नवम्बर 1985 को मुंबई में उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उस समय वह मात्र 47 वर्ष के थे। गौरतलब है कि उनके दादा शिवलाल जरीवाला, उनके पिता जेठालाल जरीवाला, उनके बड़े भाई किशोर जरीवाला, उनके छोटे भाई निकुल जरीवाला सभी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी और वह भी अपने जीवन का 50वां बसंत देखने से पहले। इसे बहुत लोग संयोग या रहस्यमय श्राप कहेंगे, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से यह विरासत में मिलने वाला जेनेटिक रोग है, जिसकी जानकारी संजीव कुमार को थी, इसलिए वह अपनी मौत की सही भविष्यवाणी कर सके।
संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई 1938 को सूरत में हुआ था। एक सर्वे में उन्हें भारतीय सिनेमा का 7वां महानतम एक्टर वोट किया गया था और फिल्म ‘अंगूर’ में उनके डबल रोल को फोर्ब्स इंडिया ने भारतीय सिनेमा के 100वें वर्ष के जश्न में 25 सर्वश्रेष्ठ अभिनय प्रदर्शन में शामिल किया था। ‘दस्तक’ व ‘कोशिश’ के लिए उन्हें दो राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह अपने आपमें दिलचस्प है कि ग्लैमर की दुनिया में सफल व रईस अदाकार होने के बावजूद भी संजीव कुमार अपने 47 वर्ष के जीवन में अविवाहित ही रहे, हालांकि उन्होंने स्वयं भी विवाह प्रस्ताव दिए और उन्हें भी शादी करने के प्रस्ताव मिले। संजीव कुमार ने 26 साल की आयु तक किसी भी लड़की को ‘स्पर्श’ नहीं किया था। लेकिन उसी उम्र में उन्हें प्रेम व साथी की गहरी व गंभीर ज़रूरत महसूस होने लगी। वह एक मुस्लिम लड़की को अपना दिल हार बैठे और उससे शादी करना चाहते थे। लेकिन उनकी मां एक मुस्लिम को अपनी बहू बनाने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थीं। संजीव कुमार के अनुसार, अगर वह अपने परिवार में सबसे छोटे होते तो अपने प्रेम के लिए बगावत कर बैठते, पारिवारिक जिम्मेदारियों को समझते हुए वह अपनी मां की ज़िद के आगे झुक गये।
वह मुस्लिम लड़की कौन थी? अपने शुरुआती करियर में संजीव कुमार ने अनेक मुस्लिम लड़कियों के साथ फिल्में की थीं जैसे कुमकुम व नाज़िमा। 
उनके भतीजे उदय जरीवाला व रीटा राममूर्ति गुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘संजीव कुमार: द एक्टर वी आल लव्ड’ में उस लड़की का नाम सायरा बानो लिखा है लेकिन साथ ही यह भी लिखा है कि संजीव कुमार को गलतफहमी हो गई थी और उनकी वह केवल एकतरफा दीवानगी थी। कुछ लेखकों का अंदाज़ा है कि वह लड़की शबाना आज़मी थीं। इस संदर्भ में भी अनेक दलीलें हैं, जिनकी अब पुष्टि करना कठिन है, अगर शबाना आज़मी ही कुछ कहें तो अलग बात है, लेकिन वह एक दूसरे के अभिनय से प्रभावित होना व आपसी दोस्ती होने से अधिक कुछ कहती नहीं हैं।
संजीव कुमार और नूतन ने भी एक दूसरे को प्रेम पत्र लिखे। नूतन उनके लिए अपनी शादी तक तोड़ने के लिए तैयार थीं। यह बात भी आगे न बढ़ सकी क्योंकि संजीव कुमार में किसी का घर तोड़कर एक तलाकशुदा के साथ अपना घर बसाने का साहस नहीं था। 
फिल्म ‘सीता और गीता’ की शूटिंग के दौरान संजीव कुमार का दिल हेमा मालिनी पर आ गया। उन्होंने हेमा मालिनी के सामने सशर्त विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे हेमा मालिनी ने इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह फिल्मों में अदाकारी छोड़कर मात्र गृहिणी बने रहने के लिए तैयार नहीं थीं। इसके बाद भी संजीव कुमार जब भी हेमा को किसी अन्य एक्टर के साथ देखते तो डिप्रेशन में चले जाते थे। एक बार राजेश खन्ना ने हेमा का हाथ पकड़कर ऑडिटोरियम में प्रवेश किया तो संजीव कुमार वहां से उठकर चले गये।
सुलक्षणा पंडित तो संजीव कुमार के प्यार में इतनी दीवानी थीं कि उन्होंने स्वयं उनसे शादी करने का प्रस्ताव रखा। इसे संजीव कुमार ने शालीनता के साथ ठुकरा दिया। इस इंकार का सुलक्षणा पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने जीवनभर अविवाहित रहने की कसम खा ली। वह अभी तक सिंगल हैं और संजीव कुमार को भी अपनी ज़िंदगी में कोई हमसफर नहीं मिला।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर