खूबसूरती और चकाचौंध में असली को मात देते नकली हीरे

क्या नकली हीरे भी अब असली हीरे का मुकाबला करने लगे हैं? जी हां, ऐसा ही है बल्कि देखने और प्रभाव के मामले में नकली हीरा, असली हीरे से कहीं ज्यादा चकाचौंध पैदा करता है, बशर्ते हमें कोई ये न बताए कि हमारे हाथ में जो हीरा है, वह असली की बजाय नकली है। किसी के बताने के जिक्र के आशय ये है कि आज की तारीख में नकली हीरे इस कदर असली जैसे हो गये हैं कि उन्हें देखकर जौहरी के अलावा शायद ही कोई पहचान पाये कि वह असली हीरा है या नकली। पिछले साल यानी 2023 की अपनी अमरीका यात्रा के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयोगशाला में बने एक हीरे को अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की पत्नी जिल बाइडेन को दिया तो 7.5 कैरेट के इस हीरे को जिल पहचान ही नहीं पायीं कि यह असली है या नकली। वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें इकोफ्रेंडली नकली हीरा दिया था। जिल बाइडेन को इस तोहफे में खास तौर पर वह ग्रीन डायमंड सबसे ज्यादा पसंद आया था, जो लैब में बना था।
लेकिन लैब में बनने का मतलब ये नहीं है कि उसकी कीमत कम है। वास्तव में वह अनमोल हीरा था और इसे बिल्कुल आधुनिक तकनीक से बनाया गया था। कहने की बात ये है कि आधुनिक तकनीक से बिल्कुल असली जैसे नकली हीरे बनाये जा रहे हैं। इनके बनाये जाने में रिन्यूएबल एनर्जी का उपयोग किया जाता है और भले यह नकली हीरा हो, लेकिन इसके अंदर भी रासायनिक और ऑप्टीकल गुण वैसे ही होते हैं, जैसे धरती के गर्भ में सदियों से दबे हीरों में होते हैं। मतलब यह है कि नकली हीरे के भी रासायनिक गुण वही होते हैं, जो असली हीरे के होते हैं और जिस तरह असली हीरे से गुजरकर प्रकाश सप्तरंगों में बदल जाता है, उसी तरह इस नकली हीरे में भी होता है। मतलब यह कि असली हीरे के सारे गुण नकली हीरे में भी पाये जाते हैं। ऐसे में कोई भी यह स्वाभाविक सवाल पूछ सकता है कि फिर ये नकली हीरे, नकली क्यों हैं?
दरअसल असली से भी बेहतर बनने वाले ये नकली हीरे इसलिए बनाये गये हैं और आगे भी बनाये जाएंगे, क्योंकि धरती के गर्भगृह से निकलने वाले प्राकृतिक हीरों की अपनी एक सीमा है। धरती के भीतर जितने हीरे हो सकते थे, वे निकल चुके हैं या जल्द ही निकल जाएंगे। मगर दुनिया में हीरों को लेकर इंसान की चाहतें जरा भी कम नहीं हुईं और आने वाले वक्त में भी कम नहीं होगीं। इसलिए वैज्ञानिकों ने अथक प्रयास से इंसान की इस दुखती रग को सहलाने के लिए बिल्कुल असली जैसा नकली हीरा बनाया है और यह भविष्य में भी बनता रहेगा, क्योंकि इंसान के भीतर से हीरों की चाहत कभी कम नहीं होगी।
वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका की फर्स्ट लेडी को जो कृत्रिम या आर्टिफिशियल हीरा दिया था, वह गुजरात के सूरत शहर में बना था। सूरत सिर्फ हिंदुस्तान के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए हीरा उद्योग का केन्द्र है। अगर किसी दिन दुनिया में 11 हीरे कट-पॉलिश किए जाते हैं, तो इनमें से 9 हीरे सूरत में ही कट-पॉलिश होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका की फर्स्ट लेडी को जो हीरा दिया था, वह सूरत की ग्रीन लैब नाम की कम्पनी में तैयार हुआ था, जिसके मालिक मुकेश पटेल प्रधानमंत्री मोदी के न सिर्फ समर्थक बल्कि अनन्य प्रशंसक भी हैं। ग्रीन लैब की स्थापना पिछली सदी के 60 के दशक में हुई थी और आज ये कम्पनी कृत्रिम हीरा बनाने वाली दुनिया की अन्य कंपनियों में अग्रणी है। इस कंपनी के हीरे के व्यवसाय को बेहद संयमित और भविष्य के लिए समर्पित इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इस कम्पनी ने बिल्कुल प्राकृतिक एनर्जी से हीरा बनाने के लिए 90 एकड़ में फैले इस फार्म हाउस में 25 मेगावाट का सोलर प्लांट लगाया है ताकि जो कृत्रिम हीरा बने उसमें जरा भी अप्राकृतिक लाइट या पारंपरिक एनर्जी का इस्तेमाल न हो। सूरत की इस कम्पनी में कई हजार लोग काम करते हैं और इसने अब तक 1 लाख 25 हजार कैरेट से ज्यादा हीरे तैयार कर लिए हैं। असली हीरा पृथ्वी की अतल गहराईयों से निकलता है। जहां उच्च दबाव और ताप, कार्बन के अन्य रूपों को हीरे में बदल देता है। पारंपरिक ढंग से बनते हीरों को देखकर ही एक रूसी वैज्ञानिक ने पहला ऐसा नकली हीरा बनाने की कोशिश की थी, जो बिल्कुल असली जैसा था। उसने किया यह था कि इस मशीन में धातु और ग्रेफाइट के मिश्रण को एक बक्से में रखकर उच्च दाब एवं ताप के जरिये इसे हीरे के रूप में ढालने की कल्पना की थी और वह अपनी कल्पना में किसी हदतक सफल भी रहा। इस नकली हीरे में असली हीरे का एक छोटा कण या बीज होता है और फिर इसी के इर्द-गिर्द हीरा बनने लगता है अंतत: इस प्रक्रिया से उच्चकोटि का हीरा बन जाता है। इस तकनीक से पहली बार में जो हीरे बने थे, वो भी बिल्कुल असली हीरों के निकट थे और अब तो इसमें सुधार के बाद ऐसे हीरे बनने लगे हैं, जो असली से भी बेहतर है। हालांकि उसे बेहतर इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह असली हीरे का अपमान होगा और कोई नकली चीज चाहे जितनी भी असली जैसी हो, लेकिन उसे माना तो नकली ही जायेगा।
अमरीका की कम्पनी जेमोसिस ऐसे हीरे बना रही है, जो सचमुच प्राकृतिक हीरों से भी श्रेष्ठ हैं। हीरे वास्तव में रासायनिक क्रियाओं, भाप और डिपोजीशन यानी एक खास परिवर्तित मटीरियल के एकत्र होने के चलते बनता है। इसे सीबीडी तकनीक कहते हैं, जिसमें असली हीरे की एक बहुत पतली परत के ऊपर हीरे की ईंट उगायी जाती है और इस ईंट को बहुत कम दाब वाले एक ऐसे बर्तन में रखा जाता है  जिसके ऊपर मीथेन और हाईड्रोजन गैस का बहाव करवाया जाता है। इस तरह इस प्रक्रिया से माइक्रोवेब द्वारा अत्यंत उच्चताप पर एक डायमंड प्लाज्मा तैयार किया जाता है, जिसमें से निकले कार्बन कण हीरे की पतली परत पर जमा होकर एक मोटी ईंट जैसे बन जाते हैं। बाद में इस ईंट को कलात्मक तरीके से अलग अलग एंगल्स में काट लिया जाता है और ये नायाब नकली हीरे असली हीरों को चुनौती देते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर