भूजल को समृद्ध करने वाला पहाड़ों का हरा सोना बांज यानी ओक

पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों और हिमालय की पूरी लंबाई के क्षेत्रफल में पाया जाने वाला बांज जिसे फारसी में शाहबलूत और अंग्रेजी में ओक कहा जाता है, भूजल को बेहद समृद्ध करने वाला पेड़ है। लेकिन अपने अति उपयोगी होने के कारण कई दूसरे महत्वपूर्ण पेड़ों की तरह यह पेड़ भी अब विलुप्ति की तरफ बढ़ रहा है। पहाड़ों में लोग इसे हरा सोना भी कहते हैं। इसकी एक खासियत यह है कि यह बड़े पैमाने पर वर्षा के पानी को अवशोषित करता है और उसे जमीन के अंदर भेज देता है। क्योंकि इस पेड़ की जड़ें जमीन में बहुत नीचे तक फैली होती है, जिनके सहारे वर्षा का पानी जमीन में बहुत नीचे तक जाकर एकत्र होता है। लेकिन इसकी लकड़ी कीमती होने के कारण इसे चोरों ने, तस्करों ने और कारोबारियों ने बहुत बड़े पैमाने पर काटा है, जिसके कारण अब यह पहाड़ों में बहुत कम रह गया है। 
दुनिया में बांज या ओक की 600 से ज्यादा प्रजातियां हैं। भारत में भी करीब दो दर्जन से ज्यादा प्रकार के बांज वृक्ष पाये जाते हैं, जो एक जमाने में हिमालय से लेकर समूचे पूर्वोत्तर भारत में फैले थे। लेकिन खास तौर पर पहाड़ों की प्रजातियां- रयांस, फ्यांठ और मौरू का अस्तित्व अब लगभग खत्म हो गया है। पर्यावरणविद इससे बहुत चिंतित हैं। उनके मुताबिक एक तरफ जहां पहाड़ों में बड़े पैमाने पर बांज के पेड़ कट गये हैं, वहीं दूसरी चिंताजनक बात यह है कि अब बांज के पेड़ बहुत कम उग रहे हैं। अत: वनस्पतिशास्त्रियों को इस पर शोध करना चाहिए कि इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग है या कोई और वजह? हालांकि अगर बांज के पेड़ों के विस्तृत ब्योरों को जानें तो पहले भी कहा जाता रहा है कि इसके फल जिसे चेस्टनट (अखरोट) कहा जाता है, बड़े पैमाने पर पक्षियों और जानवरों द्वारा खा लिए जाने के कारण इसके बहुत कम पेड़ उगते हैं। 
इंटरनेट में मौजूद कई ऐसी वेबसाइटें हैं, जो बताती हैं कि 10,000 चेस्टनट में से केवल एक ही ओक का पेड़ बन पाता है। क्योंकि कबूतर, बतख, गिलहरी, चूहे, हिरण, सुअर, भालू और सैकड़ों दूसरे पशु व पक्षी बांज या ओक के फलों को बहुत प्यार से खाते हैं। इसलिए ये उगने के लिए बचते ही नहीं। 15 से 21 मीटर यानी 50 से 70 फीट तक ऊंचे ये पेड़ बहुत बलिष्ठ और विशाल होते हैं। इसकी जड़े जमीन में काफी नीचे तक होती हैं। पहाड़ों के अलावा ये नदियों की तलहटी में भी काफी ज्यादा पाये जाते हैं। एक बांज के पेड़ का जीवन औसतन 200 साल होता है, लेकिन कई पेड़ 1000 साल से भी ज्यादा समय तक जिंदा रहते हैं। अमरीका में तो ग्रेट ओक ट्री नाम का एक ऐसा बांज का पेड़ मौजूद है, जिसकी उम्र 2000 साल से भी ज्यादा है। कहते हैं बाज के पेड़ धरती में 6 करोड़ साल से भी पहले से मौजूद हैं। हैरानी की बात यह है कि ये इतने सालों में विलुप्त नहीं हुए, लेकिन अब इनकी संख्या लगातार कम हो रही है, जिसके बारे में पूरी दुनिया में चिंता की जानी चाहिए, क्योंकि इनकी कमी के पीछे मानवीय कारणाें के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग भी एक बड़ा कारण हो सकता है। 
बहरहाल इस पेड़ के इतने लंबे समय से दुनिया में मौजूद होने का एक बड़ा कारण इसका बीज है, जो सुपारी के आकार के कठोर आवरण के अंदर होता है। साथ ही इसकी पत्तियों में एक खास किस्म का एसिड होता है, जिसकी वजह से कीड़े इसे नहीं खाते। इससे ये जहां कीड़ों से बच जाता है, वहीं इसका बीज भी सुरक्षित रहता है। इंसान से भी पहले धरती में मौजूद इस बांज या ओक के पेड़ में बसंत के मौसम में दो तरह के फूल लगते हैं, एक नर फूल होता है और दूसरा मादा फूल। बांज के पेड़ बहुत जल्दी फल नहीं देते। इसके पेड़ों में एकोर्न यानी अखरोटों का उत्पादन 20 साल के बाद शुरु होता है और कई बार तो 50 साल का होने के बाद ये फल देना शुरु करते हैं। इनमें लगने वाले हर अखरोट के अंदर एक बीज होता है। बांज की जो सैकड़ों अलग-अलग प्रजातियां हैं, उन अलग-अलग प्रजातियों में इसके फलों के परिपक्वहोने की अवधि भी अलग-अलग है। किसी में यह महज छह महीने में परिपक्व हो जाता है और किसी में इसके परिपक्व होने में 24 महीने तक लगते हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर ओक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में करीब एक करोड़ एकोर्न या अखरोट देता है। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर