कर्नाटक चुनाव : अधिक आयु वाले नेताओं ने किया अधिक प्रचार

कर्नाटक चुनाव में एक दिलचस्प बात यह भी रही कि जब देश की सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी 75 साल से ज्यादा उम्र के अपने नेताओं को राजनीति से संन्यास दिला रही है तो इस प्रदेश में 80 साल से ऊपर के नेताओं ने सबसे ज्यादा चुनाव प्रचार करने का रिकॉर्ड बनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो खूब रैलियां की ही, लेकिन सबसे ज्यादा उम्र के बुज़ुर्ग नेताओं ने सबसे ज्यादा रैलियां कीं। कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे, भाजपा की ओर से बी.एस. येदियुरप्पा और जनता दल (एस) की ओर से एच.डी. देवगौड़ा ने सबसे ज्यादा चुनावी रैलियां की। 
बी.एस. येदियुरप्पा की उम्र 80 साल है और दो साल पहले भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था लेकिन उन्होंने इस बार कर्नाटक में 80 चुनावी सभाओं को संबोधित किया। लिंगायत समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों में उनके लगातार दौरे हुए और हज़ारों लोगों से उन्होंने निजी तौर पर सम्पर्क किया। इसी तरह 80 साल के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 85 सभाएं की। कांग्रेस अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने पूरे प्रदेश में रैलियां और जन सम्पर्क किया। इसी तरह जनता दल (एस) के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की उम्र 90 साल हो गई है और उनकी सेहत भी ठीक नहीं है लेकिन अपनी पार्टी के प्रभाव वाले क्षेत्रों खास कर पुराने मैसुरू इलाके में उन्होंने कई जनसभाएं कीं और रोड शो भी किए।
मतदान के दिन भी रैली का रिवाज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की राजनीति में आने के बाद से ही यह नियम बनाया है कि जिस दिन देश में कहीं भी मतदान होगा उस दिन वह ज़रूर कोई रैली या सभा करेंगे। आमतौर पर बड़े राज्यों में कई चरण में मतदान होता है तो वह एक चरण के मतदान के दिन दूसरे चरण वाले इलाके में रैली करते है। इसका सीधा मकसद मतदान को प्रभावित करना होता है। लेकिन राजनीतिक नैतिकता के लिहाज से इसे ठीक नहीं कहा जा सकता। आखिर इसी वजह से तो 48 घंटे पहले प्रचार बंद किया जाता है कि कोई नेता अंतिम समय में अपने भाषण या किसी राजनीतिक गतिविधि से मतदाताओं को प्रभावित न कर सके। बहरहाल, जहां एक चरण में ही मतदान होता है उसमें भी प्रधानमंत्री सभा या रैली करने का कोई न कोई तरीका ज़रूर निकाल लेते हैं। 
जैसे कर्नाटक में 10 मई को एक चरण में मतदान हुआ, जिसके लिए 8 मई को प्रचार बंद हो गया। प्रधानमंत्री ने 10 मई को ही राजस्थान के सिरोही में एक सभा को संबोधित किया। उधर कर्नाटक में मतदान चल रहा था और इधर राजस्थान में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार को निशाने पर रखा। सभा से पहले उन्होंने नाथद्वारा के प्रसिद्ध श्री नाथ जी के मंदिर में पूजा-अर्चना की। उनके मंदिर जाने और फिर सभा को संबोधित करने के कार्यक्रम का लगभग सारे टीवी चैनलों पर हमेशा की तरह लाइव प्रसारण हुआ। यह अलग बात है कि कर्नाटक के जनमानस पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
निशाने पर राहुल 
कुछ सालों पहले तक केंद्रीय मंत्री अपने पार्टी संगठन के दूसरे नेताओं की तरह राजनीतिक मामलों पर ज्यादा नहीं बोलते थे और चुनावी सभाओं के अलावा उनके राजनीतिक बयान भी कम सुनने को मिलते थे, लेकिन मौजूदा सरकार में केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पदाधिकारी का भेद मिट गया है। इसमें भी कुछ केंद्रीय मंत्री ऐसे हैं, जिनका मुख्य काम कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला करना होता है। ऐसा लगता है कि जैसे उनको इसी काम के लिए मंत्री नियुक्त किया गया है। ऐसे केंद्रीय मंत्रियों में सबसे ऊपर स्मृति ईरानी का नाम है। वह हैं तो महिला एवं बाल विकास मंत्री लेकिन अपने मंत्रालय के बारे शायद ही कभी बोलती हों। संसद में हो या संसद के बाहर वह आम तौर पर राहुल गांधी और उनके परिवार पर ही हमलावर रहती हैं, जिससे लगता है कि उनके मंत्रालय का मुख्य काम राहुल के खिलाफ  बयानबाजी करना ही है। स्मृति ईरानी के अलावा दूसरा ऐसा नाम है विदेश मंत्री एस. जयशंकर का। वह चीन के विशेषज्ञ माने जाते हैं, इसलिए वह चीन को लेकर राहुल गांधी के बयानों से बहुत नाराज़ हो जाते हैं और जहां तहां राहुल का मज़ाक उड़ाते हैं। पिछले दिनों मेसुरू के किसी कार्यक्रम में बिना किसी संदर्भ के उन्होंने कहा, ‘मैं राहुल से चीन पर क्लास लेना चाहता था, लेकिन फिर पता चला कि वह खुद चीन के राजदूत से क्लास लेते हैं।’ पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी और खेल एवं युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर का भी पसंदीदा काम राहुल का मज़ाक उड़ाना है। 
अगले चुनावों में भाजपा 75 आयु सीमा का क्या करेगी?
यह लाख टके का सवाल है कि क्या भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में टिकट देने के लिए 75 साल की अधिकतम उम्र सीमा के अघोषित नियम पर क्रियान्वयन करेगी या इसमें कुछ लचीलापन लाया जाएगा? भाजपा के 70 साल से ज्यादा उम्र के कई बड़े नेता इस नियम पर नज़र रखे हुए हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर इस नियम पर क्रियान्वयन हुआ तो उनका टिकट कट जाएगा। इसलिए इस उम्र के कई नेता अभी से अपनी पोज़िशनिंग करने में लग गए हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी के दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय के पार्टी छोड़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि उनकी उम्र 77 साल हो गई है और उनको लग रहा है कि अगले चुनाव में लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। पार्टी उनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट देगी, इसमें भी संशय है। भाजपा के 303 लोकसभा सदस्यों में कई ऐसे हैं, जो अगले साल चुनाव तक 70 साल से ऊपर और 75 के करीब होंगे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 73 वर्ष से ऊपर के हो जाएंगे और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 73 के करीब पहुंच जाएंगे। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे भी 70 साल से ऊपर के हैं। झारखंड में पशुपति नाथ सिंह से लेकर उत्तर प्रदेश में रिटायर जनरल वी.के. सिंह सब 75 के दायरे में पहुंचे हुए हैं। भाजपा के लिए इन नेताओं का विकल्प खोजना आसान नहीं होगा।
गहलोत की राजनीतिक निशानेबाज़ी
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 2020 में वसुंधरा राजे और भाजपा के कुछ अन्य विधायकों ने उनकी सरकार बचाई थी। इस बयान के दो पहलू हैं। एक तो कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति से जुड़ा है। इस तरह के बयानों से सचिन पायलट को निशाना बनाया जाता है और बार-बार याद दिलाया जाता है कि उन्होंने अपनी ही सरकार गिराने का प्रयास किया था। इससे आलाकमान के सामने और जनता में भी उनको लेकर नकारात्मक संदेश जाता है। दूसरा पहलू भाजपा की अंदरुनी राजनीति से जुड़ा है, जो दो तरह से देखा जा रहा है। एक नज़रिया तो यह है कि गहलोत को पता है कि अगर उनको कोई चुनौती दे सकता है तो वह वसुंधरा हैं। इसलिए उन्होंने वसुंधरा को भाजपा आलाकमान की नज़र में संदिग्ध बनाने का प्रयास किया है ताकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उनके हाथ में कमान न दे। इस बयान की दूसरी व्याख्या हो रही है कि इससे वसुंधरा की ताकत बढ़ेगी। दो तरह से उनकी ताकत बढ़ने की बात हो रही है। पहला संदेश तो यह है कि गहलोत उनको रास्ते से हटाना चाहते हैं, इसलिए बदनाम कर रहे हैं और दूसरा संदेश यह है कि अगर भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा को कमान नहीं सौंपी तो वह कांग्रेस के साथ मिल कर भाजपा की राह मुश्किल करेंगी। कांग्रेस या गहलोत से उनकी करीबी का संदेश उनकी ताकत बढ़वाएगा। इसे जैसे को तैसा वाली राजनीति भी कह सकते हैं। आखिर पिछले दिनों कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी भी तो गहलोत की तारीफ  कर चुके हैं।