जालन्धर लोकसभा क्षेत्र के उप-चुनाव के बाद पंजाब की राजनीति का रुख क्या होगा ?

पंजाब के राजनीतिक तथा पत्रकारिता क्षेत्रों में इस सवाल पर बड़ी दिलचस्पी से विचार किया जा रहा है कि जालन्धर लोकसभा क्षेत्र के उप-चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति क्या रुख अपनाएगी?
इस संबंध में हमारा स्पष्ट विचार है कि आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति में तानाशाही रुझान बढ़ेंगे तथा अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के बीच तीव्र टकराव भी देखने को मिलेगा। इसका मुख्य कारण यह है कि जालन्धर लोकसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी को उसकी अपनी उम्मीदों से भी अधिक सफलता मिली है। जब जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव के लिए भारतीय चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की गई थी तो उस समय आम आदमी पार्टी सोच में पड़ गई थी। उसके पास यह चुनाव लड़ने के लिए कोई भी उचित उम्मीदवार नहीं था तथा न ही राजनीतिक तथा पत्रकारिता क्षेत्रों को यह उम्मीद थी कि आम आदमी पार्टी यह चुनाव जीत जाएगी। इस स्थिति में पार्टी द्वारा अन्य पार्टियों के अनेक दलित नेताओं तक सम्पर्क किया गया ताकि उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करके जालन्धर लोकसभा के आरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जाए, परन्तु इसमें आरम्भ से पार्टी को ज्यादा सफलता मिलती दिखाई नहीं दे रही थी, अंतत: कांग्रेसी नेता सुशील रिंकू जोकि विधानसभा के पिछले चुनाव में हार गए थे, को पार्टी में शामिल करके आम आदमी पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया तथा उन्हें चुनाव जिताने के लिए वैध-अवैध हर तरह के तरीके अपनाए गए। लगभग 90 प्रतिशत घरेलू उपभोक्ताओं को मिल रही मुफ़्त बिजली ने भी इस सन्दर्भ में बड़ी भूमिका अदा की, परन्तु जीत जीत होती है। सुशील कुमार रिंकू 3,02,279 वोट लेकर सफल रहे। इसके साथ आम आदमी पार्टी के नेतृत्व के हौंसले बेहद बुलंद हो गए हैं तथा मुख्यमंत्री भगवंत मान की बयानबाज़ी भी अधिक हमलावर हो गई है। यह चुनाव जीतने के बाद उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि पंजाब को कैसे चलाना है या पंजाब में क्या करना है इसके लिए हमें विपक्षी पार्टियों को पूछने या बताने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि लोगों ने उन्हें नकार दिया है। भगवंत मान ने यह भी कहा है कि पिछले एक वर्ष में उनकी सरकार ने जो भी कामकाज किए हैं लोगों ने उन पर मुहर लगा दी है। चाहे मुख्यमंत्री भगवंत मान के ये दावे उचित न हों परन्तु आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव जीता है तथा इससे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को हार का सामना करना पड़ा।
आम आदमी पार्टी तथा मुख्यमंत्री भगवंत मान का जो हमलावर रवैया सामने आ रहा है, वह ज़ाहिर करता है कि प्रदेश की राजनीति के लिए आने वाले दिन कोई ज्यादा सुखद नहीं होंगे। चाहे प्रदेश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थितियां यह मांग करती हैं कि प्रदेश के राजनीति दल ज्वलंत  मामलों पर विचार करने के लिए एक मंच पर आएं। इस समय पंजाब एक तरह से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। भू-जल का स्तर नीचे जाने के संबंध में बेहद चिन्ताजनक रिपोर्टें आ रही हैं। कृषि का गम्भीर संकट पहले की तरह बना हुआ है। ऋण के जाल में फंसे किसानों द्वारा आत्महत्या के समाचार अक्सर आ रहे हैं। प्रदेश के उद्योगों की हालत भी ज्यादा बेहतर नहीं है। सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद पूंजी निवेश में कोई खास वृद्धि नहीं हो रही, अपितु जिस तरह उद्योगों तथा व्यापारिक संस्थानों के लिए प्रदेश सरकार द्वारा बिजली महंगी की गई है, उससे यहां से उद्योगों के पलायन में और वृद्धि होने की सम्भावना है।
यदि प्रदेश के युवाओं की बात करें तो हालात इस पक्ष से भी बड़े गम्भीर हैं कि युवाओं का एक बड़ा वर्ग गैंगस्टरवाद  के चक्कर में फंस गया है। देश-विदेश में इस कारण प्रदेश की बेहद बदनामी हो रही है। चाहे सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद पंजाब पुलिस ने पड़ोसी प्रदेशों की पुलिस तथा केन्द्रीय एजेंसियों की सहायता से गैंगस्टरों के अलग-अलग ग्रुपों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की है, ज्यादातर को गिरफ्तार भी किया गया है, परन्तु प्रदेश में गैंगस्टर अभी भी एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। गोल्डी बराड़ तथा अनमोल बिश्नोई आदि जैसे अनेक ़खतरनाक गैंगस्टर विदेश में हैं तथा वहीं से अपने गैंग चला रहे हैं। ऐसे अपराधी पंजाब पुलिस की पहुंच से अभी भी दूर हैं। सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह ने भी यह कहा है कि जिन गैंगस्टरों या अन्य लोगों ने योजना बना कर उनके बेटे की हत्या करवाई है वह अभी भी कानून की गिरफ्त से बाहर हैं। वैसे भी जिस तरह लोगों को अभी भी फिरौतियों के फोन आ रहे हैं तथा फिरौतियां न देने वालों को धमकियां दी जा रही हैं तथा जिस तरह विदेशों से तथा जेलों से भी नशों के तस्कर तथा गैंगस्टर अभी भी कारोबार चला रहे हैं तथा बार-बार जेलों में फोन भी पकड़े जा रहे हैं, उससे स्पष्ट ज़ाहिर होता है कि यह समस्या अभी नियन्त्रण में नहीं आई। युवाओं का एक बड़ा वर्ग नशे के सेवन तथा नशे बेचने के आत्मघाती धंधे में भी लगा हुआ है। नशों की पूर्ति के लिए युवाओं द्वारा चोरियों तथा लूटपाट की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है तथा यहां तक कि पैसे हासिल करने के लिए अपने माता-पिता तथा पारिवारिक सदस्यों की हत्या करने से भी गुरेज़ नहीं किया जा रहा। इस तरह के सामाजिक घटनाक्रम के कारण समाज में असुरक्षा की भावना पाई जा रही है तथा इसी कारण बड़ी संख्या में अभिभावक अपने बच्चों को +2 करवा कर विदेशों में भेजने को प्राथमिकता दे रहे हैं ताकि यहां पर उनके बच्चे गलत संगत में न पड़ जाएं। वैसे भी प्रदेश में कृषि आधारित तथा अन्य उद्योग भारी संख्या में न लगने के कारण युवाओं को यहां पर अपना भविष्य दिखाई नहीं देता। इस कारण भी युवा विदेश जाने को प्राथमिकता दे रहे हैं।
पंजाब को दरपेश उपरोक्त सभी बड़ी चुनौतियां मांग करती हैं कि प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियां एक मंच पर बैठें तथा पंजाब के ज्वलंत मामलों संबंधी खुले मन से विचार-विमर्श करके आम सहमति बनाएं। विशेष रूप से इस पर विचार किया जाना चाहिए कि भू-जल के गहरे होते जा रहे स्तर को और नीचे जाने से कैसा रोका जाना है? इसके लिए कृषि नीति में क्या बदलाव करने की ज़रूरत है? कौन-से आधुनिक तथा पारम्परिक ढंग-तरीके पानी की बचत के लिए इस्तेमाल किए जाने चाहिएं? इस संबंध में प्रदेश ने क्या करना है, प्रदेश के लोगों द्वारा क्या किया जाना चाहिए तथा केन्द्र सरकार से किस प्रकार की सहायता प्राप्त की जानी चाहिए? इस प्रकार यह भी विचारा जाना चाहिए कि प्रदेश में व्यापक स्तर पर कृषि आधारित उद्योग कैसे स्थापित हों, इनके लिए प्रदेश द्वारा नए निवेशकारों को किस तरह की रियायतें दी जानी चाहिएं तथा केन्द्र सरकार से पहाड़ी प्रदेशों की तरह ही इनके लिए किस प्रकार की टैक्स छूट प्राप्त करने की ज़रूरत है? आम सहमति से राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस पर भी विचार किया जाना चाहिए कि प्रदेश में नशों की समस्या को कैसे दूर किया जाए तथा इनके प्रभाव में आने से युवाओं को कैसे रोका जाए? कृषि जो कि दो फसलों तक सीमित हो कर रह गई है, इसमें विभिन्नता लाने तथा विशेषकर कम पानी लेने वाली फसलों की बिजाई के लिए कृषि नीति को नया रूप कैसे दिया जाए? इसके लिए प्रदेश सरकार क्या कर सकती है? किसान क्या कर सकते हैं और केन्द्र सरकार से किस प्रकार की सहायता ली जानी चाहिए। विशेषकर किसानों द्वारा काश्त की जाने वाली फसलों के उनके लिए लाभदायक दाम किस प्रकार सुनिश्चित किये जा सकते हैं? ये सभी मुद्दे बेहद गम्भीर हैं तथा प्रदेश के अस्तित्व से जुड़े हुए हैं। बिना देरी राजनीतिक पार्टियों द्वारा आम सहमति से विचार-विमर्श करके इनके समाधान किये जाने की ज़रूरत है। 
परन्तु यह सब कुछ तभी हो सकता है यदि प्रदेश की राजनीतिक पार्टियां गम्भीर हों तथा एक-दूसरे के महत्व और भूमिका को समझें तथा उनमें सद्भावपूर्ण संबंध भी हों। चाहे प्रदेश की ह़क़ीकतें तथा प्रदेश के सरोकार राजनीतिक पार्टियों से उपरोक्त किस्म के संबंधों की मांग करते हैं परन्तु जो वर्तमान राजनीति की ह़क़ीकतें हैं और जो प्रदेश के अधिकतर राजनीतिक नेताओं का राजनीतिक स्तर है, वह इस बात की कोई गारंटी नहीं देता कि आगामी समय में प्रदेश के राजनीतिक दल अलग-अलग ज्वलंत मुद्दों पर कोई साझा दृष्टिकोण अपनाएंगे। बल्कि होगा यह कि जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव जीतने के बाद अब आम आदमी पार्टी नगर निगमों, म्यूनिसिपल कमेटियों तथा पंचायतों के चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले-पहले करवाने के लिए तेज़ी से कदम उठाएगी और इस उद्देश्य के लिए शहरों में कौंसलरों तथा गांवों में पंचों-सरपंचों को प्रत्येक ढंग इस्तेमाल करके आम आदमी पार्टी में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। दूसरी पार्टियों के साथ संबंधित जो कौंसलर तथा पंच-सरपंच आम आदमी पार्टी में शामिल होने से इन्कार करेंगे, उन्हें पिछली कारगुज़ारी के संबंध में जायज़-नाजायज़ आरोप लगा कर उनकी जांच करवाने की धमकियां दी जाएंगी, जिस प्रकार कि जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव के समय भी व्यापक स्तर पर हुआ है। 
इसी प्रकार आगामी समय में होने वाले नगर निगमों, म्यूनिसिपल कमेटियों तथा पंचायतों के चुनावों के भी स्वतंत्र या निष्पक्ष होने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव में आम आदमी पार्टी ने व्यापक स्तर पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया था और 8 मई को प्रचार खत्म होने के बाद भी आम आदमी पार्टी से संबंधित विधायक तथा मंत्रियों ने हलका नहीं छोड़ा था, अपितु वह मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अपने प्रशासनिक व राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते रहे थे। इस समय दौरान व्यापक स्तर पर पैसे तथा शराब बांटने के भी गम्भीर आरोप लगे। इस पूरे समय के दौरान जालन्धर की सिविल अफसरशाही तथा पुलिस जिसका काम स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाना था, वह मूक-दर्शक बनी रही। इससे स्पष्ट होता है कि आगामी समय में होने वाले नगर निगमों, म्यूनिसिपल कमेटियों तथा पंचायत संस्थानों के चुनाव भी स्वतंत्र तथा निष्पक्ष नहीं होंगे तथा इनके दौरान भी व्यापक स्तर पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग होगा, इसी कारण भिन्न-भिन्न राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा तथा तीव्र टकराव देखने को मिलेंगे। इसके अतिरिक्त विपक्षी पार्टियों तथा उनके नेताओं की राजनीतिक छवि धूमिल  करने के लिए भ्रष्टाचार की जांच के नाम पर उनके खिलाफ विजीलैंस की छापेमारी में भी और वृद्धि होगी। 
इसे पंजाब का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि दशकों तक इसे योग्य नेतृत्व नहीं मिला और यह भी नेतृत्व की गलत नीतियों का ही परिणाम है कि कभी देश में सबसे खुशहाल माने जाते प्रदेश पर आज 3 लाख 40 हज़ार करोड़ का ऋण है और पुराने शासकों की भांति मौजूदा शासक भी वोट प्राप्त करने के लिए तथा पूरे देश में अपने राजनीतिक मनोरथ पूरे करने के लिए इसके साधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में इस प्रदेश का भविष्य क्या होगा? कुछ कहना बेहद कठिन है?