प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए

 

जालन्धर अजीत भवन में हुई सर्वदलीय बैठक कई पक्षों से ऐतिहासिक रही है। इस दौर में राजनीतिक मसलों पर विचार-विमर्श तथा प्रैस की आज़ादी के संघर्ष में अपना योगदान डालने के लिए जिस तरह एक मंच पर पंजाब की अलग-अलग पार्टियों से संबंधित प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ एक साथ बैठे, गम्भीर विचार-विमर्श किया, प्रदेश में पैदा हुए चिन्ताजनक हालात संबंधी अपने प्रभाव साझे किये, वे पैदा  हो रही नई सोच के परिचायक हैं। अलग-अलग ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करते हुए उनमें उत्साह ज़रूर था परन्तु इससे भी कहीं अधिक चिंता नज़र आती थी। ऐसा होना इसलिए स्वाभाविक है कि सवा वर्ष की अवधि में पंजाब में भगवंत मान की सरकार ने जिस तरह जन-साधारण को निराश किया है, जिस तरह की दिशाहीनता वाली गतिविधियां उसने दिखाई हैं तथा जिस तरह की पहुंच उसने अपनाई है, उससे पंजाब की फिज़ा में गहरे बादल छाने लगे हैं।
पंजाब के लोगों ने एक तीसरे विकल्प की कामना की थी। इसीलिए चुनावों के समय उन्होंने बड़ी उम्मीदों से आम आदमी पार्टी को भारी समर्थन दिया था। इस पार्टी के नेताओं के दावों तथा वायदों पर विश्वास किया था, परन्तु कुछ समय में ही यह सब कुछ क़ाफूर हो गया प्रतीत होता है। दावे बिखर गये हैं। वायदों को पूरा करना दूर की बात प्रतीत होने लगी है। लगाई गईं उम्मीदें उदासी में बदल गई महसूस होती हैं। नई सरकार का वायदा था कि रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार पर नकेल डाली जाएगी, परन्तु विज्ञापनबाज़ी के आधार पर खड़ी सरकार इस मुहाज़ पर बुरी तरह लुढ़कती दिखाई दे रही है। हमारी सूचना के अनुसार आज प्रत्येक स्तर पर पहले से कहीं अधिक भ्रष्टाचार का बोलबाला हो चुका है। इस संबंध में किये जा रहे दावों तथा वायदों की पूरी तरह हवा निकलती प्रतीत हो रही है। विजीलैंस विभाग द्वारा पुलिस का डंडा विरोधियों के सिरों पर ही चल रहा है। उनके विरुद्ध ही चुनिंदा कार्रवाइयां की जा रही हैं। बदलाखोरी की ऐसी भावना लोगों को बेहद हैरान तथा परेशान करने वाली है। नशे खत्म करने के दावे भी दम तोड़ते प्रतीत हो रहे हैं। इन पर अंकुश लगाने की किसी भी तरह की पुख्ता योजनाबंदी सामने नहीं आई। ‘मुफ़्त’ के आधारों का सहारा लेकर समय-समय पर वोटरों को प्रभावित तो किया जा सकता है परन्तु ऋण के रूप में डाले जा रहे आर्थिक बोझ को पंजाब तथा इसके लोग कैसे सहन करेंगे, यह एक बड़ा सवाल है। पार्टी से संबंधित हर स्तर के नेताओं के लगातार बेनकाब होते जाने से तथा इस संबंध में दिये जा रहे स्पष्टीकरण खोखले लगने लगे हैं। शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में नारेबाज़ी करके ही समय निकालने का प्रयास किया जा रहा है। जिस तरह प्रदेश के शेष रहते खज़ाने को ‘बाहर वालों’ के इशारे पर प्रदेश से बाहर लुटाया जा रहा है, उससे जन-साधारण के सब्र का प्याला भरता जा रहा है। विज्ञापनबाज़ी के लिए बड़े बजट ज़रूर आरक्षित किए गए हैं परन्तु सरकार इस बात को भूल गई है कि प्रत्येक वस्तु को पैसे के लालच से ही खरीदा नहीं जा सकता, वह भी वह पैसा जो किसी न किसी रूप में अपने ही लोगों की जेबों से निकालना पड़ेगा।
ऐसे निराशा के दौर में यदि राजनीतिक पार्टियों के नेता चिंतित हुए हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है। पैदा हुए ऐसे हालात में पार्टियों के नेताओं द्वारा एक मंच पर एकजुट होने को शुभ माना जाना चाहिए। आगामी समय में भी यदि ऐसी साझी प्रतिबद्धता दिखाई जाती है तो यह पंजाब की बेहतरी के लिए उठाया जा रहा अच्छा कदम ही माना जाना चाहिए। इस एकजुटता ने एक नई उम्मीद ज़रूर पैदा की है, जिसे प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए अच्छा माना जा सकता है।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द