व्यंग्य - घरवालियों व कामवालियों की 7/51

मैडम गुलदाउदी ठाकुर व उनके पति गुलाब ठाकुर को दुकानाें व पकवानों के बारे अत्यधिक ज्ञान है।
वह जगह जगह से चुन चुन कर फल-सब्जियां व अन्य सामान लाते हैं। सुबह चार बजे उठकर व बड़े ही शांत माहौल में दो तीन सब्जियां दाल मीठा-खट्टा तैयार करते हैं। सुबह आठ बजे उनकी नौकरानी मिस नवाब मोबाइल व्हाट्सएप आती हैं। मैडम गुलदाउदी धीमी आंच पर उसके लिए दो परांठे बनाती है । वह डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता करती है व चाय काफी पीते नौ बज जाते हैं।  नो बजे मिस मोबाइल व्हाट्सएप काम शुरू करती हैं। काम करते करते वह एलसीडी पर दृश्य भी देखती है। काम करते करते उसके हाथों का सम्बन्ध गैंडा मार्का फिनाइल खड़े पौचे के साथ होता है, कानों का सम्बन्ध हैडफोन के साथ। 11 बजे जाकर शाम 6 बजे मिस नवाब माला फेरती फेरती पुन: लौटती हैं और रात 9 बजे तक काम करती है। मैडम गुलदाउदी अपनी नौकरानी का बहुत ध्यान रखती है। मेरे पूछने पर मैडम गुलदाउदी ठाकुर ने बताया कि आज कल नौकरों को बड़े ध्यान से रखना पड़ता है। हरिद्वार गया उधार भी देना पड़ता है। ऐसी हरियाली व ऐसी खुशहाली घर घर नहीं है। ऐसे हालात  ऐसे ख्यालात भी घर घर नहीं। इस देश में महिलाओं से दुखी पुरुष, पुरुषों से दुखी महिलाएं। घर-घर घरवालियों व कामवालियों की 7/51 तो होनी ही है। आकाशवाणी जालन्धर से नित्य प्रसारित होते पानी की बचत सम्बंधी एक विज्ञापन में कामवाली घर की मालकिन के सिर पर ठाह सोटा ऐसी मारती है,’ये लो अपना पतीला कल से नहीं आती शीला।’ काम काजी महिलाओं का टकराव कामवालियों से ज्यादा होता है। टकराव हो भी क्यों न। एक तो मैडम ने घने कोहरे में स्कूटर पर स्कूल या दफ्तर जाना होता है। दूसरा कामवाली नहीं आती। तीसरा मोबाइल नहीं मिलता। मैडम ने रात को सिंक में झूठे बर्तनों का कुतुबमीनार बना दिया था ताकि सुबह नसीबो आकर साफ  कर देगी। नसीबो ने न सीएल भेजी, न मेडिकल लीव। वास्तविक नसीब तो उस समय फूटते हैं जब कड़ाके की ठंड में नसीबो चार दिन और नहीं आती। मैडम कभी झाड़ू उठाती है तो कभी पौचा। मैडम मुंह में बुड़-बुड़ भी करती है।
मैडम का ब्लड प्रैशर हाई हो जाता है। मैडम भी सच्ची है पैसे के साथ पैसा, वस्त्रों के साथ वस्त्र व 36 और सुविधाएं। जब मैडम ने चार्ज लिया तो पता चला वाशिंग मशीन का सत्यानाश हो गया है। कोलंबस मैडम ने माथे पर हाथ मारा क्योंकि डब्ल बैड के नीचे कचरे का अंबार लगा था। नसीबो पांचवें दिन आई। न संस्पैंड , न डिसमिस  बाइज्ज़द बरी। नसीबो अपने नसीबों को रो रही थी। नसीबो ने बताया , बीबी जी मामी मर गई थी... एक्सीडैंट... खून... फ्रैक्चर...पी.जी. आई...वगैरा वगैरा’।
मैं एक शाम अपनी जानकार मैडम टोचन पलास के घर गया। मैडम टोचन पलास कामवाली के साथ झगड़ा कर रही थी। मैडम झाड़ू लगाने का आदेश दे रही थी और काम वाली यह तर्क देकर आज का काम कल पर डाल रही थी, अगर शाम के समय घर में झाड़ू लगाएंगे तो आज की सारी कमाई भी घर के बाहर निकल जाएगी। कामवालियों के बहाने व अफसाने कमाल के होते है। घरवालियां भी कई बार अधूरी जानकारी के कारण भंवर में फंस जाती हैं।  बाद में लज्जा उठानी पड़ती है।  एक दिग्गज महिला प्रधानाचार्य को उसके शुभचिंतकों ने थाने जाने से रोका। पिं्रसीपल साहिबा का इलज़ाम था कि कामवाली ने रजाई चोरी कर ली है। बाद में रजाई घर से ही मिल गई। कामवालियों के दु:खांत कई बार आंखों को नम कर देते हैं व हमारे सिस्टम के लिए कई सवाल छोड़ जाते हैं। मैने एक दिन बाजार में कामवाली चम्पाकली के दोनो हाथ चूम लिए । हालात ही ऐसे पैदा हो गए। वो मिली,‘उसने कहा, सर ये देखो लोगों के घरों मे काम करते करते हाथ आधे रह गए चलो बिटिया एम बी ए कर गई। काम वालियों की जिंदगी तपता थल नंगे पैर जैसी है। घर के हालात उनके सर पर भारी भरकम कर्जा चढ़ा देते हैं। शराबी पति मारपीट करके पैसा छीन लेते हैं। मेकअप के नीचे छुपे होते हैं थप्पड़ों के निशान। इंडिया में वैसे भी ... चाव मर गए... विवाह मर गए...जब से आई अंग्रेजी जब से आई एडजस्टमेंट...। घरवालियों की आक्सीजन है कामवालियां, कामवालियों की आक्सीजन हैं घरवालियां। पति, सास , ससुर के दुर्व्यवहार बारे दोनों एक दूसरी से बातचीत कर लेती है। दोनों दर्द भी बांट लेती हैं खुशी भी। यह प्रीपेड पोस्टपेड रिश्तेदारी समय की ज़रूरत भी है। घरवालियां व कामवालियां जिंदगी के सुहाने स़फर के  दो पहिए हैं। वैसे लोगों की जिंदगी में तीसरा पहिया भी दौड़ रहा है, ‘जोमेटो व स्वीगी भाभियां’। हिंदोस्तान की घरवालियों व कामवालियों को एक संदेश जरूर देना है। वह बेशक सौ बार झगड़ा करें  परंतु वह पोषक आहार व स्माइल से दोस्ती जरूर करें। देश में 53 प्रतिशत महिलाएं कमज़ोर हैं। दिल्ली में 100 में से 60 महिलाएं कमज़ोर है। 

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