पंजाब में बिगड़ता पर्यावरण और बढ़ता तापमान

पंजाब में बढ़ते तापमान और पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण ने नि:संदेह प्रदेश का हित-चिन्तन करने वाले लोगों की चिन्ताओं को बढ़ाया है। विशेषज्ञों के अनुसार पंजाब में एक ओर जहां तापमान में निरन्तर वृद्धि होते दर्ज की जा रही है, वहीं इस कारण मौसमों में एकाएक बदलाव होते जाने तथा पर्यावरण प्रदूषण से पानी और हवाओं के विषाक्त होने का ़खतरा भी बढ़ा है। इन विशेषज्ञों की एक ताज़ा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विगत पचास वर्ष में प्रदेश के न्यूनतम तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की चिन्ताजनक वृद्धि हो चुकी है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों भारी एवं अनियमित वर्षा, बाढ़ और कहीं-कहीं सूखे जैसी स्थितियों की पृष्ठभूमि में भी मौसमों का यही बदलाव उत्तरदायी महसूस होता है। इन विशेषज्ञों ने नि:संदेह चेतावनीपूर्ण तरीके से जन-समुदाय को चेताया है कि यह प्रक्रिया अभी भी सतत् जारी है, और यदि मनुष्य अभी भी स्थितियों की गम्भीरता को समझने का यत्न नहीं करता, तो फिर गम्भीर संकटों का सामना अवश्यम्भावी हो जाएगा। इस रिपोर्ट में यह भी जताया गया है कि इस समस्या के कारण प्रदेश में रात के तापमान में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है, और समग्र रूप से धरती के तापमान में गर्मी की मात्रा बढ़ती जा रही है। विगत दो-तीन वर्षों में वर्षा की अनियमितता दर्ज की गई है जिस कारण प्रदेश में कहीं बहुत कम और कहीं पर अपेक्षा से अधिक वर्षा हुई है। भविष्य में इस स्थिति के और गम्भीर होते जाने की सम्भावना है जिससे मौसमों में होने वाला बदलाव और तीव्र गति से होगा। इन विशेषज्ञों ने यह भी चेताया है कि बेशक विगत दो दशकों से अधिक समय में एक-दो वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा हुई है, किन्तु अन्य वर्षों में वर्षा की निरन्तरता कम होते चली गई है। कम वर्षा होने से फसलों का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों के प्रभावित होने की आशंकाएं उपजती हैं। यह स्थिति अधिक चिन्ताजनक हो सकती है क्योंकि पंजाब की अधिकतर कृषि वर्षा के पानी से होने वाली सिंचाई पर निर्भर है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तापमान में वृद्धि होने का एक बड़ा कारण वातावरण में प्रदूषण का बढ़ते जाना भी है। इस प्रदूषण के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हो सकते हैं जिनमें प्रमुख उद्योगों से उपजने वाला धुआं, और कई प्रकार की गैसों का बढ़ता प्रभाव भी है। प्रदेश की अधिकतर औद्योगिक इकाइयों में दूषित पानी को साफ करने हेतु ट्रीटमैंट प्लांट समुचित मात्रा में उपलब्ध नहीं होने का असर जहां हवा और पर्यावरण पर पड़ता है, वहीं इस पानी के नदी-नालों के ज़रिये सिंचाई हेतु प्रयुक्त होने से भी धरती के नीचे वाले पेयजल और उपजने वाली फसलों में विषाक्त तत्वों के घुल-मिल जाने का ़खतरा बढ़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ते प्रदूषण से एक ओर जहां ओज़ोन परत के प्रभावित होने के कारण धरती पर सूर्य-किरणों की उग्रता बढ़ती है, वहीं कई जगहों पर सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ने लगती हैं। इस कारण भी धरती पर मौसमों का चक्र प्रभावित होता है। विशेषज्ञों के अनुसार प्राय: इस मौसम में गर्मी की तपिश में कमी आने लगती है, किन्तु मौजूदा दौर में सितम्बर में भी पड़ने वाली तीव्र गर्मी का कारण मौसमों का यही बदलाव है, और मनुष्य को इस स्थिति को एक आ़गाज़ के रूप में ग्रहण करना चाहिए। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस-बारह वर्षों में इस स्थिति में दुरावस्था देखने को बढ़ी है। इसका प्रमाण यह है कि इसी वर्ष अप्रैल-मई और अगस्त-सितम्बर के बीच बार-बार मौसमों में बदलाव के चिन्ह देखने को मिले हैं। विकास के मौजूदा दौर में सीवरेज और गंदे नालों के पानी के नदी-नालों में गिरने से भी वातावरण में प्रदूषण बढ़ता है। पराली और नाड़ को जलाया जाना तथा कूड़ा-कर्कट आदि को आग लगाये जाने से भी वायु में विषाक्त तत्वों के मिलने से प्रदूषण बढ़ता है। इस धुआं-जनित प्रदूषण से अनेक तरह की बीमारियों के उपजने और बढ़ने का आधार भी स्वत: बनाने लगता है। 
नि:संदेह यह स्थिति बेहद चिन्तानजक है। शिकागो यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में भी यह चेतावनी दी गई है कि मौसमों में होते बदलाव और पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है जिस कारण मनुष्य की औसत जीवन आयु भी कम हुई है। हम समझते हैं कि नि:संदेह पंजाब में मनुष्य ने यदि स्थितियों की इस अति-गम्भीरता से पल्ला झाड़े रखने की प्रवृत्ति को इसी तरह बनाये रखा, तो भावी विनाश की बेला को टाला नहीं जा सकेगा। यथा-शक्ति एवं यथा-शीघ्र पर्यावरण को साफ-स्वच्छ रखने और हवाओं में धुएं और गैसों के प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल रूप से भरसक उपाय करना आवश्यक होगा। ऐसे उपाय एवं यत्न जितनी शीघ्र किये जाएंगे, उतना ही प्रदेश और मानवता के हित में होगा।