आम जन की परीक्षा है पांच राज्यों के चुनाव

जनता सरकार को लेकर तमाम तरह के अरोप लगाती रही है। कभी महंगाई तो कभी बेरोज़गारी, कभी भ्रष्टाचार, कभी विकास का रोना आम वोटर का हमेशा से रवैया रहा है। इसके बावजूद जब उसे पांच साल के बाद मौका मिलने पर अपने पंसद एवं जन-आकांक्षाओं को समझने वाली सरकार को चुनने की जगह अमूनन वह क्षेत्रवाद, जातिवाद, परिवारवाद या फिर धर्म के नाम पर वही गल्ती कर बैठती है जिससे उसे फिर पांच वर्ष तक सरकार को कोसने के अलावा कुछ हासिल नहीं हो पता। ऐसा नहीं है कि बेरोज़गारी, महंगाई और कछुआ गति के विकास से केवल भाजपा शासित राज्यों की जनता परेशान है, बल्कि गैर-भाजपा शासित राज्यों का भी यही हाल है। हालाकि 2024 के आम चुनाव से पहले  नवम्बर में होने वाले पांच राज्यों—मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिज़ोरम के चुनाव भाजपा और विपक्ष के लिए चुनावी रणनीतियों की परख तो होंगे ही, साथ ही जनता के मूड की झलक भी देखी जा सकेगी। जानकार यह भी मानते हैं कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव को एक ही तराजू में नहीं तोला जा सकता है। विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे अहम होते हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में जनता राष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए वोट देती है। यह तो तय है कि सेमीफाइनल में जो जीतेगा, वह पूरे आत्म-विश्वास के साथ आम चुनाव में आएगा। इन चुनावों के नतीजों से पक्ष और विपक्ष की रणनीति पर बहुत असर पड़ेगा। वैसे देखा जाए तो इन पांच राज्यों की कुल 676 सीटों में से सबसे ज्यादा 285 सीटें कांग्रेस के पास थीं। 
हालांकि, उसकी सीटों की संख्या में 20 सीटों की गिरावट आई है। बसपा की सीटें भी 10 से घटकर चार रह गईं। वहीं, भाजपा की सीटें 199 से बढ़कर 214 हो गईं। इसी तरह 2018 में 88 सीट जीतने वाली टीआरएस की सीटें बढ़कर 101 हो गईं तो एमएनएफ  सीटें 26 से बढ़कर 28 हो गईं हैं। इसके बावजूद देखा जाए तो इन राज्यों में चुनाव के प्रति जनता का कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। वर्ष 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की चुनाव व्यवस्था को चेहरे पर आधारित कर दिया है। एक चेहरे की बदौलत सरकार बनाने का अभिनव प्रयोग प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ही देखा गया है। लोगों को याद होगा कि 2014 और 2019 में भाजपा की टिकट से ऐसे तमाम सांसद सदन पहुंचे जो वास्तव में ग्राम पंचायत के चुनाव न जीत पाते। 
वैसे तो राज्यों के चुनावों को लोकसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल के रूप में मानने की प्रवृत्ति है, लेकिन ऐसा नहीं है। चुनावों के इस विशेष चक्र में जो बात अलग है, वह उनमें से तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच मुकाबले की बड़े पैमाने पर ध्रुवीय प्रकृति है। मिज़ोरम और तेलंगाना में क्षेत्रीय दल महत्वपूर्ण हैं। बड़ी हिंदी भाषी आबादी वाले सभी तीन उत्तर-मध्य भारतीय राज्यों में भाजपा ने केंद्र सरकार की लोकप्रियता को भुनाने और अपनी निर्भीक हिंदुत्व विचारधारा के लिए समर्थन बढ़ाने की कोशिश की है। कांग्रेस जातिगत जनगणना का वादा करके और कल्याणकारी उपायों को लागू करने के अपने रिकॉर्ड पर ध्यान केंद्रित करके या प्रतिबद्ध गारंटियों की सूची के माध्यम से समर्थन बढ़ाना चाहती है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार के कल्याणकारी घोषणाओं के कारण लोकप्रिय बने हुए हैं, लेकिन उनके विधायकों को उतना आत्मविश्वास हासिल नहीं है, जिससे उनकी पार्टी के लिए सत्ता बरकरार रखने का काम जटिल हो गया है, भले ही गुटबाजी का संकट फिलहाल शांत हो गया हो। 
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने 18 साल बिताए हैं और अर्थव्यवस्था और सामाजिक भेदभाव पर सरकार के प्रदर्शन से संबंधित मुद्दों पर सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं, लेकिन राज्य में हिंदुत्व विचारधारा के लिए उपजाऊ ज़मीन ने भाजपा को एक बड़ा भंडार प्रदान किया है। प्रतिबद्ध मतदाताओं ने इसे मैदान में बनाए रखा है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष को रोकने में कामयाब रहे हैं और अपनी सरकार के कल्याण रिकॉर्ड  कृषि ऋण माफी, फसलों और लघु वन उपज के लिए समर्थन मूल्य में वृद्धि के अलावा मतदाताओं को लुभाने की भी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भाजपा ने फिर से मुकाबला करीबी बनाए रखने की चुनौती दी है। भारत जोड़ो यात्रा और आंतरिक चुनावों के बाद पुनर्जीवित कांग्रेस का मानना है कि उसके पास इन तीन राज्यों में बेहतर वित्त पोषित और अधिक साधन सम्पन्न भाजपा से मुकाबला करने के लिए संगठनात्मक साधन हैं और उसका प्रदर्शन 2024 के चुनावों को प्रभावी ढंग से लड़ने की उसकी क्षमता निर्धारित कर सकता है। तेलंगाना में कांग्रेस का पुनरुत्थान अधिक स्पष्ट हुआ है, खासकर कर्नाटक में उसकी जीत के बाद। सबसे पुरानी पार्टी अब सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति को कड़ी टक्कर देने की उम्मीद कर रही है, क्योंकि भाजपा को बिगाड़ने वाले की भूमिका में धकेल दिया गया है। 
वैसे तो  मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना न केवल मूल्यवान प्रांत हैं, उनके नतीजे 2024 के आम चुनाव में राजनीतिक गति को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, यदि कोई दावा करता है कि 2023 और 2024 अलग-अलग हो सकते हैं, तो परिकल्पना अभी भी प्रमाण का इंतज़ार कर रही है। राजस्थान और कुछ हद तक छत्तीसगढ़ में सत्ता की थकान के बावजूद वर्षों बाद ऐसा हो रहा है कि कांग्रेस किसी चुनाव में कुछ हवा के साथ उतर रही है। एक साल पहले भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद से पुरानी पार्टी कांग्रेस की किस्मत ने कुछ हद तक अच्छा मोड़ ले लिया है।