सत्ता पाने की होड़ में साम-दाम-दंड-भेद की नीति

देश में जब से पांच राज्य मिज़ोरम, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव की तिथियां चुनाव आयोग ने घोषित कर दी है। तब से देश के सभी राजनीतिक दल सत्ता पाने की होड़ में साम-दाम-दंड-भेद की नीति के साथ चुनाव मैदान में उतर आये है। विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस एवं भाजपा के बीच है। राजस्थान में जहां भाजपा अभी तक सर्वाधिक उम्मीदवार मैदान में उतार चुकी है, वहीं कांग्रेस जारी तीसरी सूची तक विधानसभा की कुल संख्या के आधे से भी कम उम्मीदवार घोषित कर पाई है । 
कांग्रेस के कई चर्चित चेहरों को अभी उम्मीदवार सूची में शामिल नहीं किया गया है। आगे भी होगा कि नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा लगता है कि कांग्रेस नामांकन की अतिम तिथि के आस-पास अपनी पूरी सूची जारी करेगी। मध्य प्रदेश, मिज़ोरम, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सर्वाधिक उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। इन राज्यों में आम आदमी पार्टी भी पूरे जोश से अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार रही है जहां उसका कोई अस्तित्व तो नहीं पर उम्मीद सत्ता पाने तक बनी हुई है। इन राज्यों में अन्य मुख्य राजनीतिक दलों के अलावा आम आदमी पार्टी के साथ-साथ बसपा, भाकपा, रालोद, एआइएमएम राजनीतिक दल भी अपना-अपना उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार रहे हैं जो चुनावी आंकड़ों को प्रभावित कर सकता है जिससे सत्ता किसके पास जायेगी, कह पाना मुश्किल है। 
राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस एवं भाजपा मुख्य रूप से सत्ता की दौड़ में फिलहाल आगे हैं। दोनों में कड़ी टक्कर देखी जा सकती है, उम्मीदवार घोषित होने के बाद कम ज्यादा दोनों राजनीतिक दलों में विरोध, मतभेद उभरते देखे जा सकते हैं। इस परिवेश पर जो भी राजनीतिक दल जितना नियन्त्रण कर पायेगा, उतना हीं राजनीतिक लाभ में रहेगा। राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस फिर से सत्ता में वापिस आने की उम्मीद के साथ मध्य प्रदेश तेलंगाना एवं मिज़ोरम में सत्ता पाने की दिशा में जहां प्रयासरत नज़र आ रही है, वहीं भाजपा मध्य प्रदेश की सत्ता को बचाये रखने के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी डबल इंजन की सरकार बनाने की दिशा में हर कदम उठाती नज़र आ रही है। राजस्थान में भाजपा स्थानीय नेतृत्व को नकार कर केन्द्रीय नेतृत्व को आगे करके चुनाव लड़ती नज़र आ रही है, जहां इस चुनाव में अपने कई सांसदों को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में उतारा है। भाजपा का यह नया प्रयोग उसे कितना राजनीतिक लाभ दे पायेगा, यह तो चुनाव परिणामों से ही पता चलेगा। इसी तरह तेलंगाना एवं मिज़ोरम में कांग्रेस एवं भाजपा में से किसी के पास भी सत्ता नहीं है। वहां सत्ता पर क्षेत्रीय दलों का अधिकार जमा हुआ है। चुनाव बाद वहां राजनीतिक स्थिति में बदलाव के लक्षण तो दिख रहे है, परन्तु यह बदलाव कांग्रेस की ओर जाता ज्यादा दिखाई दे रहा है।
 इस बार कांग्रेस को मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में सत्ता मिलती नज़र आ रही है तो मिज़ोरम एवं तेलंगाना में भी काफी उम्मीदें दिखाई दे रही हैं। इस परिवेश को भाजपा पहचान चुकी है। उसे कांग्रेस पहले से भारी नज़र आने लगी है जिसे कमज़ोर करने के लिये हर प्रकार की नीति अपनई जा रही नज़र आ रही है। 
सत्ता पाने की होड़ में देश के सभी राजनीतिक दल चुनाव में अपने-अपने तरीके एवं सामर्थ्य के अनुसार साम-दाम- दंड-भेद नीति को अपनाते नज़र आ रहे हैं। चुनाव के दौरान लुभावनी घोषणाएं, धार्मिक आयोजन एवं सभाएं जांच एजेंसियों की एकतरफा सक्रियता, प्रलोभन, भय आदि साम- दाम-दंड-भेद नीति के ही स्वरूप है जिस पर चुनाव आयोग की पैनी नज़र होनी चाहिए। इस दिशा में चुनाव आयोग की सकरात्मक भूमिका लोकतंत्र का परिदृश्य बदल सकती है। (अदिति)