यात्री की बुद्धिमत्ता

पुराने समय की बात है कि एक गांव के बाहर बहुत बड़ा जंगल था। उस जंगल में आमों के दो काफी बड़े-बड़े वृक्ष थे। उन दोनों वृक्षों पर बहुत बड़े-बड़े रसीले और मीठे आम लगते थे। ग्रीष्म तथा वर्षा ऋतु में थके मांदे यात्री उन दोनों आमों के वृक्षों के नीचे रुकते, अपनी थकान उतारते तथा रसीले और मीठे आमों का आनंद भी लेते थे। आम के दोनों वृक्ष कभी-कभी बहुत निराश हो जाते। एक-दूसरे को निराशता की भावना में बहकर कहता, भाई, हम कितने बदकिस्मत हैं कि हम इस उजाड़ से भरे जंगल में पैदा हो गए ना हमारी कोई देखभाल करता है, ना हमें कोई खाद पानी डालता हैं। हमारे दूसरे साथियों की किस्मत कितनी अच्छी है कि वे सभी सुंदर बाग में पैदा हुए हैं। उनकी देख-भाल के लिए माली है। वह समय-समय पर उन्हें खाद पानी डालता है। उनकी पूरी-पूरी देखभाल करता है। हमारे फल खाने के लिए लोग हमें पत्थर मारते हैं लेकिन उनके फल माली बहुत प्यार और संभाल से उतरता है। वे हमारे जैसे अकेले भी नहीं होते। उनके इर्द-गिर्द वातावरण भी बहुत लुभावना होता है। आम का दूसरा वृक्ष अपने साथी वृक्ष की बातें सुनकर कहता भाई, आपकी बात बिल्कुल ठीक है परंतु अब हो क्या सकता है, भगवान ने जैसा जीवन दिया है, वैसा जीवन जीना ही पड़ेगा।
वे दोनों वृक्ष समय-समय पर अपने मन की पीड़ा भावना को अभिव्यक्त करते रहते और पश्चाताप करते रहते। समय व्यतीत होता रहा। ग्रीष्म ऋतु के पश्चात वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका था। आम के दोनों वृक्ष पके आमों से भरे पड़े थे।
गर्मी का सताया हुआ एक यात्री आया और उन वृक्षों के नीचे सो गया। भरपूर नींद के पश्चात जब उसकी आंख खुली तो उसके पास काफी सारे आम गिरे पड़े थे उसे काफी भूख लगी हुई थी। उसने खाने की अपनी पोटली खोली और खाना खाने लगा और खाना खाने के पश्चात वह अपने इर्द-गिर्द पड़े आम धोकर चूसने लगा। आम चूसने के पश्चात उस यात्री ने कहा, वाह, ऐसे मीठे आम तो उसने आज तक नहीं खाए। उसने बहुत सारे आम अपने बच्चों के लिए भी अपनी पोटली में भी बांध लिए। यात्री के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर आम का एक वृक्ष खुश होकर बोला, यार देखो नीचे बैठा यात्री हमारी कितनी प्रशंसा कर रहा है। 
पहले वृक्ष की बात सुनकर दूसरा वृक्ष बोला, भाई, क्या लाभ इस प्रशंसा का। परमात्मा ने हमें इस उजाड़ में उगाकर हमारे साथ बहुत अन्याय किया है। यात्री उस वृक्ष की बातें सुनकर हैरान हुआ लेकिन वह बोला कुछ नहीं। थोड़े समय के पश्चात यात्रा से लौट रहे थके मांदे कुछ यात्री विश्राम के लिए उन वृक्षों के नीचे बैठ गए। थकान उतरने के पश्चात उन्होंने खाना खाया। खाना खाने के बाद उन्होंने उन वृक्षों के नीचे पड़े आम खाने शुरू किए। आम खाते खाते सभी यात्री कहने लगे, ऐसे मीठे और रसीले आम तो हमने कभी खाए ही नहीं। ये आम खाने के लिए तो हमें इस जंगल में बार-बार आना पड़ेगा सवे घर को जाते हुए भी उन वृक्षों के आम अपने साथ ले गए। उन यात्रियों के जाने के बाद उस यात्री ने उन वृक्षों को कहा, मित्रो, मैने आपकी सारी बातें सुन लीं हैं। आप बदकिस्मत नहीं बल्कि बहुत भाग्यशाली हैं जो इतने मीठे और रसीले आमों से बिना स्वार्थ और भेदभाव से लोगों की सेवा कर रहे हो। यदि आप किसी बाग में उगे होते तो हो सकता है कि आप इतने मीठे और रसीले ना होते। आपको मोल बेचा जाता। कोई निर्धन व्यक्ति आपको खा ही न पाता। ईश्वर ने आपको यहां इसलिए पैदा किया है कि हर कोई आपके मीठे रस का आनंद ले सके। आपको दुखी नहीं खुश होना चाहिए। यात्री की बुद्धिमत्ता की बातें सुनकर आमों के वृक्षों का भ्रम दूर हो गया।


-माधव नगर नंगल टाउन शिप
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